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November 21, 2024 9:40 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-! ललिता सखी और गोपेश्वर महादेव का सम्वाद !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-! ललिता सखी और गोपेश्वर महादेव का सम्वाद !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! ललिता सखी और गोपेश्वर महादेव का सम्वाद !!

भाग 2

तीन शक्तियाँ हैं ब्रह्म की ……ज्ञान शक्ति, द्रव्य शक्ति, क्रिया शक्ति ।

ज्ञान शक्ति – महा सरस्वती हैं , द्रव्य शक्ति – महालक्ष्मी हैं और क्रिया शक्ति – महाकाली हैं ……एक एक शक्ति की उपासना तीन दिन का होता है ……तो होगये नौ दिन ……नवरात्रि में एक एक शक्ति की तीन तीन दिन उपासक उपासना करता है …नौ दिन की ।

पर ये श्रीराधा ………ललिता सखी मौन हो गयीं ……..वो तो भाव सिन्धु में डूब ही रही थीं ………किन्तु ! महादेव नें उन्हें सम्भाला ।

श्रीराधारानी – अल्हादिनी शक्ति हैं ………….ये ब्रह्म को भी आल्हाद प्रदान करती हैं ……ब्रह्म को जो आनन्द की प्राप्ति होती है …….ब्रह्म को जो आनन्द मिलता है ……वो इन्हीं से मिलता है ……….ये उन तीनों शक्तियों से महान हैं ……..वो तीनों शक्तियाँ इनकी नूपुर ध्वनि से प्रकट होती हैं………स्वयं ब्रह्म इनसे मोहित रहता है………नन्दनन्दन , श्यामसुन्दर नन्दगाँव के अपनी अट्टालिका में खड़े होकर पवनदेव से याचना करते हैं कि ……बरसानें से हवा चल दे …….ताकि वो हवा श्रीराधारानी के पद धूल को ले आये और मेरे मस्तक में डाल दे …..।

हँसी ये कहते हुये ललिता ……एक दिन महादेव ! मुझे एकान्त में ले जाकर श्याम सुन्दर बोले…….ललिते ! मुझे ईश्वरता से मुक्ति चाहिये । महादेव हँसे …….ये कहा श्याम सुन्दर नें ?

हाँ , ललिता सखी हँसती रही ……….फिर बोली – श्याम सुन्दर बोले मैं दुःखी हो गया हूँ ………कभी वो भक्त बुला रहा है ….कभी ये भक्त बुला रहा है ……और अन्तर्यामी ………सबके अंतर की जानना …..कितना दुखप्रद होता है …………ललिते ! मुझे इस ईश्वरता से मुक्ति चाहिये ।

अद्भुत बात कह रही थी ललिता ………….प्रेम की उच्चतम स्थिति ।

फिर तूनें क्या किया ललिता ? महादेव नें पूछा ।

महादेव ! तभी मैने देखा ..सामनें से श्रीबृषभान दुलारी श्रीकिशोरी जू पधार रही हैं ……उनको देखते ही मैं दौड़ी ……..और उनके पास पहुँच कर उनके युगल चरणों की रज मैने उठाई……और लेकर श्याम सुन्दर के पास आगई श्याम सुन्दर के मस्तक में मैने वह श्रीराधा चरण रज को लगा दिया था…….बस फिर क्या था…….श्रीकृष्ण …….राधे ! राधे ! राधे कहनें लगे ….उनका रोम रोम राधे राधे पुकार रहा था…… ..वो ईश्वरता भूल गए थे…….प्रेम में उन्मत्त हो गए थे……वो तो मेरे भी पाँव में पड़नें लगे । ललिता भावोन्मत्त हो गयी थी , ये सब सुनाते हुये ।

ललिता ! मुझे अपनी स्वामिनी के दर्शन नही कराओगी ?

महादेव नें जैसे ही कहा…..सामनें एक दिव्य कुञ्ज प्रकट हो गया था …….उसमें अद्भुत सिंहासन था……जिसमें गौर वर्णी अद्भुत रूप लावण्य से भरी अष्टसखियों से सेवित श्रीराधारानी विराजमान थीं ।

महादेव नें दर्शन किये श्रीराधारानी के……..आहा ! श्रीराधा का रूप दिव्यातिदिव्य था….महादेव को तो इतना आनन्द आया की बरसानें में उनकी समाधि ही लग गयी थी ।

( ये लेख मैने कल बरसानें के गहवर वन में बैठ कर लिखा है ……मुझे उस समय श्रीजी के दर्शन का जो अनुभव हुआ वो श्रीजी की कृपा ही थी )

*शेष चरित्र कल –

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