श्री. सीताराम शरणम् मम 128(1),“श्रीकृष्णसखा ‘मधुमंगल’ की आत्मकथा-73 ,74 & 75” श्री भक्तमाल (176) तथा “!! कर्म – प्रारब्ध !! : निरु आशरा

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Niru Ashra: 🙏🥰 श्री सीताराम शरणम् मम 🥰 🙏
🌺भाग >>>>>>>>1️⃣2️⃣8️⃣🌺
मै जनक नंदिनी ,,,
भाग 1

 (माता सीता के व्यथा की आत्मकथा)

🌱🌻🌺🌹🌱🥰🌻🌺🌹🌾💐

“वैदेही की आत्मकथा” गतांक से आगे –

मैं वैदेही !

कल दिन भर नही आयी त्रिजटा ……….

मैं परेशान अशोक उद्यान में इधर उधर घूमती रही….परेशान होती रही ।

आयी भी तो रात्रि में ……वो भी छुप छुपाके ।

आते ही पहले तो मुझ से गले लग कर रोई ……खूब रोई ………बोली –

रामप्रिया ! नगर में आपके मृत्यु की चर्चा है …….मेघनाद नें आपको मार दिया ……….!

पर त्रिजटा की इस बात पर मैने ज्यादा ध्यान नही दिया ……त्रिजटा !

तू क्यों नही आयी ? मैं सुबह से तेरी प्रतीक्षा कर रही हूँ ।

रामप्रिया ! मैं अब पहले की तरह नही आसकती …………..

क्यों ? तू क्यों नही आसकती ………..तुझे तो रावण …


[] Niru Ashra: “श्रीकृष्णसखा ‘मधुमंगल’ की आत्मकथा-73”

( श्री कृष्णसखान कौ प्रेम )


कल से आगे का प्रसंग –

मैं मधुमंगल ….

आज तौ विचित्र है गयौ …ब्रह्म मुहूर्त में ही सबरे गोप बालक “बृजराज भवन” में ठाढ़े हैं ।

मैंने ही देखी उनकी भीड़ ….भीड़ ? हाँ भीड़ । अर्जुन नामकौ गोप हो …..मैंने बाते पूछी ….चौं आए हो इतनी सुबह ? तौ अर्जुन बोलो …..आज हमारौ कन्हैया बच्छ चरायवे जायगौ ! जा लिए हम सबेरे आय गये ……मैंने हँसते भए कही …..इतनी जल्दी आयगए ….अभी तौ कन्हैया सोय रो है । कोई बात नही …हम बैठे रहेंगे …..जब जागेगौ तब हम साथ में जाँगे बच्छ चरायवे ….सब गोप यही बात बोल रहे हे ।

हमारी शब्द ध्वनि तेज भई तौ भीतर ते मैया आयीं ……इतनी सुबह चौं आए हो ? बच्छ चरायवे …..मैंने हँसते भए मैया ते कही ।

हे भगवान ! मै…
[] Niru Ashra: “श्रीकृष्णसखा ‘मधुमंगल’ की आत्मकथा-74”

( बच्छ चरावन जात कन्हैया )


कल से आगे का प्रसंग –

मैं मधुमंगल ……

तुम लोग कलेवा करोगे ? लो , बैठे बैठे माखन रोटी खाय ल्यो । मैया बृजरानी ने जब देख्यो कि बहुत देर ते बाहर प्रतीक्षा में ग्वाल बालक बैठे हैं …तौ मैया माखन रोटी लै गयी और पूछ के सामने रख दियौ …और बोलीं ….खाओ …..और देखो बालकों ! अभी समय लगैगौ , कन्हैया जगौ नही है । तभी पीछे ते चिल्लायौ एक सखा ….कन्हैया जाग गो …कन्हैया जाग गो । मैया ने देखी जा सखा ने तौ झरोखे तै कन्हैया कूँ कंकड़ मार के जगाय दियौ हो …..मैया बा सखा कूँ डांटती भई …..दौड़ी भीतर ……कन्हैया उठो है …..अंगड़ाई लै रो है …..बिखरे केश…..कितने सुन्दर लग रहे हैं ….और अलसाये उन कमल नयन की शोभा बड़ी ही रसपूर्ण लग रही है ।

“मैया बच्छ …
[] Niru Ashra: “श्रीकृष्णसखा ‘मधुमंगल’ की आत्मकथा-75”

( राम कृष्ण की सुन्दर झाँकी )


कल से आगे का प्रसंग –

मैं मधुमंगल ….

या श्रीवन में विहरते ….बच्छ चारण में आनन्द बिखेरते ….अस्तित्व में रस बाँटते ….जे राम कृष्ण प्रसन्नता पूर्वक श्रीवन मे विचरण कर रहे हैं । जाने या झाँकी कौ दर्शन कर लियौ …बाकूँ कछु ओर दर्शन की आवश्यकता अनुभव होवे नही है । वो पूर्ण तृप्त है जाए है । अजी ! मेरी बात समझ में आय रही है ना ? तुम्हारे नयनन की शोभा याही में है कि हम इन नयनन ते इन युगल झाँकी कौ दर्शन करें । सुनौं – मन कूँ लै चलौ बाही ठौर जहां ये दोनों खेल रहे हैं …..चलौ ।

छोटे छोटे बछड़े और बछिया हैं …कन्हैया और दाऊ भैया इनके संग खेल रहे हैं …कभी बछिया कूँ चूम रहे हैं कन्हैया …कभी कोमल कोमल दूब अपने हाथन ते तोड़ के बछियन कूँ खिलाय रहे हैं ।

[] Niru Ashra: ( “प्रश्नोपनिषद”- चतुर्दश )

!! साधक – साधना !!


( “पतिदेव गुरु स्त्रीणां” स्त्रियों को गुरु नही बनाना बनाना चाहिये… क्यों कि उसके गुरु स्वयं पतिदेव ही होते हैं ।

गीताभवन के गंगा घाट पर चार पाँच लोग बैठे हैं… एक पण्डित जी मध्य में बैठकर बोल रहे हैं… कहें तो सत्संग कर रहे हैं ।

मैं बैठा ध्यान कर रहा था मेरे कान में ये बात बारबार जा रही थी ।

मेरे मन को ये प्रश्न उद्वेलित करने लगा… क्या ये सत्य है ? क्या स्त्रियों को गुरु नही बनाना चाहिये ? क्या स्त्री को आध्यात्मिक प्रगति नही करनी चाहिये । या उनको ये अधिकार ही नही है !

“पति ही गुरु होता है स्त्री का”… उन पण्डित जी ने फिर कहना शुरू किया… पतिव्रता तो पति को छोड़कर भगवान को भी नही पूजती “

ये बात और विचित्र कह दी थी उन पण्डित जी ने… “मुझे लगता है ये माहात्म्य वाक्य है कोई विधि वाक्य नह…
[

Niru Ashra: श्री भक्तमाल (176)


भगवती मूलप्रकृति का तुलसीरूप में अवतरण और तुलसी माहात्म्य । (भाग-03)

तुलसीपत्र से रहित संध्या वन्दन कालातीत संध्या की तरह निष्फल हो जाता है । तुलसी कानन के मध्य में तृणों अथवा वल्कलवृन्दो से भी भगवान विष्णुके मन्दिर का निर्माण कर जो उसमें भगवान् विष्णु को स्थापित करता है तथा उनकी भक्ति में निरन्तर लगा रहता है ,वह भगवान् विष्णुके साम्य (सारूप्यमुक्ति) क्रो प्राप्त करता है । जो व्यक्ति तुलसीवृक्ष को भगवान् विष्णुके रूपमें समझकर तीन प्रकार ( शरीर, मन और वाणी) से उन्हें प्रणाम करता है, वह भगवान् विष्णुके साम्य (सारूप्यमुक्ति) को प्राप्त करता है । सुरासुरजगदगुरों ! देवदेवेश । आपको नमस्कार है । अनघ !इस भयावह संसार से मेरी रक्षा कीजिये आपको नमस्कार है ।

महामते ! जो व्यक्ति बुद्धिपूर्वक तीन बार अथवा सात बार प्रदक्षिणा करके संसारसे उद्…

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