!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!
( प्रेम नगर 36 – “जहाँ हार ही जीत है” )
गतांक से आगे –
यत्र पराजय एव जय : ।।
अर्थ – जहाँ ( प्रेम नगर में ) पराजय ही विजय समझी जाती है ।
***सब छोड़िये प्रेम नगर की झाँकी का दर्शन कीजिये …आप को ये सूत्र समझ में आजाएगा ।
आज दंगल है , नन्दगाँव के निकट “चमेली वन”है ….वहाँ हनुमान जी का प्राचीन मन्दिर है …बड़े प्रेम से नन्दबाबा ने ही इस मन्दिर का निर्माण कराया था । इसी चमेली वन में दंगल होता है …कुश्ती दंगल । नवरात्रि पूर्ण हुई दशहरा के दिन कुश्ती दंगल का आयोजन होता है ।
पिछली दशहरा को ही कन्हैया ने कह दिया था …बाबा ! अगली दशहरा को मैं कुश्ती लड़ूँगा ।
श्रीदामा को पिछली बार कुश्ती लड़ते देख कन्हैया को ये सनक चढ़ गयी थी ….नन्दबाबा ने भी अपने लाला को चूमते हुए कहा था ….ठीक है अगली बार तुम लड़ना । पर किससे लड़ोगे ? श्रीदामा से …..कन्हैया ने नाम भी ले लिया था । ये बरसाने का है …अगली बार नन्दगाँव और बरसाने की कुश्ती होगी । ठीक है …..बाबा ने ‘हाँ’ बोल दिया । आठ वर्ष के हैं …बस अब तो तैयारी शुरू ….नित्य तैल मर्दन , और कुश्ती के दांव पेंच का अभ्यास । ये अभ्यास करवाता है मनसुख , काशी का है तो उसे अभ्यास भी है …कहता तो है….कि मैंने कितनों को दांव पेंच सिखाये हैं ….तो यही मनसुख सिखा रहा है दांव पेंच । सुबह से अपना कन्हैया तैल मर्दन करता है …घण्टों करता है ….फिर मनसुख सिखाता है ….ऐसे पकड़ना फिर ऐसे टंगड़ी फँसाना ….फिर उसे चित्त । ये अपना कन्हैया सनकी तो है , इसे इस बार सनक चढ़ गयी है ।
समय तो बीत ही रहा है …एक वर्ष बीतने में कहाँ देरी लगे । और कन्हैया साथ हो तो फिर एक वर्ष क्या एक युग चुटकी में बीत जायें ।
दशहरा का दिन आया …हजारों लोग चमेली वन में इकट्ठे हुए हैं ….मेला देखा है …फिर शाम को दंगल । प्रमुख अतिथि वृषभान जी को बनाया है इस बार, नन्द बाबा तो आयोजक हैं हीं ।
अपनी बेटी श्रीराधा को गोद में लेकर वृषभान जी बैठे हैं …वैसे अपनी लाड़ली को इन सब में कोई रुचि नही है ….ये माधुर्यरस से भरी कहाँ मार पीट देखेंगीं …किन्तु आज कन्हैया खेल रहा है …और …अरे ! नाम अभी लिया भी नही है …ये तो लंगोट पहन कर आगया मैदान में ।
भानु दुलारी हंसीं …..क्या लग रहा है लंगोट मात्र पहने हमारा कन्हैया । और ताल ठोक रहा है ….सुन्दर श्याम वर्ण , चिक्कन श्रीअंग । छोटा सा कन्हैया उछल रहा है …उसके पीछे उसके संगी साथी हैं …मनसुख , तोक , सुबल आदि आदि ।
ये सब देख कर श्रीदामा को संकोच हो रहा है….हारने और जीतने का नही ….परिणाम का नही …पर ये कन्हैया कर क्या रहा है …पहले ही भीड़ में इस तरह हाथ हिला रहा है …जैसे जीत गया हो …..भीड़ भी …कन्हैया , कन्हैया , कन्हैया ….कहकर चिल्ला रही है ।
श्रीराधारानी कभी मुँह बना रही हैं …तो कभी खुलकर हंस रही हैं …..
तभी …..
आज कुश्ती दंगल में …नन्दगाँव और बरसाना लड़ेगा । एक ने खड़े होकर कहा ….तो सबने तालियाँ बजाई …कन्हैया भी तालियाँ स्वयं बजा रहे हैं ।
नन्दगाँव की ओर से – कृष्ण कन्हैया ! कन्हैया अपने हाथों को ऊँचा कर उछल रहे हैं ।
और बरसाने की ओर से – श्रीदामा ! कन्हैया इस में भी तालियाँ बजा रहे हैं ।
श्रीदामा के पास कन्हैया गये और धीरे से बोले ….श्रीदामा ! दांव पेंच में ज़्यादा लगे तो बता देना …मैं तुझे चित्त नही करूँगा । जी , ये अपना कन्हैया है ही ऐसा , हारना और जीतना इसके लिए कोई महत्व नही रखता…..इसके लिए तो अपने लोग महत्वपूर्ण हैं ।
अब देखिये – दंगल आरम्भ हो गया …सब लोग देख रहे हैं …उत्सुकता से देख रहे हैं ।
कन्हैया ने एक ही बार में गिरा दिया है ….श्रीदामा गिर गए हैं …इसने ऐसी टंगड़ी फँसाई की श्रीदामा गिर गया । तालियाँ बजीं …कन्हैया ने भी स्वयं ताली बजाई । किन्तु श्रीदामा भी तुरन्त उठा और कन्हैया को गिरा दिया ….पर कन्हैया के लग गयी ….चोट लगी ….श्रीदामा का हृदय पसीज उठा था …..तू ठीक तो है ना ! श्रीदामा ने भावुक होकर पूछा । पर कन्हैया उठे और पलक झपकते ही श्रीदामा को गिरा दिया …..सम्भला नही था श्रीदामा …..एक बार नही दो बार गिरा दिया ….किन्तु श्रीदामा के मुख मण्डल में प्रसन्नता है …उसने सोच लिया है कि अब कुछ भी हो जाये ….अपने इस कोमल कन्हैया को गिराना नही है । तीसरी बार भी गिर गया श्रीदामा ….सब लोग तालियाँ बजा रहे हैं …..चौथी बार जैसे ही कन्हैया गये श्रीदामा के पास …वो तो गिरने को तैयार ही बैठा था …कन्हैया ने छूआ भी नही कि श्रीदामा गिर पड़ा ।
अरे ! ये क्या ! कन्हैया रो रहा है ….मनसुख दौड़ा ….क्या हुआ ? तुम रो क्यों रहे हो ? कन्हैया ने कहा ….ये श्रीदामा दिल से नही लड़ रहा …ये जान बुझ कर स्वयं ही गिर रहा है …मुझे गिरा ! आँसु भरकर कन्हैया श्रीदामा की ओर देखकर चिल्लाये । मुझे गिरा । श्रीदामा ने कहा ठीक है …और जैसे ही थोड़ा दम लगाया …कन्हैया गिर गये । फिर उठते हुये बोले ….हाँ , ऐसे लड़ते हैं …श्रीदामा ने फिर गिराया …कन्हैया अब प्रसन्न हैं …..हाँ ऐसे कुश्ती लड़ी जाती है …ये तो सिखाने लगे । श्रीदामा बोला …अब तू तो मुझे गिरा …कन्हैया बोले …नही , तू ही मुझे गिरा । और चित्त कर । नही चित्त तू करेगा मुझे । श्रीदामा कह रहा है । अब दोनों इस बात को लेकर लड़ने लगे कि “मुझे चित्त कर” । श्रीदामा ने थोड़ा सा पकड़ा ही था कन्हैया को कि वो गिर पड़े …और लो जी ! ये यशोदा लाल चित्त भी हो गये । “श्रीदामा जीत गया”……ये कहते हुये कन्हैया अब उछल रहे हैं ।
बृजवासी समझ नही पाये कि हुआ क्या ? श्रीदामा अभी भी कह रहा है …कन्हैया ने जानबुझ में मुझे जिताया है ।
ये थी प्रेमनगर की एक झाँकी ।
आज दिवाली है …..निकुँज में युगल सरकार जुआ खेल रहे हैं ….जुआ शृंगार रस का प्रतीक है …ये प्रेमी और प्रेयसी खेलें तो मधुर रस और खिलता है ।
चौपड़ बिछाई गयी …पासे डालने लगे युगल सरकार । चारों ओर यहाँ सखियाँ हैं …गोरी गोरी सखियाँ श्रीजी की ओर हैं और साँवरी सखियाँ श्यामसुन्दर की ओर ।
“चार”, श्याम सुन्दर ने कहा …..कोमल करों में पासे पीसते हुए किशोरी जी ने कहा …प्यारे ! दांव में क्या लगाओगे ? श्याम सुन्दर ने कहा ….ये पीताम्बर , उतारो , और आगे रखो …पीताम्बर उतार कर रख दिया आगे । पासे पीसकर श्रीजी ने जैसे ही फेंके ….चार , श्रीजी की सखियाँ उछल पड़ीं । चार अंक ही आये थे । अब तो सखियों ने श्याम सुन्दर की पीताम्बरी ली और प्रिया जी के सिर में फेंटा के रूप में बाँध दिया । सब सखियाँ आनंदित हैं ।
अब ? प्रिया जी ने पूछा ।
“आठ”…….श्याम सुन्दर बोले । दाँव में क्या लगाओगे ? श्याम सुन्दर ने अपने बाँसुरी सामने रखी ….सखियाँ आनंदित होकर चिल्लाने लगीं ….प्रिया जू ! बाँसुरी इस बार जीतनी ही है । पीसे पासे प्रिया ने …और जैसे ही फेंके …”आठ”……सखियाँ उछलीं । बाँसुरी लेकर प्रिया जी को दे दिया ….प्रिया ने बाँसुरी जीत ली थी ।
अब ? श्रीजी की सखियाँ श्याम सुन्दर से पूछ रही हैं ।
“दो”…….कुछ सोचकर श्याम सुन्दर अंक बोल दिये ।
क्या दांव में लगाओगे ? प्रिया जी की ओर से सखियों ने पूछा ।
मेरे पास अब कुछ नही है ……बस ये मेरा मुकुट है ….ये मुकुट मैं दांव पे लगाता हूँ ।
“दो” , स्वामिनी जू ! अब दो अंक लाना है …..सखियाँ अति उत्साहित हैं ।
पीसे पासे …..और जैसे ही डाले ……दो ही आये ….आने ही थे ….ये लालन भी तो यही चाहते हैं …..दो ही आये । मुकुट धरो आगे ……मुस्कुराते हुए श्याम सुन्दर ने अपना मुकुट उतारा और अपनी प्रिया के चरणों में रख दिया । अब ? सखियाँ पूछ रही हैं । श्याम सुन्दर बोले …अब क्या ? मुकुट ही हार गये तो अब बचा क्या है मेरे पास ? तो अब जाओ , श्रीजी की सखियों ने कहा ….ऐसे नही जायेंगे हम …श्याम सुन्दर भी बोले ।
देखो श्याम सुन्दर ! मुकुट वेणु और पीताम्बर तो मिलने से रही ….सखियों ने कहा । नही चाहिए ये सब …हम तो हारे हैं …तो फिर क्या चाहिए ? सखियों ने हाँसी करते हुए पूछा । हे सखियों ! हमें तो बस हार चाहिए …प्रेम से भरे श्याम सुन्दर ने कहा ।
कैसा हार ? सखियों ने पूछा ।
प्रिया जी की बाहों का हार । सखियों ने कहा …ये नही हो सकता । हारे हुए की बात मानी जानी चाहिए ….श्याम सुन्दर भी बोले । गोरी भोरी श्रीराधिका ने आगे बढ़कर कहा ….आओ प्यारे ! तुम्हारी ये बात हमने मानीं ….श्याम सुन्दर उछलते हुए पास में पहुँच गये ….और प्रगाढ़ आलिंगन ।
प्यारी जू ! इस सुख के लिए तो हम
जीवन भर हारने के लिए तैयार हैं । यही हार हमारी सबसे बड़ी जीत है । इसी हार ने हमें जिता दिया है ।
जय हो !
हे रसिकों ! ये है प्रेम नगरी की झाँकी । जहाँ हार ही जीत हो जाती है ।
मथुरा में कंस के द्वारा आयोजित है कुश्ती दंगल …कृष्ण बलराम गये हैं कंस की रंगभूमि में ।
बड़े बड़े पहलवान खड़े किए हैं कंस ने ….चाणूर, मुष्टिक , शल , तोषल ….इन्होंने पकड़ लिया है कृष्ण बलराम को …..कृष्ण कह रहे हैं ….छोड़ो मुझे …छोड़ो , पर चाणूर है कि मानता नही है ….बड़े भाई बलभद्र को भी पकड़ लिया है मुष्टिक ने । अब ! मनसुख दूर था वो ये सब देखकर वहीं से चिल्लाया …..कन्हैया ! पछाड़ दे ..टंगड़ी मार और गिरा दे । बस फिर क्या था …..कन्हैया ने चाणूर को पकड़ा और चित्त ….मुष्टिक को एक मुष्टिक मारा वो गिरा ..शल को धोबी पछाड़ ….तोषल को बड़े भाई का मूषल लेकर मारा वो मरा ।
कन्हैया क्रोध में भर गये …अब तो ताल ठोककर बोले …”है किसी में हिम्मत , जो इस कन्हैया का सामना कर सके”……ये सुनते ही मनसुख भीड़ को चीरते हुए आगे आया और कन्हैया को एक ही बार में पछाड़ दिया । चित्त कन्हैया बोले …क्या मनसुख ! तू भी ! मनसुख ने कहा …तू ही तो बोला – “है किसी में हिम्मत”…तो मुझे ग़ुस्सा आगया …मेरा चेला मेरे ही सामने ! तो मैंने तुझे हरा दिया । कन्हैया उठते हुए सजल नयनों से बोले ….भैया मनसुख ! तुम लोगों से तो मैं जीता ही कब हूँ ….तुम लोगों से तो हारना ही मुझे प्रिय है । अपनों से हारना ही जीतना है मनसुख !
हे रसिकों ! ये समझना आवश्यक है ….कि प्रेम नगर के नियम अपने ही हैं ….यहाँ आज का सूत्र था …हारना ही जीतना है । सच में अद्भुत है ये प्रेम नगरी । है ना ?
अब शेष कल –
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