श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! जब प्रकट हुये वृन्दावन चन्द्र – “रासपञ्चाध्यायी” !!
भाग 2
श्रीराधारानी नें सबको बताया ।
सुर में सब रोनें लगीं ……..इनके रोनें में भी वीणा की झंकार थी ।
इनके साथ पूरा वृन्दावन रोनें लगा था …..वृक्ष रो रहे थे ….पक्षी रोनें लगे थे ………यमुना तो करुण भाव से भर ही गयी थी ।
तभी – नभ में एक चन्द्र था ही …..पर पृथ्वी में, यमुना के पुलिन में, गोपियों के मध्य में एक और चन्द्र प्रकट हो गया …..वृन्दावन चन्द्र ।
आनन्द के अश्रु झरनें लगे वक्ता उद्धव और श्रोता विदुर जी के ।
गोपियाँ तो पहले समझ नही पाईँ ……ये दिव्य तेज क्या है ?………..पर जब देखा ….पीताम्बर फहर रही है ……सिर में मोर मुकुट शोभायमान है ……….फेंट में बाँसुरी है……..टेढ़ी चितवन है ……….मुस्कुराहट है मुख मण्डल में……..ऐसी शोभा है कि कामदेव भी अगर देख ले तो उसका भी मन मथ दे ये श्याम सुन्दर ।
कहीं गए नही थे ये………कहीं से आये नही हैं ये …….ये तो यहीं थे …..इन्हीं गोपियों के मध्य……..देखना चाहते थे ये गोपियों के उच्चतम प्रेम की दशा को ………..इसलिये किसी गोपी की लहँगा ले ली थी श्यामसुन्दर नें ….किसी की फरिया ले ली थी ………और गोपी ही बनकर खड़े हो गए थे उन के ही साथ ………पर जब देखा इन्होनें कि आहा ! मेरी गोपियाँ तो ब्रह्माण्ड के सर्वश्रेष्ठ प्रेमियों में से एक हैं ……..ऐसा देखते ही लहँगा उतार दिया ….फरिया उतार दिया ….और खड़े हो गए अपनी पीताम्बरी ओढ़ के बाँसुरी लेकर ………..उफ़ ! क्या रुप माधुरी बनी है इनकी आज ।
गोपियों की स्थिति तो ऐसी हो गयी कि …………जैसे मृत व्यक्ति के मुख में कोई अमृत का रस मानों टपका दे …….नही नही , रस टपकावें नही ……अमृत का ही कलश उढ़ेल दे ……….
गोपियाँ तो आनन्दित हो गयी ……..उनके देह में नवीन चेतना का संचार हो गया ……………वो उछल पडीं ………..पास में जाकर खड़ी हो गयीं ………हँसते हुये अपनें प्रियतम को देख रही हैं ……….चूम रही हैं ……आलिंगन कर रही हैं ……….”‘जय हो जय हो” कोई गोपी जयजयकार कर रही है ………….
उद्धव बोले – वृन्दावन में आनन्द छा गया अब तो ।
*शेष चरित्र कल –
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