श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! मथुरा नगर दर्शन !!
भाग 1
मथुरा नरेश महाराज कंस की जय हो !
प्रातः ही अक्रूर कंस के दरबार में पहुँच गए थे ……पर आज सिर बिना झुकाये ही कहा था….”मथुरा नरेश महाराज कंस की जय” ।
पर कंस इन बातों में आज कल ध्यान नही दे रहा ……..वो तो अंदर से डरा हुआ है भयभीत है ……..अक्रूर ! आओ मेरे साथ …….दरबार से अपनें निज महल में ले गया अक्रूर को कंस ।
बताओ ! तुम ले आये रामकृष्ण को ? तुमनें मेरे ऊपर जो उपकार किया है मैं उसे भूल नही सकता ………..कंस बोलता गया अक्रूर सुनते गए ………उद्यान में रुके हैं वो लोग ……ठीक है कोई बात नही ।
अब सुनो ………..दो दिन बाद धनुष यज्ञ है …….आज मैने रंगशाला में मल्ल युद्ध का आयोजन रखा है ……….बस ! बस ……मेरे मुष्टिक चाणूर शल तोषल मल्ल युद्ध में मार देंगे उन देवकी के आठवें बालक को …..कंस हंसा …….खूब हंसा……..अगर उससे भी नही मरे तो मेरा हाथी है “कुबलियापीड” वो कुचल देगा उन बालकों को ……….वाह ! ये सब मथुरा की प्रजा देखेगी ………..अक्रूर ! मैं गलत तो नही कर रहा ना ? गलत क्या ? मैं राजा हूँ तुम जानते हो ना राजा का अर्थ होगा है …..जो प्रजा का रंजन करे ……….मैं इन सबसे अपनी प्रजा का रंजन करूँगा ……..प्रजा का मनोरंजन ………..यही मेरा धर्म है ।
कंस और भी बोलता …….पर आज अक्रूर निर्भय हैं ……..इन्हें भय नही है कंस से ………….मैं चलता हूँ …………इतना कहकर हाथ भी बिना जोड़े अक्रूर वहाँ से चल दिए थे ।
पर कंस का इन सबमे ध्यान कहाँ था ……….वो तो तैयारी कर रहा था श्रीकृष्ण को मारनें की ………………
कंस हंसा ……..फिर अपनें सेवकों को आदेश दिया …….मथुरा नगरी को सजा दो…….बन्दनवार टाँग दो …………रंगोली हर घर के द्वार पर बननी चाहियें………और हाँ ……मैं निकलूंगा नगर देखनें उस समय मथुरा की प्रजा मेरे ऊपर पुष्प वृष्टि करे ।…………..जाओ ।
सेवकों नें राजा कंस के आदेश का तुरन्त पालन किया था ।
प्रातः उठे श्रीकृष्ण ……उनके ग्वाल सखा भी उसी समय उठे थे …….पर बृजराज स्नान आदि से निवृत्त होकर मथुरा के सन्मान्य व्यक्तियों से वार्ता कर रहे थे …………
बाबा ! श्रीकृष्ण नें आकर अपनें बाबा के चरणों में प्रणाम किया ….बलभद्र ने भी ………..सखाओं नें भी ………..
तुम लोग उठ गए ? …..चलो ! अब स्नान कर लो यमुना में …..सुनो ! मैं घड़ी भर घड़ी में अभी आता हूँ ………..राजा कंस से मुझे काम है ……तब तक तुम स्नान करके कुछ खा लेना …………खानें की वस्तु उस थैले में है…………….बृजराज इतना बोलकर अपनें वय के ग्वालों के साथ और वहाँ के सम्मान्य लोगों के साथ जानें लगे ।
बाबा ! हम भी जायेंगे मथुरा ! उत्तरीय पकड़ लिया श्रीकृष्ण नें ।
हाँ हाँ , मैं स्वयं तुम्हे नगर दर्शन कराऊंगा ………..बस दो घड़ी भर में, मैं आता हूँ ……….श्रीकृष्ण के कपोल में थपकी देकर बोले थे बृजराज ….फिर जानें लगे ……….।
“हम अकेले जायेंगे” …….श्रीकृष्ण नें फिर बाबा का उत्तरीय खेंचा ।
अकेले ? बृजराज नें आश्चर्य से कहा ……..नही अकेले नही जाना ये मथुरा है …….वृन्दावन नही ।
बाबा ! अकेले मतलब अपनें वय के सखाओं के साथ आप बूढ़े बड़े लोगों के साथ नही ……….श्रीकृष्ण बोले ।
पर तुम लोग जानते नही हो…..ये मथुरा है ………बृजराज नें समझाना चाहा …………….पर बाबा ! हमारे साथ हमारा दाऊ भैया भी तो है ……अब जानें दो हमें भी ……..श्रीकृष्ण की बातें सुनकर बृजराज रुक गए ………”तो दाऊ ! तेरी जिम्मेवारी है…….सम्भल कर जाना …….कहीं कुछ गड़बड़ न होनें पाये ………….और बजार की वस्तुएँ छूना नही ……ये मथुरा है …..महानगर है …….ठीक है ?” दोनों भाइयों नें प्रसन्न होकर कहा – ठीक है । बृजराज अपनें साथियों के साथ चले गए थे ………..बृजराज के जाते ही सब ग्वाल सखा उछल पड़े आनन्दित होकर ।
श्रीकृष्ण नें स्नान किया सखाओं के साथ, फिर कुछ खा भी लिया जो मैया नें भेजा था ……और –
“अब आनन्द आएगा….मथुरा नगर देखेंगे…..वाह !” सारे सखा बड़े प्रसन्न हैं …..और ये सब लोग चल पड़े थे मथुरा नगर दर्शन के लिये ।
क्रमशः ….
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