श्री सीताराम शरणम् मम 134 भाग1, अजामिल प्रसंग एवं नामकी महिमा (अन्तीम) भाग7 तथा साधको के लिये: Niru Ashra

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[] Niru Ashra: श्री सीताराम शरणम् मम 🥰 🙏
🌺भाग >>>>>>>>1️⃣3️⃣4️⃣🌺
मै जनक नंदिनी ,,,
भाग 1

 (माता सीता के व्यथा की आत्मकथा)

🌱🌻🌺🌹🌱🥰🌻🌺🌹🌾💐

“वैदेही की आत्मकथा” गतांक से आगे –

मैं वैदेही !

त्रिजटा ! आज युद्ध नही हो रहा ?

मैने जब कोई भेरी या दुन्दुभी की आवाज नही सुनी ……तो पूछ लिया ।

नही ……….आज रावण गया है सुतल लोक ………त्रिजटा नें कहा ।

सुतल लोक क्यों ?

दैत्यगुरु शुक्राचार्य से प्रार्थना करनें ……………।

मैं सोच में पड़ गयी थी ……….पर त्रिजटा नें ही मेरा समाधान किया ।

मृतसंजीवनी विद्या उन्हीं को ही आती है ……….और रावण उस विद्या का प्रयोग करवा के राक्षसों को जीवित रखना चाहता था ।

त्रिजटा नें बताया ………..गुरु शुक्राचार्य नें रावण की बातें माननें से मना कर दिया है ।


क्यों आय…
[] Niru Ashra: || श्री हरि: ||
— :: x :: —
अजामिल – प्रसंग एवं नाम की महिमा
( पोस्ट 7 अन्तिम )
— :: x :: —
गत पोस्ट से आगे ……..
इस प्रकार एक बार के नामोच्चारण की भी अनन्त महिमा शास्त्रों में कह गयी है | यहाँ मूल प्रसंग में ही – ‘एकदापि’ कहा गया है; ‘सकृदुच्चरितम’ का उल्लेख किया जा चुका है | बार-बार जो नामोच्चारण का विधान है वह आगे पाप न उत्पन्न न हो जायँ, इसके लिये हैं | ऐसे भी वचन मिलते हैं कि भगवान् के नाम का उच्चारण करने से भूत, वर्तमान और भविष्य के सारे ही पाप भस्म हो जाते हैं | यथा –
वर्तमानं च यत पापं यद भूतं यद भविष्यति |
तत्सर्वं निर्दह्त्यासु गोविन्दानलकीर्तनम ||
‘फिर भी भगवत्प्रेमी जिव को पापों के नाश पर अधिक दृष्टि नहीं रखनी चाहिये; उसे तो भक्ति-भाव की दृढ़ता के लिये भगवान् के चरणों में अधिकाधिक प्रेम बढ़ता जाय, इस…


[] Niru Ashra: (साधकों के लिए)

प्रिय ! क्षिति जल पावक गगन समीरा
पञ्च रचित अति अधम शरीरा…
(श्री रामचरित मानस)

मित्रों ! श्री कबीर दास जी ने मगहर में
अपना शरीर क्यों छोड़ा?
काशी में जीवन बिताने के बाद मरते समय मगहर
क्यों ?… काशी में मिलने वाली मुक्ति क्या
श्री कबीर दास जी को नही चाहिए थी ?… आज
पागलबाबा के साथ स्नान करने के लिए यमुना जी
गया…प्रातः के 3 बज रहे थे…अँधेरा ही
था… ये प्रश्न मैंने यमुना जी में स्नान को
जाते हुये पूछा था… बाबा बोले… श्री
कबीर दास जी श्रीराम को अपने में देखते थे
…और
श्रीराम को ही अपना मानते थे… मात्र शरीर ही
कबीर था… बाकी उनका अन्तःकरण रामाकार वृति
वाला बन चुका था… उनका मन उनकी बुद्धि उनका
चित्त सबही… राममय था… तो जब अन्तःकरण
ही जिसका राममय हो… उसे काशी क्या और मगहर
क्या ?… बाबा बोले – कबीर दास जी ने ये
दिखाया
कि अन्तःकरण का खेल है सब… अन्तःकरण अगर
राममय है… तो फिर सारे भेद ख़त्म हो जाते हैं
। बाबा बोले… गीता प्रेस के
श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी थे ना… वह तो
वृन्दावनीय उपासना में ही लीन रहते थे… पर
जब उन्होंने गोरखपुर में ही देह त्यागने का
निश्चय किया तब लोगों ने उनसे कहा… आप तो
जीवन भर “वृन्दावन वृन्दावन” करते रहे… अब
अंतिम समय में तो “धाम वास” कीजिये… तब
श्री पोद्दार जी महाराज ने कहा था… मेरा शरीर
वृन्दावन में रहेगा तो मन में गोरखपुर और
गीताप्रेस की व्यवस्था याद आती रहेगी… पर
शरीर अगर गोरखपुर में रहेगा तो मन वृन्दावन में
ही जायेगा…इसलिए मेरे लिए मुख्य है
…मेरा अन्तःकरण… और अन्तः करण कहते हैं
…मन, बुद्धि, चित्त और अहँकार को । मैंने
कहा… फिर ये धाम वास करना… और तीर्थ या
धाम में शरीर छोड़ना इसका महत्व ?… बाबा
बोले हरि !… हम जैसे बच्चे साधकों के लिए
…हम जैसे अबोध साधकों के लिए धाम में
जाना… जहाँ की ऊर्जा हमें और साधना करने के
लिए प्रेरित करे… वहाँ जाकर रहना
…हमारा अन्तःकरण पवित्र होगा… साधना
और बनेगी… पर हरि ! कबीर दास जी जैसे
महापुरुषों के लिए धाम की कोई आवश्यकता नही है
…ये लोग तो मगहर को भी काशी बनाने का
सामर्थ्य रखते हैं… ।

यमुना जी में गये
…बाबा ने स्नान किया… माथे में यमुना जी
का रज लगाया… और ध्यान करने बैठ गये
…मैं स्नान करके आया… जप किया
…फिर शान्त भाव से ध्यान में बैठ गया ।
अब ध्यान खुला… बाबा ने भी आँखें खोलीं
…5 बज रहे थे… हम लोग डेढ़ घण्टे तक आज
ध्यान किये… मैंने बाबा से पूछा – जीवन में
दुःख आए ही नही…
बाबा ! जीवन में आत्यंतिक दुःख मृत्यु ही है
…और
मृत्यु का दुःख ही सबसे बड़ा दुःख है… उसी
का भय जीवन में छाया रहता है… क्या बाबा इस
दुःख से मुक्ति का कोई उपाय नही है ?
…बाबा बोले… देह भाव से ऊपर उठने का
अभ्यास बनाओ… मैं देह नही हूँ… इस भाव
को पुष्ट करो… “मैं ये मिथ्या देह कैसे हो
सकता हूँ”… इस सत्य को आगे बढ़ाओ
…इसका निरन्तर अभ्यास करो… कैसे
बाबा ! कैसे ?… बाबा बोले – हरि !
मैंने कुछ दिन पहले तुम से कहा था ना… कि
तुम्हारे मन में जो भी विचार आरहे हैं… वो
सब इस संसार को संचालित करने वाली प्रकृति के
3 गुणों से ही आरहे हैं…और इसी तीन गुणों
में मनुष्य डूबता है फिर उबरता है
…कभी सत्वगुण में स्थित होता है
…कभी रजोगुण में… कभी तमोगुण में
…तुम एक अभ्यास करो ..कि ये सब जो भी
तुम्हारे मन में आरहा है… तुम उससे प्रभावित
नही हो… तुम इन से विचलित नही हो सकते
…कभी शान्त हो… तो कभी अशान्त ..कभी
क्रोध में हो… तो कभी घोर आलस्य में
…बस यही तुम्हें सुख दुःख में डालते रहते
है… पर तुम ये कुछ नही हो… तुम क्या
हो… “चेतन, अमल, सहज सुख
रासि”…बाबा गूढ़ बातें भी बहुत सहजता और
सरलता से बता देते हैं… बाबा बोले
…तुम जड़ नही हो… पर ये शरीर जड़ है
…तुम देखो… ये शरीर जड़ है
…पृथ्वी, जल , तेज़, वायु और आकाश इन सबसे
इस देह का निर्माण हुआ है… और ये सब इसी
में मिल जाएगा… ये जड़ है… पर तुम चैतन्य
हो… बाबा बोले… यही अभ्यास तो करना
है… कि मैं देह नही हूँ… बाबा बोले
…इस शरीर को जो मैं मानता है… वो न भक्त
है…न ज्ञानी है…ये शरीर मल मूत्र का
भांड है
…इसमें और कुछ भी नही है… ये हम
हैं ?… नही… हम ये शरीर हैं ही नही
…मुझे बड़े प्यार से बोले बाबा – हरि !
हमें अपनी परीक्षा स्वयं लेते रहना चाहिए
…हम साधना में कितने बढ़े हैं… या ऐसे
ही नाटक कर रहे हैं…इसकी परीक्षा स्वयं लो
…मैंने कहा… बाबा कैसे लें ?
तो …बाबा बोले… कोई तुम्हारा अपमान करे
…तो तुरन्त सावधान हो जाना और भगवान को
धन्यवाद देना कि आपने मुझे एग्जाम में बैठाया
है… अब मुझे अपने आपको साबित करना है
…कि मैंने कितनी पढ़ाई की है… कितनी
साधना की है । बाबा हँसे… और बोले
…आज से 30 वर्ष पहले की बात है… हरि !
जब हम युवक थे ना… तो साधना जम कर करते
थे… और गुरु जी ने कहा था कभी कोई अपमान
करदे या कोई गाली दे दे या कोई पीट भी दे
…तो उस समय मन में प्रसन्न होना कि चलो
…एग्जाम में ठाकुर जी ने बैठा दिया… अब
जम के एग्जाम देना है और पास होना है ।
बाबा हँसे और बोले…हम युवक थे… साधना का
जोश था… तो वर्ष में एक बार हमारे
उत्तर प्रदेश में कानपुर
के पास फीरोजाबाद है… वहाँ चूड़ियों का काम
होता
है… तो वर्ष में एक बार फीरोजाबाद जाना
होता था… गुरु जी भेजते थे… बनारस से
…एक गुरु भाई थे… उनको दवाई इत्यादि
देने के लिए… तो बाबा बोले… वहाँ हम
एक खतरनाक प्रयोग करते थे…चूड़ियों को बेचने
के लिए ठेला लेकर लोग जब निकलते थे… तो
मैं किसी एक का चूड़ियों का ठेला जानबूझ के
गिरा देता था… पूरी चूड़ियाँ टूट जाती थीं
…फिर हमारी पिटाई होती थी… कोई गाली
देता… कोई मारता… और उस समय हम मन को
मजबूत करके ये सोचते कि ये लोग जिसे मार रहे
हैं… ये लोग जिसे गाली दे रहे हैं…वो मैं
थोड़े ही हूँ… मैं तो चिन्मय तत्व हूँ
… मेरा शरीर पिट रहा
हैं… और मैं उसे देख रहा हूँ… । बाबा
बोले ये मैं अभ्यास करता था… पर एक बार मैं
पिट रहा था तो मेरे गुरु भाई ने देख लिया
…मुझे छुड़वाया… और मुझे बहुत डांटा ।
उसके बाद ये प्रयोग करना मैंने छोड़ दिया ।
बाबा बोले… जीवन में अगर सच में
ही दुःख से छुटकारा पाना चाहते हो तो ये
पक्की बात मेरी मान लो ..कि तुम ये शरीर नही हो
…कोई भी अपमान करता है… तो शरीर का करता
है… तुम्हारा नही… कोई गाली भी देता
है… तो तुम्हारे शरीर को देता है… तुम्हें
नही ..। कोई मारता भी है तो तुम्हारे शरीर
को मारता है… तुम्हें नही मार सकता… ।
बाबा बोले… देहातीत होने का अभ्यास बनाकर
रखो… तुम वो नही हो जिसमें निरन्तर
परिवर्तन आरहा है… तुम वो हो जो
अपरिवर्तनशील है… जो एक रस है… । तुम
जिससे विचलित होते हो… सुख दुःख… वो सब
मन की भ्रान्ति हैं… और कुछ नही ।
बाबा बोले… बेकार की बातें हैं ये… कि
शनि दुःख देता है या… राहु… या केतु
…बाबा बोले… कोई दुःख नही देता
…दुःख सुख मात्र तुम्हारा मन ही देता है
…देवता सुख दुःख नही देते… तुम्हारा
मन ही सुख दुःख देता है… समय भी सुख
दुःख नही देता… मन ही देता है
…तुम्हारे रिश्तेदार भी सुख दुःख नही देते
…मन ही देता है सुख दुःख । बाबा बोले
…ये बहुत गूढ़ बातें हैं… ।
इसलिए हरि ! ये अभ्यास बनाओ कि कभी भी सुख या
दुःख आये तो तुरन्त सोच लो कि… मन में
सत्व गुण बढ़ गया… ओह ! देखो ! आज सत्व
गुण बढ़ गया,… फिर विचार करो… सत्व गुण के
कारण हमारे में उल्लास उमंग स्फूर्ति ये सब
आरही है… पर ये सब रहने वाली नही है
…क्यों कि अभी तो सत्व गुण का प्रभाव है
…पर मैं तो इससे मुक्त हूँ… मैं तो
देख रहा हूँ… अब तुम्हारे मन में आगया क्रोध
…कर्म को आक्रामकता से करने की वृत्ति मन
में आगई…
…तो सोच लेना… अच्छा अब रजोगुण आगया
…पर मैं तो मुक्त हूँ… ये क्रोध
भी जिसे आरहा है… मैं वो नहीं हूँ… मैं तो वो
हूँ जो क्रोध को देख रहा है… और अब आलस
आगया… आलस से मैं भर गया… सुस्ती आरही
है… तब सोच लेना… तमोगुण आगया
…पर मैं तो ये सब नही हूँ… बाबा गूढ़
बातें बताते रहे… और मैं एक एक शब्दों को
पीता रहा… । बाबा बोले… मैं
सच कह रहा हूँ… ये अभ्यास अगर जम के किया ना
…तो मरेगा भी तो तुम्हारा शरीर ही मरेगा
…तुम नही मरोगे…तुम मृत्यु को
देखोगे…। बाबा से मैंने कहा… क्या
ऐसा होता है ?… बाबा हँसे… बाबा ने कहा
…मेरा ऑपरेशन डॉ. कर रहा था… बेहोशी
का इंजेक्शन देने लगा तो मैंने कहा… मत दो
ऐसे ही कर दो ऑपरेशन… डॉ. बोला ये नही हो
सकता… बाबा बोले… मैं “राधा राधा”
बोलूँगा और
बोलते हुये जब मेरी आँखें बन्द हो जाएँ…
तभी तुम ऑपरेशन कर देना… बाबा बोले… हरि
!
एक तुच्छ इंजेक्शन में इतनी ताकत है कि
देह सुध भुला दे… तो क्या भगवन् नाम में
ताकत नही है कि देहातीत अवस्था में पहुँचा दे ।
बाबा बोले… अभ्यास करो… मैं देह
नही हूँ… मै चिन्मय हूँ… और
हरिनाम का आसव पीते रहो… देह से परे
हो जाओगे ।

“ग़म और ख़ुशी का फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ,
मैं खुद को उस मुक़ाम पे लाता चला गया”

Harisharan

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