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June 24, 2025 7:05 am

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श्री. सीताराम शरणम् मम 127(3),“श्रीकृष्णसखा ‘मधुमंगल’ की आत्मकथा-74” श्री भक्तमाल (175) तथा “!! कर्म – प्रारब्ध !! : निरु आशरा

🙏🥰 श्री सीताराम शरणम् मम 🥰 🙏
🌺भाग >>>>>>>>1️⃣2️⃣7️⃣🌺
मै जनक नंदिनी ,,,

[23:20, 3/5/2025] Niru Ashra: (माता सीता के व्यथा की आत्मकथा)

🌱🌻🌺🌹🌱🥰🌻🌺🌹🌾💐

“वैदेही की आत्मकथा” गतांक से आगे –

मैं वैदेही !

सूर्योदय से पूर्व हिमालय से …उत्तर दिशा से संजीवनी बूटी आजाये तो ये ………पर ये सम्भव नही है – सुषेण नें कहा ।

क्यों सम्भव नही है ! ………………..मैं लेकर आऊंगा ……..

“मैं प्रभु श्रीराम के चरणों की सौगन्ध खा कर कहता हूँ ……….ये हनुमान सूर्योदय से पहले ही संजीवनी लेकर आएगा …………।

इतना कहकर हनुमान उड़े……..पर उड़ते हुए ये भी कहा है ……प्रभु ! अगर सूर्य उदित होनें लगे तो आज फिर बचपन की घटना को दोहराऊंगा ………….सूर्य को फिर खा जाऊँगा ।

हनुमान तीव्र गति से उड़ गए ……….. उत्तर दिशा की ओर …
Niru Ashra: “श्रीकृष्णसखा ‘मधुमंगल’ की आत्मकथा-74”

( बच्छ चरावन जात कन्हैया )

कल से आगे का प्रसंग –

मैं मधुमंगल ……

तुम लोग कलेवा करोगे ? लो , बैठे बैठे माखन रोटी खाय ल्यो । मैया बृजरानी ने जब देख्यो कि बहुत देर ते बाहर प्रतीक्षा में ग्वाल बालक बैठे हैं …तौ मैया माखन रोटी लै गयी और पूछ के सामने रख दियौ …और बोलीं ….खाओ …..और देखो बालकों ! अभी समय लगैगौ , कन्हैया जगौ नही है । तभी पीछे ते चिल्लायौ एक सखा ….कन्हैया जाग गो …कन्हैया जाग गो । मैया ने देखी जा सखा ने तौ झरोखे तै कन्हैया कूँ कंकड़ मार के जगाय दियौ हो …..मैया बा सखा कूँ डांटती भई …..दौड़ी भीतर ……कन्हैया उठो है …..अंगड़ाई लै रो है …..बिखरे केश…..कितने सुन्दर लग रहे हैं ….और अलसाये उन कमल नयन की शोभा बड़ी ही रसपूर्ण लग रही है ।

“मैया बच…
Niru Ashra: श्री भक्तमाल (175)


भगवती मूलप्रकृति का तुलसीरूप में अवतरण और तुलसी माहात्म्य । (भाग-02)

इधर जब तुलसी को श्रीहरिद्वारा अपने सतीत्व भंग और शंखचूड के निधन की जानकारी हुई तो उसने श्रीहरि को शाप देते हुए कहा – हे नाथ ! शंखचूड आपका भक्त था, आपने अपने भक्त को मरवा डाला । आप अत्यन्त पाषाणहृदय हैं, अत: आप पाषाण हो जायँ । भगवान् श्रीहरिने उसके शाप को स्वीकार करते हुए कहा-हे देवि ! शंखचूड मेरे नित्यधाम गोलोकमें गया है; अब तुम भी यह शरीर त्यागकर गोलोकको जाओ । तुम्हारा यह शरीर नदीरूपमे परिणत होकर गण्डकी के नामसे प्रसिद्ध होगा । मैं तुम्हरि शाप को सत्य करनेके लिये भारतवर्षमें पाषाण (शालग्राम) बनकर तुम्हारे (गण्डकी नदीके) तटपर ही वास करूँगा । गण्डकी अत्यन्त पुण्यमयी नदी होगी और मेरे शालग्रामस्वरूप के
जलका पान करनेवाला समस्त पापोंसे निर्मुक्त होकर विष्णुलोक को चला…
]

Niru Ashra: (“प्रश्नोपनिषद”- त्रयोदश )

!! साधक – साधना !!


( साधकों ! गंगा के किनारे बैठा हुआ था मैं… बड़ा सहज और शान्त मन था… निर्मलता गंगा की तरह थी मेरे अन्तःकरण की… ये प्रभाव मेरा नही… इस स्थान का था ।

“गुरु बिन होई न ज्ञान”

उन गुरु ने रटी रटाई बात कहनी शुरू की… उनके साथ कई लोग थे… उन लोगों के गले में अपने इन्हीं तथाकथित गुरु के चित्र की लॉकेट थी…

“हमारे स्वामी श्रीराम सुखदास जी कहते हैं… गुरु के पीछे मत पड़ो भगवान के पीछे पड़ो”…

वो पुजारी थे… एक शिवालय के… जो गीता भवन के पास में ही है… वृद्ध थे… “मैंने बहुत सान्निध्य पाया है स्वामी जी का”… इस बात का उन्हें आनन्द था ।

ऐसे सन्त स्वामी श्री राम सुखदास जी जैसे… मैंने नही देखे ।

कोई फोटो नही… अपना कोई फोटो नही खिंचाया… अपने पैर नही छुवाये… बताइये ! बड़ी बात नही है ? उन्…

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Author: admin

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