!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 125 !!
अर्जुन नें दर्शन किये “निभृत निकुञ्ज” के
भाग 2
🌲🍁🌲🍁🌲
श्याम सुन्दर के मस्तक में मात्र मोर का पंख है …….और श्रीजी के मस्तक में चन्द्रीका लगा दी है सखियों नें ।
रोली श्याम सुन्दर के माथे में ……और श्याम बिन्दु श्रीजी के भाल में ।
पीताम्बरी श्याम सुन्दर को ……..और नीलांबरी श्रीजी को ।
अब तो सब सखियों नें बड़े प्रेम से आरती की……….
आरती कीजे श्याम सुन्दर की
नन्द के नन्दन श्रीराधिका वर की !!
भक्ति कर दीप प्रेम कर बाती, साधू संगत कर अनुदिन राती,
आरती बृज युवती युथ मन भावे , श्याम लीला श्रीहरिवंश हित गावे ।।
आरती राधा बल्लभ लाल जू की कीजे, निरख नयन छबि लाहो लीजे ।
आरती कीजे श्याम सुन्दर की , नन्द के नन्दन राधिका वर की ।।
चारों ओर से सखियाँ आगयीं ……..और सब के हाथों में सुन्दर सुन्दर चँवर हैं …………………………
जय जय कार गूँज उठा ……..सब आनन्दित हो गए ।
साष्टांग प्रणाम किया सखियों नें युगलवर को ………….
और अब दोनों को विहार करनें के लिये भेज दिया सखियों नें ।
अर्जुन ! ये निकुञ्ज है ………पर आगे देख रहे हो ?
वो है नित्य निकुञ्ज ………ललिता सखी नें अर्जुन को बताया ।
वहाँ कौन रहता है ? मुझे जाना है वहाँ ! अर्जुन नें कहा ।
नही अर्जुन ! तुम वहाँ नही जा सकते ………..क्यों की वहाँ हम अष्ट सखियों को ही प्रवेश है ………….
क्यों …….आप अष्ट सखियों का ही प्रवेश क्यों है वहाँ ?
क्यों की अर्जुन ! आगे निभृत निकुञ्ज है ………..वहाँ तो हमारी भी गति नही हैं ………….वहाँ हम सब भी युगलवर के ही अंगों में समाहित हो जाती हैं ……..ये रहस्य है अर्जुन ! ललिता सखी नें कहा ।
क्या मैं वहाँ नही जा सकता ?
हँसते हुए ललिता सखी बोलीं …………श्रीजी की कृपा हो तो कुछ भी असम्भव कहाँ है ?
तो मुझे नित्य निकुञ्ज के दर्शन कराइये ना ?
पता नही क्यों ? उसी समय ललिता जू आँखें बन्दकर के बैठे गयीं ।
कुछ देर में नेत्र खोलकर बोलीं……श्रीजी की आज्ञा हो गयी है तुम्हे ।
उछल पड़े अर्जुन ………….आपकी जय हो ललिता जू !
अब चलो ! तुम्हे मैं नित्य निकुञ्ज के दर्शन कराती हूँ ।
यहाँ कृपा वाले ही पहुँचते हैं …….साधना वाले नही पहुँच पाते ।
चलते हुए ललिता सखी नें कहा ।
पर क्यों ? अर्जुन नें पूछा ।
तुम्हे सखी क्यों बनना पड़ा , निकुञ्ज में प्रवेश के लिए ?
बताओ अर्जुन ! क्यों गांडीवधारी अर्जुन यहाँ सखी बनकर घूम रहा है ?
क्यों की अर्जुन ! पुरुष, अहंकार का प्रतीक है…….पर प्रेम नगरी में अहंकार कहाँ ? साधना करनें वालों का अहंकार कुछ कुछ बढ़ता जाता है…….साधना का अपना अहंकार होता है…….फिर यहाँ अहंकार का प्रवेश ही वर्जित है…….तो कहाँ से साधना वाले यहाँ तक पहुंचेंगें ? ललिता सखी नें समाधान कर दिया था ।
ये है नित्य निकुञ्ज……यहाँ हम अष्ट सखियाँ ही आती हैं……और संगीत के माध्यम से अपनें प्राण प्रिय युगल को रिझाती हैं ।
वो रहा “निभृत निकुञ्ज”……..अर्जुन नें दर्शन किये दूर से ।
पर …….देखो अर्जुन ! समय फिर बीत गया ………चलो ! युगलवर अब आरहे होंगें लौटकर ………रात होंने वाली है ………चलो ।
ललिता सखी अर्जुन को लेकर आगयीं थीं फिर निकुञ्ज में ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
💞 राधे राधे💞
[1/5, 10:26 PM] Niru Ashra: 🙏🌹🙏🌹🙏
!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 125 !!
अर्जुन नें दर्शन किये “निभृत निकुञ्ज” के
भाग 3
🌲🍁🌲🍁🌲
ये है नित्य निकुञ्ज……यहाँ हम अष्ट सखियाँ ही आती हैं……और संगीत के माध्यम से अपनें प्राण प्रिय युगल को रिझाती हैं ।
वो रहा “निभृत निकुञ्ज”……..अर्जुन नें दर्शन किये दूर से ।
पर …….देखो अर्जुन ! समय फिर बीत गया ………चलो ! युगलवर अब आरहे होंगें लौटकर ………रात होंने वाली है ………चलो ।
ललिता सखी अर्जुन को लेकर आगयीं थीं फिर निकुञ्ज में ।
भोग लगाया सखियों नें ……………सुन्दर सुन्दर व्यंजन बनें हैं …..पकवान बनें हैं ………….बड़े प्रेम से दोनों को पवाया ।
आचमन कराया …………
फिर बीरी ( पान ) अर्पित करी…………।
चलिए लाल जू ! ललितादी सखियाँ युगलवर को लेकर चल पडीं ।
अर्जुन को इशारा किया ……..तुम पीछे पीछे आओ ……….
अर्जुन दौड़े ललिता सखी के पीछे पीछे ।
निकुञ्ज की सीमा तक सब सखियाँ चलीं …..पर आगे ?
यहीं पर सब सखियों नें प्रणाम किया ……….रज को माथे से लगाती हुयी ………जयजयकार करती हुयी अपनें अपनें कुञ्जों में लौट गयीं ।
नित्य निकुञ्ज से होते हुये “दिव्य निभृत निकुञ्ज” में युगल सरकार पहुँच गए थे …………अष्ट सखियाँ इनको लेकर आईँ थीं ………हाँ साथ में आज एक नई सखी भी है ।
सुन्दर शैया है ……………नाना प्रकार के पुष्प लगे हुए हैं …….गुलाब जल का छिड़काव किया है ………….सुगन्धित तैल में दीया जल रहा है ।
उस दीये के प्रकाश में …….श्रीकिशोरी जी का मुख चन्द्र दमक रहा है ।
प्यारे श्याम सुन्दर…..बस अपनी प्राण श्रीराधा का ही मुख देख रहे हैं ।
दुग्ध सखियों नें दिया …….लाल और लाली दोनों नें दुग्ध पीया ……..बचा हुआ जो था ….उसे सब सखियों नें बाँट कर ले लिया ।
अब सब सखियाँ बाहर आगयीं………
और सुन्दर सुन्दर गीत गानें लगीं ……ताकि युगलवर को आनन्द मिले ।
वीणा लेकर स्वयं ललिता सखी बैठ गयीं थीं ……मंजीरा लेकर विशाखा सखी ……..रंगदेवी जू मृदंग बजा रही थीं ……….आहा ! आनन्द उमड़ घुमड़ कर बरस रहा था ।
कुछ देर में संगीत शान्त हुआ ।
सब सखियाँ उठीं ……….और मत्तता से चलती हुयी ……….लता रन्ध्र से सब देखनें लगीं –
कौन क्या है ? सखियाँ भी समझ नही पा रही हैं ।
नीली ज्योति कभी उज्ज्वल प्रकाश को ग्रस लेती है …..और कभी उज्ज्वल प्रकाश नीली ज्योति को ग्रस लेता है ।
कौन उज्ज्वल है ….और नीला है ……अब ये भी समझ में नही आरहा ।
नीला रँग और उज्ज्वल रँग , दोनों मिलकर निभृत निकुञ्ज को प्रकाशित कर रहे हैं……….कभी कभी ऐसा लगता है कि घनें काले बादलों में बिजली बीच बीच में चमक रही है………
दोनों एक हो रहे हैं……….एक हो गए ।
अधर अधर से मिल गए………देह , देह से मिलकर एक हो गए ।
साँसों की गति दोनों की उन्मत्त चल पड़ी हैं ……….ऐसा लग रहा है कि साँसे दोनों की मिल गयीं हैं ……….कंचुकी भार लगनें लगा है …..नही आभूषण भी भार लगने लगें हैं दोनों को …….अरे ! इतना ही नही ……ये देह भी अलग अलग क्यों है ये भी भार लगनें लगा है ।
दोनों मिल एक ही भये श्रीराधा बल्लभ लाल ।
हो गए एक ……अब दो नही हैं इस निभृत निकुञ्ज में ।
अर्जुन मूर्छित हैं, , इस रस को पचा नही पाये गीता के श्रोता…..सखियाँ आनन्द में भरी हुयी हैं…..मद माती हो गयी हैं ।
अर्जुन की दशा सच में विचित्र हो गयी है ।
शेष चरित्र कल –
💞 राधे राधे💞
Niru Ashra: 🙏🌹🙏🌹🙏
!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 125 !!
अर्जुन नें दर्शन किये “निभृत निकुञ्ज” के
भाग 2
🌲🍁🌲🍁🌲
श्याम सुन्दर के मस्तक में मात्र मोर का पंख है …….और श्रीजी के मस्तक में चन्द्रीका लगा दी है सखियों नें ।
रोली श्याम सुन्दर के माथे में ……और श्याम बिन्दु श्रीजी के भाल में ।
पीताम्बरी श्याम सुन्दर को ……..और नीलांबरी श्रीजी को ।
अब तो सब सखियों नें बड़े प्रेम से आरती की……….
आरती कीजे श्याम सुन्दर की
नन्द के नन्दन श्रीराधिका वर की !!
भक्ति कर दीप प्रेम कर बाती, साधू संगत कर अनुदिन राती,
आरती बृज युवती युथ मन भावे , श्याम लीला श्रीहरिवंश हित गावे ।।
आरती राधा बल्लभ लाल जू की कीजे, निरख नयन छबि लाहो लीजे ।
आरती कीजे श्याम सुन्दर की , नन्द के नन्दन राधिका वर की ।।
चारों ओर से सखियाँ आगयीं ……..और सब के हाथों में सुन्दर सुन्दर चँवर हैं …………………………
जय जय कार गूँज उठा ……..सब आनन्दित हो गए ।
साष्टांग प्रणाम किया सखियों नें युगलवर को ………….
और अब दोनों को विहार करनें के लिये भेज दिया सखियों नें ।
अर्जुन ! ये निकुञ्ज है ………पर आगे देख रहे हो ?
वो है नित्य निकुञ्ज ………ललिता सखी नें अर्जुन को बताया ।
वहाँ कौन रहता है ? मुझे जाना है वहाँ ! अर्जुन नें कहा ।
नही अर्जुन ! तुम वहाँ नही जा सकते ………..क्यों की वहाँ हम अष्ट सखियों को ही प्रवेश है ………….
क्यों …….आप अष्ट सखियों का ही प्रवेश क्यों है वहाँ ?
क्यों की अर्जुन ! आगे निभृत निकुञ्ज है ………..वहाँ तो हमारी भी गति नही हैं ………….वहाँ हम सब भी युगलवर के ही अंगों में समाहित हो जाती हैं ……..ये रहस्य है अर्जुन ! ललिता सखी नें कहा ।
क्या मैं वहाँ नही जा सकता ?
हँसते हुए ललिता सखी बोलीं …………श्रीजी की कृपा हो तो कुछ भी असम्भव कहाँ है ?
तो मुझे नित्य निकुञ्ज के दर्शन कराइये ना ?
पता नही क्यों ? उसी समय ललिता जू आँखें बन्दकर के बैठे गयीं ।
कुछ देर में नेत्र खोलकर बोलीं……श्रीजी की आज्ञा हो गयी है तुम्हे ।
उछल पड़े अर्जुन ………….आपकी जय हो ललिता जू !
अब चलो ! तुम्हे मैं नित्य निकुञ्ज के दर्शन कराती हूँ ।
यहाँ कृपा वाले ही पहुँचते हैं …….साधना वाले नही पहुँच पाते ।
चलते हुए ललिता सखी नें कहा ।
पर क्यों ? अर्जुन नें पूछा ।
तुम्हे सखी क्यों बनना पड़ा , निकुञ्ज में प्रवेश के लिए ?
बताओ अर्जुन ! क्यों गांडीवधारी अर्जुन यहाँ सखी बनकर घूम रहा है ?
क्यों की अर्जुन ! पुरुष, अहंकार का प्रतीक है…….पर प्रेम नगरी में अहंकार कहाँ ? साधना करनें वालों का अहंकार कुछ कुछ बढ़ता जाता है…….साधना का अपना अहंकार होता है…….फिर यहाँ अहंकार का प्रवेश ही वर्जित है…….तो कहाँ से साधना वाले यहाँ तक पहुंचेंगें ? ललिता सखी नें समाधान कर दिया था ।
ये है नित्य निकुञ्ज……यहाँ हम अष्ट सखियाँ ही आती हैं……और संगीत के माध्यम से अपनें प्राण प्रिय युगल को रिझाती हैं ।
वो रहा “निभृत निकुञ्ज”……..अर्जुन नें दर्शन किये दूर से ।
पर …….देखो अर्जुन ! समय फिर बीत गया ………चलो ! युगलवर अब आरहे होंगें लौटकर ………रात होंने वाली है ………चलो ।
ललिता सखी अर्जुन को लेकर आगयीं थीं फिर निकुञ्ज में ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
💞 राधे राधे
Niru Ashra: 🙏🌹🙏🌹🙏
!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 125 !!
अर्जुन नें दर्शन किये “निभृत निकुञ्ज” के
भाग 3
🌲🍁🌲🍁🌲
ये है नित्य निकुञ्ज……यहाँ हम अष्ट सखियाँ ही आती हैं……और संगीत के माध्यम से अपनें प्राण प्रिय युगल को रिझाती हैं ।
वो रहा “निभृत निकुञ्ज”……..अर्जुन नें दर्शन किये दूर से ।
पर …….देखो अर्जुन ! समय फिर बीत गया ………चलो ! युगलवर अब आरहे होंगें लौटकर ………रात होंने वाली है ………चलो ।
ललिता सखी अर्जुन को लेकर आगयीं थीं फिर निकुञ्ज में ।
भोग लगाया सखियों नें ……………सुन्दर सुन्दर व्यंजन बनें हैं …..पकवान बनें हैं ………….बड़े प्रेम से दोनों को पवाया ।
आचमन कराया …………
फिर बीरी ( पान ) अर्पित करी…………।
चलिए लाल जू ! ललितादी सखियाँ युगलवर को लेकर चल पडीं ।
अर्जुन को इशारा किया ……..तुम पीछे पीछे आओ ……….
अर्जुन दौड़े ललिता सखी के पीछे पीछे ।
निकुञ्ज की सीमा तक सब सखियाँ चलीं …..पर आगे ?
यहीं पर सब सखियों नें प्रणाम किया ……….रज को माथे से लगाती हुयी ………जयजयकार करती हुयी अपनें अपनें कुञ्जों में लौट गयीं ।
नित्य निकुञ्ज से होते हुये “दिव्य निभृत निकुञ्ज” में युगल सरकार पहुँच गए थे …………अष्ट सखियाँ इनको लेकर आईँ थीं ………हाँ साथ में आज एक नई सखी भी है ।
सुन्दर शैया है ……………नाना प्रकार के पुष्प लगे हुए हैं …….गुलाब जल का छिड़काव किया है ………….सुगन्धित तैल में दीया जल रहा है ।
उस दीये के प्रकाश में …….श्रीकिशोरी जी का मुख चन्द्र दमक रहा है ।
प्यारे श्याम सुन्दर…..बस अपनी प्राण श्रीराधा का ही मुख देख रहे हैं ।
दुग्ध सखियों नें दिया …….लाल और लाली दोनों नें दुग्ध पीया ……..बचा हुआ जो था ….उसे सब सखियों नें बाँट कर ले लिया ।
अब सब सखियाँ बाहर आगयीं………
और सुन्दर सुन्दर गीत गानें लगीं ……ताकि युगलवर को आनन्द मिले ।
वीणा लेकर स्वयं ललिता सखी बैठ गयीं थीं ……मंजीरा लेकर विशाखा सखी ……..रंगदेवी जू मृदंग बजा रही थीं ……….आहा ! आनन्द उमड़ घुमड़ कर बरस रहा था ।
कुछ देर में संगीत शान्त हुआ ।
सब सखियाँ उठीं ……….और मत्तता से चलती हुयी ……….लता रन्ध्र से सब देखनें लगीं –
कौन क्या है ? सखियाँ भी समझ नही पा रही हैं ।
नीली ज्योति कभी उज्ज्वल प्रकाश को ग्रस लेती है …..और कभी उज्ज्वल प्रकाश नीली ज्योति को ग्रस लेता है ।
कौन उज्ज्वल है ….और नीला है ……अब ये भी समझ में नही आरहा ।
नीला रँग और उज्ज्वल रँग , दोनों मिलकर निभृत निकुञ्ज को प्रकाशित कर रहे हैं……….कभी कभी ऐसा लगता है कि घनें काले बादलों में बिजली बीच बीच में चमक रही है………
दोनों एक हो रहे हैं……….एक हो गए ।
अधर अधर से मिल गए………देह , देह से मिलकर एक हो गए ।
साँसों की गति दोनों की उन्मत्त चल पड़ी हैं ……….ऐसा लग रहा है कि साँसे दोनों की मिल गयीं हैं ……….कंचुकी भार लगनें लगा है …..नही आभूषण भी भार लगने लगें हैं दोनों को …….अरे ! इतना ही नही ……ये देह भी अलग अलग क्यों है ये भी भार लगनें लगा है ।
दोनों मिल एक ही भये श्रीराधा बल्लभ लाल ।
हो गए एक ……अब दो नही हैं इस निभृत निकुञ्ज में ।
अर्जुन मूर्छित हैं, , इस रस को पचा नही पाये गीता के श्रोता…..सखियाँ आनन्द में भरी हुयी हैं…..मद माती हो गयी हैं ।
अर्जुन की दशा सच में विचित्र हो गयी है ।
शेष चरित्र कल –
💞 राधे राधे💞


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Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877