श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! मथुरा नगर दर्शन !!-भाग 2 : Niru Ashra

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श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! मथुरा नगर दर्शन !!

भाग 2

श्रीकृष्ण नें स्नान किया सखाओं के साथ, फिर कुछ खा भी लिया जो मैया नें भेजा था ……और –

“अब आनन्द आएगा….मथुरा नगर देखेंगे…..वाह !” सारे सखा बड़े प्रसन्न हैं …..और ये सब लोग चल पड़े थे मथुरा नगर दर्शन के लिये ।


मथुरा नगर की रचना बड़ी अद्भुत थी ……बड़ी बड़ी अट्टालिकाएं , स्फटिक के बड़े बड़े गोपुर , भवन वहाँ के बहुत सुन्दर थे , मार्ग स्वच्छ और सुन्दर……मार्ग को अभी अभी जल से धोया गया था ……रंगोली मथुरा की महिलाएं काढनें लगीं थीं……..बन्दनवार लगाये गए थे हर घरों में………बड़े बड़े द्वार भी बनाये थे राजा की आज्ञा से …।

उस मार्ग पर चल रहे हैं आज श्रीकृष्ण और बलराम…उनके साथ उनके समस्त सखा हैं……..बड़ी मस्ती में नगर दर्शन करते हुये चल रहे हैं …..

लाला ! देख ! वो जल का फब्बारा………..मनसुख कहता है …..फिर श्रीदामा चिल्ला उठता है ………वो घर देखियो ! कैसा विचित्र बनाया है ……ऊपर की ओर देखते हैं श्रीकृष्ण ।

घरों के छत में कुछ महिलाएं हैं………….जब उन महिलाओं नें देखा ……..कोई सुन्दर, नही नही सुन्दर नही ….अतिसुन्दर बालक जा रहे हैं ………..बस नीचे देखनें लगीं वो सब ।

मुग्ध हो गयीं देखते ही ………सुन्दरता ऐसी कि इन नागरी सभ्यता की महिलाओं नें ऐसी सुन्दरता की कल्पना भी नही की थी ।

अरी सुन ! नीचे देख ! एक महिला दूसरी से कहती है ….जो दूसरे छत पर बैठी है …………वो देखती है नीचे ………मोर मुकुट धारण किये हुये ……..आह ! वो तीसरी महिला को आवाज देती है …….जो नीचे है वो भागी भागी ऊपर आती है ……..और जब देखनें लगती है ……तब श्रीकृष्ण का सिर दिखाई देता है ……मुख नही ।

अब क्या करें ? दूसरी महिला तुरन्त कहती है …………फूल बरसाओ ……इन सुन्दरतम बालकों के ऊपर फूल बरसाओ ………..फूल बरसाती हैं ऊपर से ………..फूल जैसे ही अपनें में गिरे, श्रीकृष्ण ने तुरन्त ऊपर की ओर देखा ………….मथुरा की नारियाँ धन्य हो गयीं ………नेत्र सफल हो गए इनके ………..।

पर ये हैं कौन ? एक महिला नें पूछ ही लिया ।

दूसरी तुरन्त बोली ……..नन्दगाँव के बृजराज, ये उन्हीं के पुत्र हैं । ……..तीसरी बोली ……….ओहो ! जिसनें पूतना को मार दिया था ये वहीं हैं ……….अघासुर बकासुर केशी बहुतों का वध किया है इन्होनें तो ……….चौथी कहती है ……..पर सुन्दर कितनें हैं …….आहा ! लगता है बस देखते ही रहें ………..।

आगे चले श्रीकृष्ण बलभद्र अपनें सखाओं के साथ ……..व्यापारियों में चर्चा का विषय बन गया……क्या ये राजा कंस को मार सकते हैं ? एक व्यापारी दूसरे से कहता……..अरे ! केशी को मारा है इन्होनें ……पूतना को…….बकासुर को……फिर कंस क्या चीज है…….

मैं तो भगवान शिव का हर सोमवार अभिषेक करूँगा……अगर राजा कंस मर जाए तो……..ये व्यापारी भगवान को मनाता है ।

“ये असम्भव नही है…..हो सकता है” ……….तीसरा व्यापारी कहता है …………चौथा तुरन्त कहता है ………..”.मेरी इच्छा तो हो रही है ……कि इनके चरण मेरी दुकान में पड़ें ……….तो बुला ना ! पहला प्रसन्न होकर कहता है ……..पर कंस राजा को अगर पता चला तो !

अब इतना मत डर ……ये बड़े वीर बालक हैं …..कंस की सत्ता जानें वाली है ……….और ये आनें वाले हैं ……….देख लेना ………….

बस फिर क्या था……..व्यापारी लोग अपनें अपनें प्रतिष्ठानों में बुलानें लगे श्रीकृष्ण को…….और श्रीकृष्ण अपनें भाई सखाओं के साथ सब के यहाँ गए……और सबको आनन्द प्रदान कर रहे हैं …..मथुरा के बाजार में तो भीड़ लग गयी इन सुन्दर बालकों को देखनें के लिए ।

शेष चरित्र कल –

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