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November 21, 2024 9:35 pm

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❤️ निरर्थक से सार्थक, सार्थक से निर्विचार की यात्रा : Kusuma Giridhar

❤️ निरर्थक से सार्थक, सार्थक से निर्विचार की यात्रा : Kusuma Giridhar

जय श्री राधे राधे जी।
🙏🌹🙏🌹🙏❤️ निरर्थक से सार्थक, सार्थक से निर्विचार की यात्रा

शरणागति शब्द देखने में बहुत सिंपल लगता है, पर शरणार्थी बहुत मेधावी और विरले लोग ही ले सकते हैं! जिन्होंने अपने मन का ऑब्जरवेशन किया, अपने मन को देखा, समझा, मन की चाल बदली, मन के निरर्थक विचार को सार्थक विचार में लिया,वो छुपे हुए अहंकार को पकड़ पाए! जैसे ही पता चला मन को, कि मेरे साथ अहंकार है,जो मुझे परमात्मा से मिलने नहीं देता है, तो मन मिटने लगा! तो *जैसे-जैसे हमारा अहंकार मिटता गया, वैसे-वैसे हमारा सर झुकता गया,हम शरणागति की और बढ़ने लगे! और शरणागति शरीर से नहीं, शरणागति हमने प्राणों से ली! तभी ना हम गा पाते हैं, *”प्राणों से प्राणपति दूर हो, देखी सुनी ना ये बात है”!* और जब हम प्राणों से शरणागति ले-लेते हैं, तो निरर्थक से सार्थक विचार, और सार्थक विचार से हम धीरे-धीरे कुछ समय के लिए निर्विचार भी होते हैं! पल दो पल के लिए जब निर्विचार होते हैं, तो हमको लगता है कि सही मायने में सत्संग में हमारा दाखिला हो गया है! और कोई है हमारे भीतर! कोई ईश्वरीय शक्ति हमारे अंदर जागृत हुई है, जिसको हम पॉजिटिव एनर्जी कहते हैं! और यह एनर्जी हमें बार-बार रोकती है, टोकती है! जब हमारा ही मन प्रहरी बनकर हमें रोकता-टोकता है, तो हम उज्जवल होते हैं, प्रखर होते हैं! और धीरे-धीरे हम अच्छे अनुभवी बनते हैं! और ये अनुभवी व्यक्ति की शरणागति ही उसे लंबी रेस का घोड़ा बनाती है!
तो इस बात को समझते हुए हमे आगे बढ़ना है!
जय श्री कृष्ण जी।
🙏🌹🙏🌹🙏🇮🇳

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