श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! जन नायक श्रीकृष्ण !!
भाग 1
क न्है या ! जोर से चिल्लाया मनसुख ।
पीछे मुड़कर जब देखा बलभद्र और श्रीकृष्ण नें ……तो सैनिकों का एक दल ग्वालों पर आक्रमण करनें ही वाला था कि ……बड़ी फुर्ती से उछले श्रीकृष्ण और देखते ही देखते उन सैनिकों पर काल बनकर टूट पड़े थे ।
धरती पर पके आम्र की तरह गिर रहे सैनिकों को बलभद्र मूशल से प्रहार करके उनके प्राणों का हरण कर रहे थे ।
किसी सैनिक को श्रीकृष्ण पछाड़ रहे थे ………किसी को एक थप्पड़ मारते तो वह दूर जा गिरता ……किसी सैनिक का तो एक थप्पड़ में ही मस्तक अलग हो जाता और रक्त के फुब्बारे फूट पड़ते ।
मथुरा के नागरिक ये सब देखकर आज बहुत प्रसन्न हैं………..सब आपस में काना फूसी करनें लगे थे …….”यही हमारे राजा हैं” ……….मथुरा का राज्य सम्भालनें के लिये विधाता नें इन्हें भेजा है ।
छोटे छोटे बालक करतल ध्वनि कर के उछल रहे हैं ……जब किसी सैनिक को मार कर उसके मृतदेह को राजमहल की ओर फेंक देते हैं श्रीकृष्ण ………..तब करतल ध्वनि करते हैं बालक ।
रक्त की बुँदे भी श्रीकृष्ण की पीताम्बरी में अद्भुत शोभा पा रही है ……
दा ऊ भै या ! कोई सैनिक धोखे से धावा बोलता है दाऊ भैया के ऊपर…..तो ये सब देख कर जोर से नाम लेकर सावधान करते हैं श्रीकृष्ण ।
और जब श्रीकृष्ण के पीछे से कोई सैनिक आक्रमण करता है तब …क न्है या ! कहते हुए दाऊ भैया सावधान करते हैं …………और जो सैनिक मृतवत् हो जाते हैं ……उनको मनसुख उठाकर फिर पटक देता है ………और ठिठोली करता हुआ कहता है……”मैने मार दिया”…….मथुरा के नागरिक ये सब देखकर बहुत हंसते हैं ……..युद्ध घमासान चल पड़ा है …………वहाँ जितनें सैनिक थे सबका वध कर दिया जो कुछ बचे थे वे अपनें प्राणों को बचाकर भागे कंस के दरबार की ओर ।
“वाह ! अपनें प्राण बचाकर भाग आये…..दो छोटे बालकों को भी मार न सके तुम लोग” ….कंस चिल्लाया ।
रक्त से सनें हुए थे ये सैनिक……….काँप रहे थे ……….
महाराज ! वो बालक नही है …….वो तो काल हैं काल ……..वो देखनें में ही छोटे लगते हैं …….पर यमराज भी उनसे काँपता होगा ……..सच कह रहे हैं हम महाराज ! यम दण्ड की तरह वो बालक हैं …………एक ही थप्पड़ में वो मस्तक धड़ से अलग कर देते हैं ……….बड़े बड़े वीर महावीर इन बालकों के आगे कुछ नही हैं ………महाराज ! इससे ज्यादा हम क्या कहें ।
कुछ मत कहो ……..और तुम भी जाओ यमराज के पास ………इतना कहते हुये कंस के पास में खड़े चाणूर नें उन सैनिकों को खड्ग से मार दिया था ।
राजन् ! कैसे कैसे लोगों को पाल रखा है आपनें……….मुष्टिक बोला । …..आपके सामनें ये आपके शत्रु की प्रशंसा कर रहे थे ।
छोडो इनकी बातें ……….पर अब क्या करें हम ! मेरे चर मुझे मथुरा के पल पल की खबर दे रहे हैं ……..वो कह रहे थे कि ……..मथुरा की प्रजा में मेरा भय समाप्त होता जा रहा है ………प्रजा उन ग्वालों के साथ जा रही है ………ये तो अच्छी बात नही है ।
आपकी “अजेय सेना” किस दिन काम आएगी ! कंस का भरोसेमन्द राक्षस “तोषल” बोला था ।
हाँ, तोषल ! तुम ठीक कह रहे हो……..मेरी अजेय सेना ।
भेज दो , भेज दो तोषल ! उस सेना को । ……..मथुरा की प्रजा के सामनें ही उन वसुदेव पुत्रों का वध करके दिखा दिया जाए…. कि मथुरा एक मात्र राजा कंस की ही है ।
तोषल सिर झुकाकर गया वहाँ से ……और कंस की अजेय सेना को मथुरा के राजमार्ग में उतार दिया था ।
“श्रीकृष्ण कन्हैया लाल की”…..सब जोर से बोले ….”जय जय जय !”
नागरिकों नें श्रीकृष्ण को अपनें कन्धे में उठा लिया था………कोई माला पहना रहा है ……कोई मथुरा का नागरिक पुष्प बरसा रहा है …….”यही है हमारा राजा”……युवाओं में जोश आगया था……कोई अबीर उड़ानें लगे थे ……चारों ओर अब श्रीकृष्ण ही श्रीकृष्ण छा गए थे मथुरा में ।
कन्हैया ! नीचे उतर….बलभद्र नें श्रीकृष्ण को उस नागरिक के कन्धे से नीचे उतारा….हाँ क्या बात है दाऊ भैया ! कन्हैया नें पूछा था ।
क्रमशः …
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