श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! बृज की ओर अक्रूर !!
भाग 1
आप इतनी शीघ्र उठ गए अभी तो ब्रह्ममुहूर्त भी नही हुआ ।
अक्रूर की पत्नी नें अक्रूर से पूछा था ।
मैं कुछ ज्यादा ही आल्हादित हूँ , हाँ क्यों कि मैं वृन्दावन जा रहा हूँ !
अक्रूर नें अति प्रसन्न होते हुये अपनी पत्नी को बताया ।
पत्नी नें आगे कुछ पूछा नही ………क्यों कि यात्रा में जाते हुये को “कहाँ क्या” ये सब प्रश्न करनें नही चाहियें……..पर अक्रूर नें स्वयं ही बता दिया………वृन्दावन में अपनें बड़े भैया नन्द जी से मिलना होगा …….और भाभी से भी …….रोमांच हो रहा है अक्रूर को ………नन्दनन्दन के दर्शन होंगे मुझे………मैं महापापी कंस का सेवक…….उसे वो श्यामल मूर्ति दीखेगी !……..मैं उस परमानन्द को कैसे सम्भाल पाउँगा………अक्रूर तो भाव के कारण जड़वत् खड़े ही रह गए थे……….श्याम सुन्दर ! वो नंदकुमार ! देवी ! इससे बड़े भाग्य मेरे और क्या होंगे ! अक्रूर नें मुस्कुराते हुये अपनें आनन्द के अश्रुओं को पोंछा था ।
पर क्यों जा रहे हैं वृन्दावन ? अक्रूरपत्नी रोक न पाईँ अपनें को ।
मथुरा नरेश दुष्ट है…….अधर्म का शासन मथुरा कि भोली भाली प्रजा पर थोप दिया है ………….त्राहि त्राहि कर रही हैं यहाँ कि प्रजा …….पर विरोध करे कौन इस दुष्ट कंस का ………….देवी ! मुझे कल राजा कंस नें बुलाया था ………..और मेरा बड़ा सम्मान किया ……..फिर दुष्ट नें अपनी दुष्टता दिखाई ……………मुझे कहा …….वृन्दावन जाओ ओर नन्द भैया और उनके पुत्र रामकृष्ण को लेकर आओ ………देवी ! उसनें ये भी कहा कि मैं वध कर दूँगा उन दोनों का…….धनुष यज्ञ का बहाना बनाया है कंस नें ……………..।
आपनें मना नही किया …………हे भगवान ! उन फूल से कोमल बालकों को ये मार देगा ……..आपनें विरोध नही किया ? आप क्षत्रिय हैं ……गलत को गलत कहनें कि शक्ति आपमें होनी चाहिये ……..अक्रूर पत्नी आक्रामक हो गयीं थीं ।
देवी ! मेरे विरोध के स्वर उठे थे ……..मैने निडर हो कंस से कहा ……..बालकों को मारना चाहते हो …….ऐसा निकृष्ट कर्म !
पर उसी समय कंस के मन्त्री नें आकर सूचना दी कि ……..असुर केशी का वध श्रीकृष्ण नें किया ………….अक्रूर अपनी पत्नी की ओर देखते हुए बोले ……..”साधारण नही था केशी ……….उसे मारनें वाला पृथ्वी में कोई नही है इस समय ……..पर श्रीकृष्ण नें अगर उसका वध किया है तो श्रीकृष्ण, भगवान हैं ……….और मुझे लगता है देवी ! कि कंस के अत्याचार का अन्त अब आनें ही वाला है …….श्रीकृष्ण आएंगे और अन्य समस्त राक्षसों का नाश करते हुये कंस का भी वध कर देंगे ….मथुरा कि प्रजा कितनी प्रसन्न हो उठेगी !
सेनापति अक्रूर जी !
एक कंस का दूत अक्रूर के भवन में तभी आया ……….और कहा ……महाराज कंस ने आपको अब बृज जानें के लिये कहा है ……..और हाँ , ये पत्र बृज के मुखिया जी बृजराज को दे देना ………….दूत, अक्रूर जी के हाथों पत्र देकर चला गया था ।
अक्रूर रथ के पास में आये……..पत्नी की ओर देखा उन्होंने …….
मेरी ओर से भी उन कृपासिंधु के चरणों में प्रणाम निवेदित कर देना ….
पत्नी नें कहा ।
भगवान श्रीनारायण का नामोच्चारण करते हुये अक्रूर जी बृज के लिये चल दिए थे ।
दधि मन्थन किया यशोदा जी नें…….दूध अग्नि में बैठाया ।
फिर आकर देखा कन्हैया सो रहा है…….बड़ी गहरी नींद में है ।
जीजी ! आप आज बारबार क्या देखती हो लाला के पास आकर ?
रोहिणी माँ नें पूछा था ।
पता नही रोहिणी रात्रि से ही मेरा मन बड़ा उदास है ……….क्यों उदास है कारण जानना चाहती हूँ पर कुछ समझ में नही आता ……….
बृजरानी इतना ही बोलीं और फिर अपनें लाला को देखनें लगीं थीं ।
क्रमशः…
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