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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 101 !!
जब उद्धव को श्रीकृष्ण में “वृन्दावन” के दर्शन हुये…
भाग 1
श्रीकृष्ण का शरीर – रोम रोम पुलकित हो उठा था ।
वो कमल से नयन बराबर बहते ही जा रहे थे ……….
पर उद्धव, लाल लाल नेत्रों से घूर रहे थे श्रीकृष्ण को ।
फिर वही कठोरता वाणी में आचुकी थी उद्धव की …….बारबार श्रीराधारानी का वह विरह का रूप ……..ललितादि सखियाँ ……वो बिलखती मैया, वो बाबा ……….रोते रोते खारा हो गया था वहाँ का जल भी ……………कैसे कहा था उस ग्वाल नें ……….” कहना – दुबला हो गया है मनसुख ……..माखन खिलाकर मोटा करनें तू आजा ।
कितनी आत्मीयता है वृन्दावन में ………..उद्धव के सामनें वृन्दावन का वो विरह का दृश्य घूम गया था ………इसलिये कठोर भर्त्सना कर उठे थे श्रीकृष्ण की ……
आप यहाँ क्यों हो ? चलिये ना वृन्दावन !
मुझे आश्चर्य होता है ……उन प्रेम की पावन रूपा गोपियों को छोड़कर आप यहाँ हो ? क्यों ?
आप प्रेम की साक्षात् मूर्ति श्रीराधा रानी को छोड़कर यहाँ हो ?
यहाँ ?
उद्धव आज मथुरा के नही हैं ……….उद्धव तो आज कृष्ण के भी नही हैं …..ये श्रीराधा के हो गए हैं ……..ये वृन्दावन के हो गए हैं ।
क्यों आगये “तुम” दौड़े दौड़े मथुरा में ? बोलो ?
“आप” कहना भी अब भूल गए उद्धव ।
कोई प्रलय नही आरहा था कि तुम सब कुछ छोड़कर यहाँ आगये ?
अब चलो वहाँ !
उद्धव के नेत्र सजल हो उठे थे……….ओह ! कितनी खुश होंगीं तुम्हे देख कर मैया यशोदा ! कितनी खुश होंगीं गोपियाँ ! बाबा कितनें प्रसन्न होंगें……….और आपकी वो आल्हादिनी , मेरी गुरु श्रीराधारानी कितनी आनन्दित हो उठेंगीं……….उद्धव कृष्ण का हाथ पकड़ कर बोले ……..चलो ! अभी चलो ।
तुम मथुरा में हो ? यहाँ कौन है जो तुमसे इतना प्रेम करता है ?
और रही वहाँ के प्रेम की बात ! तो हे गोविन्द ! इस उद्धव में वहाँ के विरह का एक अंश भी आपाता ना ……तो ये उद्धव मर गया होता ।
विचार करो वो कैसे जीती होंगीं ………कितनी पीढ़ा होती होगी ……….वो हर समय तुम्हारी याद में तड़फती हैं यार !
चिल्ला पड़े थे उद्धव !
वो तेरी पगली मैया कहती है – मेरा कन्हाई आएगा ……….
मैने लाख समझाया कि – वो नही आएगा…….अब नही आएगा ।
पर मानती ही नही हैं ।
तू नही जानता उद्धव ! देखना मेरे प्रियतम श्याम आवेंगें ।
उधर वो उन्मादिनी श्रीराधारानी ये कहकर बैठी हैं ।
अरे ! आज नही तो कल तो आएगा ! सखाओं का कहना है ।
बृज के जन जन में ये विश्वास जमा है …….और जमानें वाले तो तुम्हीं थे ना …………क्यों सच बात नही बोल सके तुम भी !
अब चलो ! हे गोविन्द ! चलो !
फिर हाथ पकड़ कर जब उठानें लगे कृष्ण को उद्धव …….
क्रम ….
शेष चरित्र कल
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