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November 24, 2024 1:20 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-! फागुन के उत्सव में… !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! फागुन के उत्सव में… !!

भाग 1

श्रीधाम वृन्दावन में नित्य उत्सव है……ये श्रीधाम जड़ नही है …..अपितु पूर्ण चैतन्य है ……यहाँ भक्ति मात्र निवास नही करती , यहाँ तो भक्ति नृत्य करती है – नाचती है ।

उद्धव, विदुर जी को सुनानें लगे थे आगे का प्रसंग ।

फाल्गुन का महीना था…….इसी दिन की तैयारी में रहते हैं प्रेमीजन…….जिसे वर्ष में अपनें प्रिय का स्पर्श सुख न मिला हो …..वो इसी फागन में ही आस पूरी करते हैं …..अपनें हाथों से प्रिय के कपोलों को छूना ……..यही तो है वर्ष भर की तपस्या का फल ।

बरसानें में आगये थे नन्दगाँव वाले ………गोप ग्वाल कहाँ चले गए किसी को पता नही…….होली खेलते हुये वे सब भी मत्त हो गए थे …..ये महीना ही मदमाता है ……करोगे क्या !

अबीर उड़ा रहे थे बरसानें वाले……लाल बादल हो गए …….कोई किसी को देख नही पा रहा था………ऊपर से पिचकारी की धार ।

होरी है !

सबके मुख से यही शब्द था ……होरी है ।

नन्दगाँव वालों की तैयारी सब धरी की धरी रह गयी थी ………उनकी पिचकारी तोड़ के फेंक दी गयी थी ……..बरसानें की गोपियाँ इतनी उन्मत्त थी आज – कि……लाठी से ही मारना शुरू कर दिया था उन नन्दगाँव के ग्वालों को ………वो बचना चाहते हैं पर बचे कैसे ?

बलभद्र को घेर लिया था उनकी कुछ सखियों नें ……….

ये सखियाँ बलभद्र को ही चाहती थीं……..घेरकर ले गयीं दूसरी पहाड़ी पर…..रंग लगानें लगीं बलभद्र के ……गौर वर्ण के बलभद्र , अद्भुत रूप लावण्य उनका निखरा….. जब उनके गोरे गालों में लाल अबीर लगी ।

अपनी सखियों के साथ एकान्त देखकर कन्हैया भी आगये थे ……….उनको भी रंग लगाना चाहती थीं उनकी सखियाँ …..पर –

दाऊ ! चौंक गए कन्हैया ।

फिर हँसते हुये बोले ………भाभी कौन सी है दाऊ ?

शरमा गए थे बलभद्र तो ………..क्यों की गम्भीर हैं ….और बड़े हैं ……..फिर ऐसे प्रेमालाप करते हुये गोपियों के साथ छोटे भाई नें उन्हें पकड़ लिया था ।

वो गोरे गाल लाल हो गए थे , शरमा रहे थे दाऊ, असहज हो उठे थे।

हटो ! हटो मेरे बड़े भैया के पास से……कन्हैया हँसते हुये दाऊ की गोपियों को वहाँ से हटानें लगे……हम नही हटती …..बोलो क्या करोगे ? बलराम की गोपियाँ भी जिद्दी , उन्होंनें कन्हैया से कहा ।

हे भाभीयों ! हटनों तो पड़ेगो ……..नही तो अबै मैं सबकूँ बताऊँ !

नही नही, ………दाऊ जी नें मना कर दिया , किसी को मत बताना ।

तो मेरी प्यारी भाभीयों ! आप नेंक पल्लन्ग चली जाओ ।

चली गयीं कन्हैया की भाभी ।

हँसे उद्धव , बोले – कन्हैया नें अपनी गोपियों को बुला लिया ………और उन सबसे बोले ……..हमें अपनें बड़े भैया का श्रृंगार करना है …….इन्हें सजायेंगे …….तभी तो हमारी भाभियाँ खुश होंगीं …….हाय ! मेरे बड़े भैया ! तुम भी रसिक निकले ……….कन्हैया विनोद करते हैं ……पर बलभद्र गम्भीर बने रहे , और बड़ा संकोच भी हो रहा है उन्हें ।

सुन्दर कलियों से दाऊ का मुकुट सजा दिया……..माथे में केशर का तिलक…….सुन्दर वनमाला गूंजा की माला…….बलभद्र तैयार हो गए ।

खबरदार भाभियों ! इधर मत देखना…….कन्हैया हँसते हुये बोले ।

कन्हैया ! पर गोपियाँ अब वहाँ नहीं हैं….दाऊ नें गम्भीर होकर कहा ।

मेरे बड़े भैया ! चिन्ता मत करो तुम्हे छोड़ के कहीं नही जायेंगीं वो….

ये कहते हुये बड़े भैया के गोरे कपोलों को पकड़ लिया था आज कन्हैया नें ।

हाँ, सच कन्हैया ! वो सब वहाँ नही हैं…….बलराम गम्भीरता में बोले ।

अच्छा ! कन्हैया नें उस दिशा की ओर गम्भीर दृष्टि से देखा ………फिर मुस्कुराये थे ………”काम विक्षिप्त काम वासना से भरा हुआ एक यक्ष”……..हा हा हा हा , हँसे कन्हैया ।

*क्रमशः….

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