श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! प्रेमसिद्धा गोपियाँ !!
भाग 1
सखियों ! इस मधुर मोहक स्वर को सुनकर मुझे तो ऐसा लगता है कि अपनें गुलाबी होंठों में श्याम सुन्दर नें बाँसुरी को रख उसमें अति उदारतापूर्वक फूँक मारकर अमृत को चारों ओर फैला दिया है ……..वायुमण्डल में ही प्रेम की सुवास फ़ैल रही है ….”वे” गोप गायों के साथ प्रवेश कर रहे हैं ……………..
बस इतना ही बोल पाई वो गोपी……अन्य सब गोपियों को रोमांच होंने लगा……..तात ! वो प्रेम की अद्भुत स्थिति थी ….उद्धव बोले ।
“कल चलेंगी” ………………….
सब गोपियों नें एक दूसरी से कहा था ।
कल जब श्याम सुन्दर आ रहे होंगे गौचारण करके तब उन्हें पास से जाकर देखेंगी ।
हाँ हाँ ……..अपनें अपनें घर से थोड़ा आगे ……………सखी ! घर से श्याम सुन्दर दीखते तो हैं ……..पर – परिवारी जन सब होंगे ।
गोपियों का अपना दर्द है ……….किसी को बताएं भी तो क्या ।
शरद प्रारम्भ हुआ है ………इस शरद ऋतु में वन की शोभा अद्भुत है ।
तात ! सब गोपियाँ तैयार हुयीं ……….रात भर सोई नही …..कहाँ नींद आएँगी !
सुबह से ही चित्त कृष्णाकार बन चुका है ।
शाम हुयी ……सब अपनें अपनें घरों से निकलीं …………जल भरनें के बहानें से……….तभी श्याम सुन्दर लौट रहे हैं………..उन्होंने बाँसुरी में फूँक क्या मारी ……………..
जहाँ थीं गोपियाँ वहीं रुक गयीं ……..उनके पद आगे बढ़ ही नही रहे …..उनकी धड़कनें तेज हो गयीं ………..अब बस ……..
कदम्ब का वृक्ष था ……..उसी की आड़ में खड़ी हो गयीं……….कोई भी गोपी बोल नही पा रही है……..पर हाँ ….चन्द्रावली बोली –
“पोली बाँसुरी में क्या उदारतापूर्वक फूँक मार रहे हैं श्याम सुन्दर !”
*क्रमशः…


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877