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August 1, 2025 11:45 pm

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!! दोउ लालन लाड़ लड़ावौ री !!-( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )- !! नित नूतन रस !! : Niru Ashra

!! दोउ लालन लाड़ लड़ावौ री !!-( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )- !! नित नूतन रस !! : Niru Ashra

Niru Ashra: !! दोउ लालन लाड़ लड़ावौ री !!

( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )

!! नित नूतन रस !!

गतांक से आगे –

अद्भुत बात है ये तो ….या तो नूतन होगा या नित्य होगा …अब नित्य भी हो और नूतन भी हो …ये सम्भव नही है । किन्तु प्रेम एक ऐसा तत्व है जो नित्य भी है और नूतन भी । ये जो निकुँज है , ये क्या है , ये प्रेम का एक लोक ही तो है …जहाँ प्रेम तत्व का ही विलास हैं बिहार है । यहाँ के ठाकुर और ठकुरानी दोनों ही प्रेम हैं …यहाँ की यमुना रानी भी प्रेम का ही बहता रूप है …वृक्ष लता पक्षी सब प्रेम का ही विस्तार है …और तो और ये जो रंगीली रसीली सखियाँ हैं …ये भी उन्हीं प्रेम का ही स्वरूप हैं …अब बताइये जहाँ सब कुछ प्रेम ही प्रेम हो …वहाँ नित्य यानि शाश्वत भी होगा …और नूतन यानि नवीनता भी होगी , है ना ?

हे रसिकों ! ये प्रेम देश का उत्सव है …..प्रेम देश के राजा रानी का विवाह उत्सव …तो सब कुछ प्रेममय होगा की नही ? सब कुछ यहाँ प्रेम ही है …प्रेममय है ।

!! पद !!

ललिता जू ललित रंगभीनी गावत मंगल रहसि बधाई।
मंगल रसरंगनि अनुकूली फूली फूली अंग न माई ॥
सुंदर सुभग सुखासन सोहन बैठे रसिक सिरोमनि राई।
बदन निहारति लेत बलैया मानि मानि निज भाग बड़ाई ॥
रतनप्रभा रतिकला सुभद्रा भद्ररेखिका अति मन भाई।
सुंदरमुखी धनिष्टा हंसी केलि कलापनि परम सुहाई ॥
तानमती तारावलि तरला तानतरंगा तन तरुनाई।
लाख लाख अभिलाख रनिके पुरवति तौऊ मति तृपति न पाई ॥
सुखसहेलि रुचि पान खवावत मुख प्रसन्न रुख लै चितचाई।
प्रीति-पगी रगमगी जगमगी नवजोवनि जगजोति जुन्हाई ॥
अति उदार दोऊ अलबेले रीझि रंग बरषा बरषाई।
जीवन जोरी श्रीहरिप्रिया की भाँति भाँति सबको सुखदाई ॥१६२ ॥

आज ललिता जू अति उत्साहित हैं …इन्होंने वीणा लेकर मंगल बधाई गाना आरम्भ कर दिया था , इनकी वीणा युगल सरकार को बहुत प्रिय है …भाँवरी लगाते हुए दम्पति रुक भी गये थे एक बार तो …फिर ललिता जू की ओर देखकर मुस्कुराये थे ….आहा ! इनका गायन और वीणा वादन दोनों ने ब्याहुला उत्सव में और सितारे गढ़ दिये थे ।

“फूली फूली अंग न माई”

सखियाँ कृश थीं …कृशोदरी थीं ….पर अब इनको इतना आनन्द आगया कि …फूल गयीं । कैसे फूलीं ? जैसे बेटे का ब्याह हो तो माता कैसी फूली फूली फिरती है …ऐसे ही । यहाँ ये अद्भुत उपमा दी गयी …माता और बेटे के विवाह की । हाँ , ये सखियाँ हैं ये युगल सरकार की माता भी हैं …मित्र भी हैं , दासी भी हैं …सारे भावों का समन्वय इन सखी में ही तो मिलता है ।

अब यहाँ कोई शहनाई बजा रही हैं …तो कोई नृत्य दिखा रही हैं । दोनों दम्पति भाँवर ले रहे हैं ……श्रीरंगदेवि आदि चँवर ढुरा कर इनके साथ चल रहीं हैं । अब भाँवर के बाद सुन्दर आसन पर इनको विराजमान कर दिया है । ये तो अब और सुन्दर लग रहे हैं …इनका मुख मण्डल और दमक रहा है । ये अब एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा रहे हैं …अब धीरे धीरे बतिया भी रहे हैं …कभी कभी बतियाते हुए खिलखिलाकर हंसने लगते हैं …तब इनकी जो दंतपंक्ति दिखाई देती है …उसकी शोभा कही नही जा सकती ।

श्रीललिता सखी ने वीणा को रख दिया है ….और दम्पति के सामने नृत्य करने लगीं और नृत्य करते हुए पास जाकर बलैयाँ भी ले रही हैं । पर ये क्या हुआ ….सामने से अत्यन्त सुन्दर सखियों की एक पंक्ति नाचते गाते हुए आगयी …..ये सबकी सब गौर वरण की थीं ….नागिन की तरह इनकी चोटी लहरा रही थी ..कमल की सुगन्ध इनके अंगों से प्रकट हो रहा था ।

इन सबके नाम भी हरिप्रिया जू हम सबको बता रही हैं …….

रत्नप्रभा जू , इनके अंगों से , नाना रंगों की प्रभा प्रस्फुटित हो रही थी ….ये दम्पति के सामने आती हैं और बड़ी मत्तता से पुष्प उछालती हुयी पीछे जाकर खड़ी हो जाती हैं ।

इसके बाद दूसरी सखी आती हैं ….इनका नाम है …..रतिकला जू ….ये प्रेम की साक्षात मूर्ति लग रही हैं …इनकी क्षीण कटि में जो करधनी बंधी हुयी थी उसी को कोई देख ले तो समझ ले कि इनमें रति के सारे कौशल मौजूद हैं । ये आकर गम्भीरता के साथ …प्रिया जू के सिर में हाथ रखती हैं ….और लाल जू का माथा चूमती हैं …और पीछे चली जाती हैं । सुभद्रा जू ….ये दूर से देखने में ऐसी लगती हैं जैसे कोई चन्द्र की चाँदनी छिटक रही हो …..इनकी चाल भी हिरणी सी है ….इनको देखकर अन्य सखियाँ भी प्रसन्न चित्त हो गयीं थीं । ये युगल के पास आयीं और चरणों में पुष्प चढ़ाते हुए ये भी पीछे जाकर खड़ी हो गयीं । अब तो जिधर देखो उधर ही सौन्दर्य बिखरा पड़ा है ….सुन्दर से भी अति सुन्दर सखियाँ यहाँ उमंग के साथ नाच रही हैं गा रही हैं ।

कितनी सखियाँ हैं ? अनन्त हैं ….कोई संख्या नही हैं ।

सब सखियाँ हाथ जोड़कर विधाता से मनाती हैं ..कि हे विधाता ! ऐसा सुख हमारे इन जुगल सरकार को मिलता रहे …ये ऐसे ही प्रसन्न रहें ..ये ऐसे ही मिले रहें…और हम इनको निहारते रहें । ये कहते हुए सखियाँ अपलक निहारती हैं …पर कितना निहारें ? एक अंग में अपनी दृष्टि जमाती हैं ….जैसे – नयनों में ….तो उसके बाद दूसरे अंग में दृष्टि जा ही नही पातीं ….वहीं इतना समय लग जाता है कि इधर हजारों इन्द्र और ब्रह्मा बदल गये होते हैं । हरिप्रिया कहती हैं ….सम्पूर्ण अंगों का दर्शन आज तक हो नही पाया है ….एक अंग में ही त्राटक लग जाता है …दूसरे अंग की बारी आ ही नही पाती । और आज तो इन दम्पतिकिशोर का सौन्दर्य उछाल मार रहा है ….अखिल विश्व-ब्रह्माण्ड में जो सौन्दर्य है वो यहाँ के एक बिन्दु के बराबर भी नही है ।

आहा ! सखियाँ आनन्द के कारण उछल रही हैं ….और क्या कहें !

तभी – प्रीति रस में पगी , यौवन से जगमगी , ये सखियाँ अब स्वयं अपने हाथों से बीरी ( पान ) बनाती हैं ….और नृत्य की भंगिमा से ही वो आगे जाती हैं …..दम्पति में पहले श्रीप्रिया जी को पान खिलाती हैं …फिर आधा लेकर लाल जू के मुख अरविंद में डाल देती हैं । अब तो दम्पति का मुख पान से लाल हो गया है ….इनकी शोभा तो और और बढ़ गयी है ।

हरिप्रिया आज बस निहार रही हैं दम्पति को …और अति सुख के कारण ये बोल भी नही पा रहीं …..नेत्रों से सुख के अश्रु बह चले हैं किन्तु जब देखा कि लाल जू को किसी बात में हंसी आयी है और पान के पीक की बूँदे चिबुक तक आगयीं ….बस क्या था उसी समय हरिप्रिया दौड़ीं और बड़े प्रेम से लाल जू का मुख अपनी साड़ी के पल्लू से पोंछ दिया ….और सजल नयन से बोलीं –

“जीवन जोरी हरिप्रिया की , भाँति भाँति सबको सुखदाई” ।

हे हरिप्रिया की जीवन जोरी ! ऐसे ही सबको सुख बरसाते रहो । सबको सुख देते रहो ।

ये कहकर श्रीहरिप्रिया युगल कि चरणों में गिर पड़ती हैं ।

क्रमशः ….
Niru Ashra: !! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!

( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )

!! जुवा खिलावति जुगल कों !!

गतांक से आगे –

!! दोहा !! 

सुख दे भाँवरि गारि गुन , करे बधाई गीत ।
जुवा खिलावति जुगल कों , को हारै को जीत ।।
जीती दुलहिन लाड़ली , आनन्द भयो अपार ।
हरषि हिये हितु सहचरी , डारयौ पिय गल हार ।।
हार डारि पिय के गरें , गरबीली गुन गोर ।
हुलसत हँसत करावहीं , चार डोरना छोर ।।
हठडोरन जु छुड़ावहीं , सहचरि सब रस बोर ।
देखि छकनि छबि छैल की , नहिं छूटे बर जोर ।।

*प्रेम रस में बड़प्पन होगा तो वो प्रेम रस ही नही होगा । वहाँ तो बड़प्पन को बगल रखकर प्रेम रस में प्रवेश किया जाता है । याद रहे प्रेम देश में प्रेमी याचक के सिवा और कुछ नही है । बड़े हो ? अखिल ब्रह्माण्ड नायक हो ? सर्वतन्त्र स्वतन्त्र हो ? तो रहो अपने वैकुण्ठ आदि ऐश्वर्य प्रधान लोक में ….यहाँ तुम्हारा क्या काम है ? अरे सखियाँ ही घुसने ना दें । यहाँ तो प्रिया जू के सामने सिर झुकाए रहना पड़ेगा । जो चाहिए उसके लिए भी याचना करनी होगी । आहा ! ये प्रेम है ही ऐसा ! क्या करोगे ? यहाँ तो निकुँज बिहारी अपनी बिहारनि के जूठन प्रसाद के लिए ललचाते देखे जाते हैं …यहाँ तो ये भी देखा गया है कि …श्रीरँगदेवि जू चरण चाँप रहीं थीं लाड़ली जू के …तब श्यामसुन्दर आगये …और हाथ जोड़कर संकेत में ही श्रीरँग देवि जू से बोलने लगे ….ये सेवा हमें भी प्रदान करो । यहाँ ठाकुर कहलाना भी इन्हें पसन्द नही है …यहाँ तो जो भी हैं ठकुरानी ही हैं …और ये इनके चाकर हैं ।

प्रिया जू की बात तो अभी छोड़ दें …और सखियों की बात करें तो ये सखियाँ हैं ना , ये भी नचाती हैं इस रसिक शेखर को ….और ये मानते हैं …बहुत मानते हैं ।

अब दर्शन कीजिए ब्याहुला के …….

भाँवरि पड़ गयी और दिव्य आसन में दम्पति विराजमान हो गये । सखियाँ नाच रही हैं गा रही हैं अति आनन्द उत्साह से भरी हुई हैं । निकुँज में ही रस की मानौ बाढ़ ही आगयी है …लता पत्र तक झूम रहे हैं तो पक्षियों की बात क्या करें ! लताएँ इतनी मत्त हो गयीं हैं कि दम्पति के ऊपर ये पुष्प बरसा रही हैं । अद्भुत अनुपम उत्सव हो रहा है ये …और क्यों न हो परम रसिक और परा रसिकनी का विवाह उत्सव जो हो रहा है ।

दिव्य आसन में दोउ विराजे हैं ….तभी हरिप्रिया अपने साथ कुछ सखियों को लेकर दम्पति के सामने बैठ गयीं , श्रीरंगदेवि जू ने पूछा भी कि …क्या है ? तो मुस्कुराते हुए हरिप्रिया बोलीं …सखी जू ! कुछ नही , हम सब ये देखना चाहती हैं कि …हारेगा कौन और जीतेगा कौन ?

श्रीरँगदेवि जू समझ गयीं ….वो आगे कुछ नही बोलीं ।

हरिप्रिया ने ताली बजाई ….और वहाँ जुवा का खेल उपस्थित हो गया ।

ये क्या है ? वर भेष धारी श्याम सुन्दर पूछने लगे थे ।

प्यारे ! अब परीक्षा होगी ….कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा ? हरिप्रिया चहकते हुए बोलीं ।

“जीतेंगे तो हम हीं”…….ये कहते हुए प्यारी जू की ओर देखा ।

हरिप्रिया बोलीं ….आज तक तो जीते नही हो …चलो आज देख लें ।

सखियों ने करतल ध्वनि की ….हास्य गूँज उठा निकुँज में …सब “जुवा खेल” देखने लगे …सखियाँ तो देख ही रहीं हैं, निकुँज के पक्षी भी वहीं आगये और वो भी देख रहे हैं …मोर हंस कोयल आदि सब उचक कर देख रहे हैं । पासे लाये गये ….सखियाँ जितनी उत्साहित हैं उतने ही प्रिया लाल भी हैं …..जुवा बिछाया गया था दम्पति के सामने । “हमारी लाड़ली ही जीतेंगीं” समस्त सखियों ने एक स्वर से कहा । “मेरी ओर कोई नहीं”….चारों तरफ़ देखते हुए श्याम सुन्दर बोले थे । “बेचारे लालन ! हम हैं तुम्हारी ओर” ये कहती हुयी साँवरी साँवरे रंग की जितनी सखियाँ थीं वो सब श्याम सुन्दर की तरफ आकर खड़ी हो गयीं ।

जुवा चल पड़ा …..खूब रँग जमने लगा इस खेल में । किन्तु क्या करें ! लाड़ली जू ही जीत गयीं ….जीतनी ही थीं । ये देखते ही पूरा निकुँज उछल पड़ा था । सखियाँ तो हर्षोल्लास से भर गयीं । श्याम सुन्दर ने सिर झुका लिया था । दुलहन के आगे दुलहा न हारे तो शृंगार रस में, रस कहाँ घुला ? हरिप्रिया उन्मादिनी हो गयीं थीं…कमल की एक हार उन्होंने ली …और नृत्य की भंगिमा से चलते हुए …..सारी सखियाँ ताली बजा रही हैं …एक ही लय में …अनन्त तालियाँ एक साथ बज रहीं हैं ..प्रिया जू हंस रहीं हैं ..प्रिया जी की अष्ट सखियाँ हरिप्रिया के इस स्वाँग पर रीझ रही हैं । हरिप्रिया हार लेकर दुलहा सरकार के पास गयीं ..और बोलीं ..ये हार है ..जो हारता है उसे हम पहनाती हैं …प्यारे ! आप तो पहले ही हार गये । हरिप्रिया के ये कहते ही सखियों ने हंसना आरम्भ किया ….हास्य में सुख अपार था ….वातावरण में आनन्द घुल गया था । और हरिप्रिया ने वो “हार” इस रस रँग में हारे , प्यारे के गले में डाल दिया था ।

“हार डारि पिय के गरे , गरबिली गुन गोर”

क्रमशः….

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Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

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