भगवान ब्रह्माण्ड के संस्थापक, निर्वाहक और संहारक हैं ।”न तो कुछ भी उनके बराबर है और न ही कुछ उनसे श्रेष्ठ है।”
यह स्पष्ट हैं कि ,उनसे बढ़कर कोई दूसरा परम सत्य नहीं है। सब कुछ उनमें ही गुंथा हुआ है, जैसे मोतियों के समूह किसी एक धागे में पिरोए हुए हों। वे साक्षात मूल और सभी अस्तित्वों के आधार परम प्रभु श्रीकृष्ण के अपने सर्वोच्चता और सभी पर अपने आधिपत्य हैं। वे सृष्टि में व्याप्त सभी तत्त्वों के आधार हैं। जीवात्मा अपनी इच्छा के अनुसार कर्म करने में स्वतंत्र होते हैं लेकिन उसकी शक्ति उन्हें केवल भगवान द्वारा प्राप्त होती है, जो सभी पालन-पोषण करते हैं और सभी स्थित होते हैं।
जो श्रीकृष्ण को परम सत्य के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं और यह कल्पना करते हैं कि अन्य निराकार सत्ताएं भी स्थित ही हैं। साकार आदर्श रूप में श्रीकृष्ण ही अंतिम परम सत्य हैं।
प्रथम पूज्य ब्रह्मा श्रीकृष्ण से की प्रार्थना करते हैं ।
ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानंद विग्रहः।
अनादिरादिर्गोविंदः सर्वकारणम्।।
(ब्रह्मसंहिता-5.1)
“श्रीकृष्ण ही परम प्रभु हैं। वह नित्य, अविनाशी और परम आनंद स्वरूप हैं। उनका कोई आदि और अंत नहीं है। वे सभी उद्गम और सभी गुणों के कारण हैं।”


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