श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “वेणु गीत”- महारास की पृष्ठभूमी !!
भाग 1
तात ! आप ध्यान कीजिये –
उद्धव बोले । विदुर जी नें तुरन्त अपनें नेत्रों को बन्द कर लिया था ।
तात ! अब भाव जगत में जाकर उन गोपियों का अपनें हृदय में चित्र खींचिए …….
“अत्यन्त सुन्दर गोपियाँ सोलह श्रृंगार करके ….सज धज कर …..कदम्ब कुञ्ज पर आगयी हैं ……और प्रेम समाधि में जा भी चुकी हैं ।
चन्द्रावली की भावावस्था भंग हुयी……क्यों की कमल की तीव्र सुगन्ध नें चन्द्रावली को जगा दिया था …..और ये सुगन्ध जानी पहचानी थी……..ओह ! “तो श्रीराधा आई है” ……ये कहते हुए
मुँह बना लिया था चन्द्रावली नें ।……प्रेम में ईर्ष्या भी धन्य हो जाता है ।
“श्रीराधारानी” ….अपनी समस्त सखियों के साथ आज आगयीं थीं ।
तभी – श्याम सुन्दर की बाँसुरी बज उठी……..अब श्रीराधा भी वहीं की वहीं स्थिर हो गयीं ।
तमाल का कुञ्ज था ……तमाल का घना कुञ्ज था …….उसमें ही श्रीराधिका जी को बैठना पड़ा …..आगे चल ही नही पाईँ ……इनके भी नेत्र बन्द हो गए …….
मुस्कुराहट फ़ैल गयी मुखारविन्द पर…………
सखियों ! संसार में एक से एक वस्तु हैं ……जिन्हें हमारे नेत्र देखते रहते हैं ………पर देखना तो वही सार्थक है …..जो इस विश्व विमोहन श्याम सुन्दर को देखे……..आहा !
श्रीराधा रानी की सभी सखीयों के भी नेत्र बन्द हो गए थे ।
हे श्रीजी ! आगे बताओ …..श्याम सुन्दर कैसे लग रहे हैं ?
आहें भरते हुए सखीयों नें श्रीराधारानी से पूछा था ।
*क्रमशः ….


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