श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! जब प्रकट हुये वृन्दावन चन्द्र – “रासपञ्चाध्यायी” !!
भाग 1
ओह ! अब इन गोपियों से आगे चला नही जा रहा ….पूर्ण अशक्त हो गयीं थीं वे सब ……विरह नें इन सबको असहाय सा कर दिया था ।
गोपियाँ यमुना को देख रही थीं………वहाँ तक पहुँचें तो अपनें इस शरीर को ही त्याग दें , पर वहाँ तक पहुँचनें में भी ये सब अशक्त हो चुकी थीं ……….कोई कोई गोपी उठनें की कोशिश करती पर तुरन्त लड़खड़ाकर गिर जाती …….”वो रहे श्याम सुन्दर” कोई गोपी एकाएक चिल्ला उठती थी ………सब गोपी उस ओर जब देखतीं …….तो वहाँ तो अन्धकार है ……..अन्धकार को ही ये श्यामसुन्दर समझ कर पुकार रही थीं…………कुण्ठित होती जा रही थीं गोपियाँ …….”श्याम नही आये” …..”.श्याम क्यों नही आये ” ? विविध कल्पनाओं में ये रम रही थीं ………क्या हमें त्याग दिया श्याम नें ? क्या अब वे कभी हमारे पास नही आएंगे ? क्या हमसे इतना बड़ा अपराध बन गया ? सब गोपियाँ रोनें लगीं ।
उद्धव इस प्रसंग को सुनाते हुये स्वयं भाव में डूब गए थे ……..वे अपनें अश्रुओं को बारबार पोंछ रहे थे ……………..
रात बढ़ती जा रही है ……चन्द्रमा अब मध्य में आगया था ……….ये देखकर गोपियों को और रोना आरहा है ……….क्या करें ? सब गोपियों नें श्री राधारानी से पूछा । “कुछ करनें से वे कहाँ मिलते हैं ……सखी ! सब कुछ करके देख तो लिया ……….अब करना छोडो ……बस सब मिलकर रोओ ! वे रोनें से ही मिलेंगे” ।
श्रीराधारानी नें सबको बताया ।
सुर में सब रोनें लगीं ……..इनके रोनें में भी वीणा की झंकार थी ।
इनके साथ पूरा वृन्दावन रोनें लगा था …..वृक्ष रो रहे थे ….पक्षी रोनें लगे थे ………यमुना तो करुण भाव से भर ही गयी थी ।
क्रमशः ….
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