श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “श्रीकृष्णानुस्मरणः” – गोपियों की ध्यान साधना !!
भाग 2
मुकुट, मोर मुकुट सिर में धारण किया हुआ ……फेंट में बाँसुरी …….लकुट ले ली थी हाथ में ……..पीताम्बरी सुवर्ण के समान चमचमा रही थी …………यशोदा मैया नें ही तो सजाया था उसे …….उस पर सखी ! वो मुस्कुरा रहा था ………..उफ़ ! सीधे जिगर में खंजर ।
वनमाली बन जाता है वन में तो वो ……आम के कोमल पत्ते…….गुंजा की माला……..गेरू पत्थर को घिस कर ग्वाल बाल उसका श्रृंगार करते हैं ……..तब तो इसका रूप, नट के समान लगता है ……नही नही ये नट कहाँ हैं …..ये तो नटवर है ……नटों में सर्व श्रेष्ठ…….कनेर के पीले पीले पुष्प…….और सखी ! देख ! आज तो और अद्भुत रूप इनका हो गया है………….सूर्यमुखी पुष्प को इन्होनें अपनें कानों में लगा लिया है …..इसलिये कि …..सूर्य जिधर हो उस तरफ ही ये पुष्प मुड़ जाता है ……..श्रीराधारानी का स्वरूप सूर्य की तरह दमकता हुआ है …….ये सूर्यमुखी पुष्प भ्रमित हो जाता है, उसे लगता है कि यही सूर्य हैं ……..और जहाँ जहाँ श्रीराधारानी जाती हैं उधर ही ये मुड़ जाता है ।
पर ये श्याम श्रीराधा से ही ज्यादा प्रेम करते हैं…….
फिर भोजन को उतार लेती हैं चूल्हे से…..क्यों की भोजन बन गया है ।
फिर अपनें कपोल में हाथ रखकर श्यामसुन्दर के चिन्तन में लीन हो जाती हैं ………….वहीं बैठे बैठे ।
इनकी बाँसुरी तो सबको परेशान किये है……….क्या मनुष्य, क्या नर क्या नारी …….अरे ! इतना ही नही ………पशु पक्षी तक बाबरे हो गए हैं……..कैसे मौन व्रत लेलिया है इन पक्षियों नें …….ऐसे लग रहे हैं जैसे बहुत बड़े मुनि बैठे हैं और ध्यान कर रहे हैं ।
अरे ! इन वृन्दावन के पक्षियों से बड़ा कौन मुनि होगा कौन ऋषि होगा !
जो निरन्तर नित्य श्रीकृष्ण की अमृत वर्षिणी बाँसुरी को सुनते रहते हैं ।
महान भाग्यशालिनी तो ये यमुना भी है ……..जो बाँसुरी को सुनकर रुक जाती है ………….अरे ! भाग्यशालिनी तो ये पृथ्वी ही है ……..जहाँ श्याम अपनें चरणों को रखते हैं ……तभी तो इस पृथ्वी को रोमांच हो रहा है …..ये घास उगे हुये यही तो रोमांच है इनका ।
बालक आगये गोपियों के ……..तो भोजन परोस दिया उनको ।
भोजन करके वो चले गए खेलनें………..
दस वर्ष के हो गए हैं श्याम सुन्दर ……….उनकी वो बड़ी बड़ी भुजाएँ, उनका वो वक्षस्थल , उसी वक्षस्थल को तो लक्ष्मी घेरे हुए हैं ……हर जगह वो चंचल है ……….लक्ष्मी की चंचलता सर्वत्र देखनें में आती है ….पर हमारे श्याम सुन्दर के वक्षस्थल में कभी चंचल नही होती …….हर समय चिपकी हुयी है …………इसको डर है कि कहीं मैं हटी ….और इन गोपियों नें अपनी जगह बना ली तो मैं कहाँ जाऊँगी ।
गोपी हँसती है …………खूब हँसती है ।
स्वयं भोजन करना है ये भूल गयी है गोपी ………..वो अब बर्तन मांजती है ………….
कैसे काले हैं श्याम सुन्दर……….गोरे होते तो ?
अरे ! रहने दो ….काले होकर तो इतना उपद्रव मचाया हुआ है ….अगर गोरे होते तो न जानें क्या करते ! कितनी सतियों का सतीत्व इनके रूप नें हर लिया है ………..काले रूप नें ……अब बताओ …काले रंग का ही इतना प्रभाव !
बर्तन माँज कर रख देती है गोपी ………..कुछ देर लेटती है …..तो आँखें बन्द हो जाती हैं उसकी ………उसे भी अच्छा लगता है ।
मेरे श्याम सुन्दर ! तुम आगये !……….वो हँसती है ………..मेरी घुँघराली अलकों से खेलना तुम्हे प्रिय है ना ! खेलो ……….मैं कुछ नही कहूँगी…….अच्छा ! तो तुम्हे मेरे कपोल को छूना है ……..छूओ ।
मुझे अपनें हृदय से लगा लो ……………तुम्हारे अधर कितनें कोमल हैं ……गुलाबी और पतले …………प्यारे !
तभी – “श्यामसुन्दर आरहे हैं “……… एक गोपी नें बाहर से आवाज लगाई ।
साँझ हो गयी .? इसे तो पता ही नही चला ……अपनें वस्त्रों को सम्भालती हुयी ये भागी बाहर की ओर …….क्यों की श्याम सुन्दर गौचारण करके वृन्दावन से लौट रहे थे …………।
*शेष चरित्र कल –
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