Explore

Search

November 22, 2024 4:27 am

लेटेस्ट न्यूज़

श्रीकृष्णकर्णामृत – 62 : निरू आशरा

श्रीकृष्णकर्णामृत - 62

मैं उसे छू नही पा रहा…


अग्रे समग्रयति कामपि केलि-लक्ष्मी-
मन्यासु दिक्ष्वपि विलोचनमेव साक्षि ।
हा हन्त ! हस्त-पथ-दुरमहो किमेत-
दाशा-किशोरमयमम्ब जगत्त्रयं में ॥६०॥

हे साधकों ! प्रेम को समझना असम्भव ही है । इसलिए इसे समझना नही है …इसमें तो डूबना है ….अपने आपको मिटा देना है ….अपने अहं को ख़ाक बना देना है ।

बिल्वमंगल विरचित – ‘श्रीकृष्णकर्णामृत’ ऐसे ही श्रीकृष्ण को प्रिय नही है …इसमें प्रेम की अटपटी चाल का वर्णन है ..प्रेमी के अटपटे चाह का वर्णन है ….जिसे सुधी लोग समझ नही पाते …प्रेमी लोग उसका आस्वादन करते हैं ….और उसी चाह में जीते हैं ।

साधकों ! बिल्वमंगल को अभी छोड़ना नही …इन्हीं के पद चिन्हों में चलकर अपने सनातन प्रियतम को हमें पाना है ….इसलिए इस रस चर्चा को अपने जीवन में आने दीजिए …तब देखिये …आपके जीवन में प्रेम के फूल खिलेंगे और उस प्रेमपुष्प के सौन्दर्य को निहारने के लिए एक दिन श्याम सुन्दर स्वयं उपस्थित हो जायेंगे ।

आज बिल्वमंगल कुछ विचित्र सी चाह लेकर अपने प्रिय के सामने प्रस्तुत होते हैं । कल के श्लोक में आप सबने सुना कि बिल्वमंगल अपने श्याम सुन्दर के मुख अरविन्द को देखकर परम मुग्ध हो उठे थे । वो अपलक निहारते रहते हैं और उस सुन्दरतम मुख का ये वर्णन भी करते हैं ।


बिल्वमंगल को साक्षात्कार की स्फूर्ति हो रही थी….वो अपने नील सुन्दर को देख रहे थे …और आनन्द सिन्धु में डूब रहे थे …तभी कुछ चिड़ियों की चहक उन्हें सुनाई देती है ….तो वो ऊपर की ओर देखते है …और आनंदित हो उठते हैं ….क्यों कि इन्हें उस चहक में भी श्याम सुन्दर का ही आभास होने लगा था…वो वृक्ष में देखते हैं ..जिस वृक्ष में वो चिड़ियायें बैठी हुई थीं ….वो वृक्ष और चिड़ियाँ सब इन्हें श्याम सुन्दर ही दिखाई देने लगते हैं …..फिर इन्होंने आकाश को देखा तो आकाश में भी ….ये बड़े प्रसन्न हो उठे ….फिर इन्होंने मन्द सुगन्ध वायु का अनुभव किया तो वायु में भी उन्हीं के श्रीअंग की सुगन्ध आरही थी …..ओह ! बिल्वमंगल अब यमुना को देखते हैं ….उसमें भी मानों श्याम सुन्दर ही बह रहे हैं जल के रूप में , बिल्वमंगल को ऐसा लगता है । इतना ही क्यों आगे पीछे दाएँ बाएँ …हर जगह श्याम ही श्याम । ये फिर क्या हो गया ! बिल्वमंगल को लगता है …कहीं मेरा भ्रम तो नही है ? नही नही , भ्रम क्यों होगा , बिल्वमंगल संभलते हैं । मेरे ये नेत्र कहीं धोखा तो नही खा रहे ? बिल्वमंगल को फिर संदेह होता है । नही , नही ….एक या अनेक जो दिखाई दे रहे हैं इसके साक्षी तो ये नेत्र ही हैं । फिर संदेह कैसा ? दिखाई दे रहे हैं मुझे ….देखो ! आगये सामने मेरे …बिल्वमंगल के सामने श्याम सुन्दर आकर खड़े हो जाते हैं ….बिल्वमंगल अब आगे बढ़ते हैं …इन्हें अब छूना है ….स्पर्श करना है अपने प्यारे का । ये आगे बढ़ते हैं और जैसे ही छूना चाहते हैं ….एक हाथ आगे श्याम सुन्दर घिसक गए ऐसा बिल्वमंगल को लगता है …वो फिर पीछे देखते हैं ….पीछे भी श्याम सुन्दर खड़े हैं …मुड़कर श्याम सुन्दर को वो फिर छूना चाहते हैं ….लेकिन श्याम सुन्दर छुअन में आते नही हैं ……ये बहुत समय तक चलता है …बिल्वमंगल दौड़ते हैं …आलिंगन करने के लिए …फिर दौड़ते हैं …स्पर्श के लिए …फिर दौड़ते हैं ….चूमने के लिए … वो दिखाई तो देते हैं …लेकिन छूने में नही आते । थक जाते हैं ….बैठ जाते हैं बिल्वमंगल और रोने लगते हैं ……यहाँ रोते हुए बिल्वमंगल कहते हैं – अम्ब’ यानि हे मैया , ये तो तो छूने में भी नही आरहा ….कहते हैं । मैया ? मैया सम्बोधन क्यों और किसके लिए ?

देखो ! जब व्यक्ति अतिशय विषाद में डूब जाता है …तब वो – हाय मैया ! या हाय अम्मा आदि कहता है …इसी तरह बिल्वमंगल यहाँ इस शब्द का प्रयोग करते हैं । किन्तु कुछ विद्वानों ने ये भी माना हैं कि सन्यास लेने से पूर्व बिल्वमंगल देवि भगवती के उपासक थे …फिर शैव बनें ….सन्यासी हो गए । लेकिन कहीं कहीं साधकों में देखा जाता है कि वो पूर्व के आराध्य को भूल नही पाता ….यहाँ मानों अतिशय विषादग्रस्त बिल्वमंगल जब हो जाते हैं ….तब वो अपनी पूर्व आश्रम की आराध्या भगवती को याद करते हैं ….

श्याम सुन्दर इनके प्राण प्रियतम हैं …जीवन सर्वस्व हैं …किन्तु ये ‘किशोर’ मानते हैं ….इसलिए अपने ‘श्रीकृष्णकर्णामृत’ में ये बारम्बार श्याम सुन्दर को ‘बालक’ कहते हैं । अब वो बालक है तो उससे क्या कहें ! इसलिए वो भगवती को ही कहते हैं …हे अम्ब ! देखो ना …वो मेरे छूने में भी नही आरहा ….ये क्या लीला है मैया ! ऐसा भी टीकाकारों ने कहा है । वैसे तो मैं यही कहता हूँ कि व्यक्ति विषाद ग्रस्त होता है …तो वो हाय मैया ! हाय दैया ! हे अम्मा ! आदि सम्बोधन करता है ।

बिल्वमंगल से किसी ने कहा ….जब सब जगह तुम्हारा प्यारा दिखाई दे रहा है ….तो देखो उसे और आनंदित हो जाओ ।

बिल्वमंगल कहते हैं …..तुम अभी भी नही समझे ? अब मुझे उसे देखना ही नही है …छूना है ….उसके दिव्य मधुर श्रीअंग को छूना है । बिल्वमंगल कहते हैं …तुम शायद प्रेम को समझते नही हो ….इसलिए ये सब कह रहे हो ….प्रेम स्थिर नही रहता …वो अस्थिर है । तुमने देखा …तो अब तुम्हें लगेगा उसे छूँ । मुझे यही लग रहा है …बिल्वमंगल कहते हैं ..उसे आलिंगन करूँ । किन्तु ….ओह ! मैं जान नही पा रहा ये क्या हो रहा है । ये क्या रहस्य है । बिल्वमंगल बहुत रोते हैं यहाँ पर ।

क्रमशः….

Hari sharan

admin
Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

Leave a Comment

Advertisement
लाइव क्रिकेट स्कोर
कोरोना अपडेट
पंचांग