श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! आत्मरति का यह उत्सव – “रासपञ्चाध्यायी” !!
भाग 1
सायंकाल का समय – सूर्यास्त हो चुका था ।
समस्त दिशाएं अरुण हो रही थीं, मानों अनुराग अम्बर में उमड़ पड़ा था ।
शरद ऋतु ……..वायु सुरभित बह रही थी ………चारों और मल्लिका आदि पुष्प खिल रहे थे …….वृन्दावन आज पूरा सज धज गया था ।
पर मल्लिका ? विदुर जी नें उद्धव को टोका ।
ये मल्लिका पुष्प शरद में कहाँ खिलता है ? विदुर जी को लगा भाव में उद्धव मल्लिका का नाम बोल दिए ।
तात ! आपको क्या लगता है …..ये रास कोई आपके जड़ प्रकृति से संचालित रास है ? नही …….ये रास चैतन्य है ……जहाँ ये रास होनें वाला है ……वो वृन्दावन भी चैतन्य है…….यहाँ की अवनि भी चैतन्य है….यहाँ की यमुना, यहाँ के वृक्ष यहाँ के खग जीव …..सब चैतन्य हैं ।
उद्धव नें विदुर जी का “रास प्रसंग” स्पष्ट करते हुये कहा –
स्वयं श्यामसुन्दर का संकल्प – कि आज मैं रास करूँगा !
उनके संकल्प से ये सम्पूर्ण विश्व ब्रह्माण्ड तैयार हो जाता है …..तो एक मल्लिका खिल जाए तो क्या आश्चर्य ?
और – वृन्दावन की प्रकृति जड़ तो है नही …..चैतन्य है ।
यहाँ ऐसा नही है ……कि मोगरा और वेला ग्रीष्म ऋतु में ही खिलेंगे ……..नही ……..जब प्रेम देवता का संकल्प उठे …….तत्काल प्रकृति सेवा के लिये तैयार है ।
ये रास है ….महारास है ……….इसका मंचन होगा वृन्दावन में …..वृन्दावन ही रंगभूमि है इस रास की ।
पर ये रास है क्या ? विदुर जी प्रश्न करते हैं ।
उद्धव उत्तर देते हैं …तात ! योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं ……आत्माराम हैं वे ।
जैसे – कोई छोटा सा बालक अपनें ही प्रतिबिम्ब से खेलता है …….उस बालक को अपनी परछाईं से ही खेलनें में रस आता है ……..ऐसे ही ये आत्माराम श्रीकृष्ण अपनी आत्मा से ही रास करते हैं ।
ये अद्भुत है ! ये दिव्य लीला है ………ये गोपियां कौन हैं क्या श्रीकृष्ण की आत्मा नही हैं ? ये श्रीराधारानी कौन हैं क्या श्रीकृष्ण की आत्मा नही हैं ? और चाहे यमुना विहार लीला हो …या नौका विहार लीला …..सारी की सारी लीलाएँ क्या स्वयं में ही , स्वयं से ही खेली गयी लीला नही है ? उद्धव विदुर जी को तत्वतः समझा रहे हैं ।
तात ! आपको क्या लगता है ….क्या श्रीकृष्ण के सिवा और कुछ भी है इस जगत में ? सबकुछ श्रीकृष्ण ही कृष्ण तो हैं ………..
यहाँ कोई अन्य है ही नही ………इस रहस्य को प्रकट किया गया है रास विहार में …………सब स्वयं हैं ……..कोटि कोटि गोपियाँ सब श्रीकृष्ण हैं ……..श्रीराधा , श्रीकृष्ण हैं । अरे ! इतना ही नही ……ये वृन्दावन श्रीकृष्ण हैं ….यमुना श्रीकृष्ण हैं …..यहाँ के वृक्ष खग सब श्रीकृष्ण ही तो हैं …………उद्धव बोलते रहे भाव में – तात ! ये आत्मरति का एक महामहोत्सव स्वयं आत्माराम श्रीकृष्ण नें आयोजित किया है ।
मैं अतिशयोक्ति नही कह रहा – तात ! आत्माराम शब्द इस महारास से ही मिला है श्रीकृष्ण को ……….अपनी आत्मा श्रीराधा के साथ विहार करनें के कारण ही तो इनका नाम आत्माराम पड़ा ।
इतना कहकर कुछ देर के लिये उद्धव के शब्द मौन हो गए ……..फिर अपनें आपको सम्भाल कर बोलनें लगे थे ।
क्रमशः….


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