सूर्य और चंद्रमा मुझसे ही अपनी प्रभा प्राप्त करते हैं।मैं तेज हूँ प्रकाश हूँ जल का स्वाद हूँ और मैं वेदों मंत्रों का पवित्र अक्षर ॐ हूँ । मैं आकाश में गूंजने वाली शब्द -ध्वनि हूँ और मनुष्यों का पुरुषत्व क्षमता हूँ।
यानी भगवान, हर चीज़ के सार में वही विद्यमान हैं। संक्षेप में, भगवान हर चीज़ के मौलिक गुण और उसके अस्तित्व का आधार हैं, और हर चीज़ उन्हीं में निहित है।
इस संसार में विद्यमान सभी वस्तुओं के मूल, पालनकर्ता और आधार हैं।
हम जो भी फल खाते हैं उसका मीठा स्वाद उसमें फ्रुक्टोज़ या फल शर्करा की उपस्थिति की पुष्टि करता है। इसी प्रकार, भगवान अपनी सभी शक्तियों में विद्यमान हैं। वे जल का स्वाद हैं। इसका अर्थ है की जल का अपना कोई स्वाद नहीं होता। फिर भी, ठोस, अग्नि और गैस जैसे अन्य पदार्थों को अपना स्वाद बनाए रखने के लिए द्रवों की आवश्यकता होती है।
हम जीभ पर कोई खाद्य पदार्थ रखने से स्वाद महसूस होता है, हमारे मुँह की लार हमें अपनी जीभ की स्वाद कलिकाओं द्वारा अनुभव किया जाने वाला स्वाद महसूस होने लगता है। आखिर पानी के स्वाद को पानी से कौन अलग कर सकता है? इसीलिए श्रीकृष्ण कहते हैं कि वे स्वयं जल में स्वाद हैं। जल का यह स्वाभाविक गुण है कि वह सभी पदार्थों का स्वाद अपने में समाहित कर लेता है; जल के बिना स्वाद नहीं होगा।
अंतरिक्ष में ध्वनि भगवान की ऊर्जा है ।आकाश ध्वनि का वाहन है। ध्वनि के रूपांतरण के कारण विभिन्न भाषाएँ बनती हैं। इन सबका मूल हैं भगवान, क्योंकि । वे ॐ अक्षर हैं , जो वैदिक मंत्रों में सबसे महत्वपूर्ण ध्वनि है। सूर्य और चंद्रमा उनसे ही समहित हैं। मनुष्यों में प्रकट होने वाली सभी क्षमताओं के लिए भी, वे ही परम ऊर्जा स्रोत हैं। जय श्री जगन्नाथाय नमो नमः🙏



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