बेटी.. मेरा भाव वैभव..।
सचमें बेटी जो खुद एक मर्यादा का पूर्णतः स्वरूप है । बो भीतरमें कितने गहरे दर्द और घाव छुपाकर हँसते हुए चेहरेसे जैसे कुछ हुआ ही नहीं ऐसे मुख भावसे अपना दुख छुपाती है। ऐसा कलाकार पूरी सृष्टि पर आपने नहीं देखा होगा। वह खुद मानसिक रुपसे शांति पाने के लिए पिता के घर आती है लेकिन आजकल जो परिवारमें व्यक्तिगत स्वरूपमें, बिना वजूद ..जो शब्दोंके शश्त्रो से परिवारका माहौल कलुषित बनता जा रहा है उसीमें बेटीको इसी एहसास का होना बड़ा दुखदाई लगता है । वह जानते हुए भी किसीको कुछ बोल नहीं पाती । अपने बूढ़े मांबापको देखकर वह मनोमन बहुत व्यथित होती है । उसे लगता है भगवान ने मुझे बेटा बनाया होता तो मैं ऐसी स्थिति पैदा नहीं होने देती.. !
यह हर घर घरकी कहानी है । बेटी सचमें सयानी ही होती है । कभी कभी उसे दो दिन भी हम चैनकी सांसे नहीं लेने देते है ऐसा भी होता रहा है । उसे आपसे कई बाते करनी है । उसे भी आपका आश्वासन चाहिए । उसे भी थोड़ी मुक्ति की हवा चाहिए, उसे भी आपका स्नेहादर चाहिए । उसे कोई भौतिक अपेक्षा नहीं पर कोई आत्मीयतासे उसका हालचाल पूछे, या तो उसकी इच्छानुसार उससे कोई योग्य व्यवहार करें तो आई हुई बेटी दो दिन बड़े संतोष और खुशी को साथ लेकर वह अपने घर चली जाती है और ऐसा सिलसिला भी कितने समय तक चलता रहता है ? जब तक उसके बूढ़े मांबाप की हयाती है तब तक.. बादमें तो उसे प्यार से, दिलसे, सन्मानपूर्वक आप बुलाओ तभी वह आएगी । उसे आपके भौतिक वैभव से कोई मतलब नहीं । उसे आपका हँसता खेलता परिवार चाहिए । सबके परिवारमें एक बेटी ही ऐसी कड़ी है जो परिवार को जुड़ सकती है । अपने अधिकारसे भी वह स्थिति को सम्हाल सकती है। ऐसी है हमारी बेटियां.. जो प्रेम स्वरूपा है, लक्ष्मी स्वरूपा है और हमारे लिए भाग्य स्वरूपा है। निःस्वार्थ, भावपूर्ण, प्रेमपूर्ण, शुभाकांक्षी, हमदर्द ऐसी प्यारी बेटीओंको दिलसे सलाम और सस्नेह आशीर्वाद । 🙋🏻♂️
Manoj Acharya
Author: admin
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