!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!
( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )
!! रस निमग्न लाल जू !!
गतांक से आगे –
!! पद !!
सीसफूल तर भाल सुनहरी नैंननि मैंन रँगावौ जू।
भृकुटि भौंह लटनिकी लटकनिभिरि कपोल परसावौ जू ॥
बिबस भयें न्यारो नहिं कीजै एही बर मोहि द्यावौ जू।
बाहु सुमूलनि कूलनि कमलनि कुंजनि माहिं रखावौ जू ॥
केतकि केलि रहूँ है लगि कें रहौ कहौ सु कहावौ जू।
छिन छिन जीऊँ पाय सुधाधर या जीवनि मोहि ज्यावौ जू ॥
नवमंडल तरु रतन मनोहर रसनि सुबास बसावौ जू।
नवल कुंज की छाया करि करि रस-बरसा बरसावौ जू ॥
श्रीनित्यकिसोरी राधा गोरी स्यामा सरस सुहावौ जू।
श्रीहरिप्रिया रसरूप सहेली यह सुख नित बिलसावौ जू ॥ १५३ ॥
ये रस-रंग निकुँज में ही है ….ये रस का उद्दीपन निकुँज में ही है ..ये अद्भुत ज्वार रस का ये निकुँज में ही प्रकट होता है …यहाँ रस ही रस है …रस का ही स्थान है …रस का ही विहार और विलास है ।
अब देखिए …..दिव्य निकुँज है ….वहाँ विवाह उत्सव की इन दिनों धूम मची है ….अनन्त सखियाँ हैं सब युगल के विवाह में सज धज के उपस्थित हैं ….कोई मधुर स्वर में गीत गा रही है तो कोई शहनाई बजाकर मंगल-मधुर वातावरण का निर्माण कर रही है …लताओं में पक्षी गण भी ऐसे चहक रहे हैं ….जैसे वो भी वर या वधू के पक्ष से आए हों ….अरे ! क्यों नही …ये सब पक्षी लता आदि भी तो युगल के ही परिकर हैं ….जो दिन रात राधे श्याम राधे श्याम पुकारते रहते हैं ।
रस बढ़ गया ब्याह मण्डप में तो दुलहा ही उठ गए नृत्य करने अपने ही ब्याह में …सिर्फ स्वयं ही नही उठे …अपनी दुलहन को भी उठा लिया …..दोनों ने उन्मुक्त नृत्य किया …आहा ! इन दोनों किशोर और किशोरी को ठुमकते देखना इन सखियाँ का परम सौभाग्य है । ये अपना सौभाग्य मान भी रही हैं …सौन्दर्य ही मनौं ताताथई कर उठा हो…आनन्द ही मानौं थिरक रहा हो ।
इन सबका वर्णन हमारी सखी जू …श्रीहरिप्रिया ने की है ।
हे रसिकों ! आपने सुना ना कि सखियाँ अद्भुत रस माधुरी में इन नवल दुलहा दुलहन के रूप को देखकर कामना करने लगीं कि …मैं इनके चरणों की नूपुर बन जाऊँ या इनके हृदय का हार बन जाऊँ ….ये कामना इनकी अपार थी …अनन्त थी , “कामना का नाश आवश्यक है”….ज्ञान मार्ग कहता है …किन्तु ये रस मार्ग तो कामनाओं से ही पटा पड़ा है …..कामना भी कैसी कि …इनके अधरों की लाली बनूँ । इस विवाह उत्सव में सखियों की कामना पूरी हुई नही थी कि …रसोन्मत्त होकर लाल जू ही उठ गये ….नाचने भी लगे थे । ये रस विलास की एक झाँकी थी …जिसमें रस ही उन्मत्त हो उठा था ।
लाल जू बैठ गये हैं …..वो लम्बी साँस लेकर बैठ गये हैं …वो प्रिया के सौन्दर्य को देख देखकर रीझ रहे हैं …..क्या करें , इन सौन्दर्य की देवि को कैसे सजायें । हरिप्रिया सखी लाल जू को देख रहीं हैं और मुस्कुरा रही हैं …वो कभी लाल जू को देखती हैं कभी प्रिया जू को …दोनों एक दूसरे को ही देखकर मत्त हो रहे हैं ….तभी ….हे हरिप्रिये ! मेरी सहायता करो ना ! श्याम सुन्दर ने कहा । हंसते हुये हरिप्रिया ने कहा …प्यारे ! मेरी सहायता की आपको क्या आवश्यकता ? नही , मेरी प्यारी को सजा दो ना ! मटकते हुए हरिप्रिया बोली …आप ही सजा दो । नही , मुझ से सजाया नही जाएगा ..मैंने इनको छू लिया तो योगियों की भाँति मैं भी समाधिस्थ हो जाऊँगा ।
ये सुनकर अनन्त सखियाँ इन रसिक की रसिकता पर बारि जाने लगीं ……
हे हरिप्रिये ! सच बताओ तुम मुझे हृदय से चाहती हो ना ? हाँ , हाँ प्यारे !
तो मेरी इन प्यारी को सजा दो ….मैं यहाँ बैठा हूँ ..मेरे सामने इनका सुन्दर शृंगार कर दो…..हंसते हुए हरिप्रिया , प्रिया जू की ओर देखकर बोलीं ….लाल जू रस मत्त होकर बोल रहे हैं ….इनके मस्तक पर सुन्दर शीश फूल धारण कराओ । इनकी भृकुटियों को धनुष की तरह सँवार दो । इनकी सुन्दर लटों को ही हरिप्रिये ! ऐसे सँवारों की ये लटें इनके कपोल को छूयें । ये कहते हुए श्याम सुन्दर के नेत्र चढ़ गये थे , मत्तता कुछ ज़्यादा ही बढ़ गयी थी । और सुनो ना सखी ! अपनी प्यारी को इस तरह सजा हुआ देखकर , उनके सौन्दर्य सिन्धु को चढ़ा हुआ देखकर अगर मैं बेसुध हो जाऊँ …तो मुझे उनके पास ही रख देना …उनसे दूर मत करना । ये कहते हुए श्याम सुन्दर बेसुध से हो गये थे …फिर बोले …हरिप्रिये ! एक काम करना …मुझे और प्यारी को ले चलना कमल कुँज में, वहीं हम को छोड़ देना । नव किशोर जू की ये बात सुनकर हरिप्रिया कुछ गम्भीर सी हो गयीं और अपनी सखियों की तरफ़ देखने लगीं थीं क्यों कि लाल जू भाव रस में डूब गये थे …और उन्हें अब कुछ भान नही था …वो अपने को सम्भालने में लगे थे …इस प्रेम ने , इन प्रेम पुरुष की स्थिति विलक्षण कर के रख दी थी । हे हरिप्रिये ! उस कमल कुँज में अगर मैं इनके रूप सौन्दर्य को निहार कर अचेत हो जाऊँ तो मुझे इनके अधरों का पान करा देना …और हाँ , अधरों का पान करते हुए मुझे विलग मत करना …उस अमृत को पीने देना । और हाँ , हरिप्रिये ! कुछ देर तक मौन रहने के बाद फिर आह भरते हुए लाल जू बोले थे ….कमल कुँज में ही एक रस मण्डप का निर्माण कर देना …और वहीं हमें मिला देना ….रस में डूबे ये रसिक वर आज बोले जा रहे हैं ….हे हरिप्रिये ! हम जब दोनों मिल जाएँ ना , एक हो जाएँ ना …तब तुम सब मिलकर हमारे ऊपर पुष्पों की बरसात कर देना । और हाँ ….उस समय अन्य सखियों से कह देना कि वो सब मधुर मधुर गीत गाती रहें ….मेरी प्राण प्यारी श्रीराधा किशोरी जू को बहुत अच्छा लगेगा और उन्हें अच्छा लगेगा इसलिए मैं तुम लोगों से मनुहार कर रहा हूँ । ये कहते हुए हरिप्रिया के सामने लाल जू ने हाथ भी जोड़ लिए थे ….हरिप्रिया सजल नयन से इनको निहारती रहीं थीं ।
क्रमशः ….


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