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November 21, 2024 9:58 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! फागुन के उत्सव में… !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! फागुन के उत्सव में… !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! फागुन के उत्सव में… !!

भाग 2

हाँ, सच कन्हैया ! वो सब वहाँ नही हैं…….बलराम गम्भीरता में बोले ।

अच्छा ! कन्हैया नें उस दिशा की ओर गम्भीर दृष्टि से देखा ………फिर मुस्कुराये थे ………”काम विक्षिप्त काम वासना से भरा हुआ एक यक्ष”……..हा हा हा हा , हँसे कन्हैया ।


ए देवर्षि ! मात्र ये वीणा बजाना जानते हो या कुछ लड़ना भी ?

बड़ा दुष्ट और असभ्य था ये यक्ष…. ..शंखचूड़…..देवर्षि नारद जी की वीणा ही पकड़ कर तोड़नें लगा था ।

चाहते देवर्षि तो वहीं भस्म कर देते……पर देवर्षि तो कौतुकी हैं ।

देख ! नीचे देख यक्ष ! वो रहे नन्दनन्दन ……….उनसे लड़ …..मुझ से लड़कर क्या मिलेगा तुझे …….अपनी वीणा उस शंखचूड़ के हाथों से लेलिया देवर्षि नें और चल पड़े थे ।

ये विक्षिप्त कामुक था , ये विषय लम्पट था …..दिखाया था देवर्षि नें श्रीकृष्ण को ………देवर्षि को लगा कि श्रीकृष्ण को देख लेगा तो इसके मन की वासना खतम हो जायेगी …….पर – कोई आवश्यक तो नही कि गुरु या सन्त जो दिखाएँ वही सामनें वाला देखे ……..सामनें वाला तो वो देखता है जो उसके मन में भरा है ।

“आहा ! कितनी सुन्दरी हैं ये सब”…….शंखचूड़ नें श्रीकृष्ण और बलराम को नही देखा उसनें देखा गोपियों को ………इतनी सुन्दर ! ऐसी तो मेरे “यक्ष वन” में भी नही हैं …………..

मन में वासना जाग गयी ………….काम से भर गया शंखचूड़ …….

नभ से नीचे उतरा ।

……..अपनें बड़े भाई का श्रृंगार करनें में व्यस्त थे कन्हैया ….और दाऊ जी श्रृंगार करवानें में …………

तभी तो वो शंखचूड़ समस्त गोपियों को लेकर चला गया ।

वो चिल्लाना चाहती हैं ………पर उनकी वाणी को ही रोक दिया है उस शंखचूड़ नें………वो भागना चाहती हैं अपनें रामकृष्ण के पास …पर उनके पैरों की शक्ति को शंखचूड़ नें जकड़ लिया था ।

कन्हैया आगे बढ़े …….बलभद्र भी आगे आये …………

सामनें का दृश्य जब देखा……..सजल नयन हो गए रामकृष्ण के ।

एक छड़ी लेकर वो मार रहा था उन गोपियों को……और वो दो हाथ और दो पैरों से पशुओं की तरह चल रहीं थीं……..उनकी ऐसी गति बना दी थी……..गोपिकाबल्लभ चिल्लाये…….दाऊ ! चलो …….और दोनों भाई दौड़े ……तेज दौड़े………सामनें शंखचूड़ था …..उसके ऊपर ही अपनें हल और मूसल का प्रयोग बलभद्र नें किया ….और चरण का प्रहार कन्हैया नें ………उसके प्राण तो वहीं निकल गए थे .उसका दिव्य तेज राम कृष्ण के चरणों में ही लीन हो गया था ।…….अपनी गोपियों को उठाकर बलभद्र नें हृदय से लगा लिया था ।

आनन्द के अश्रु बह रहे थे उन गोपियों के ।

देवों नें पुष्प वृष्टि की …………जय जयकार किया था ।

*शेष चरित्र कल –

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