श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! कालिय नाग !!
भाग 2
कन्हैया ! मैने गरूण की ओर देखा था…और उसी समय सिर झुकाकर गरूण चले गए अमरापुरी….दाऊ जी कन्हैया को बता रहे हैं ।
जैसे तैसे देवों से लड़ झगड़ के गरूण अमृत का कलश ले तो आये पृथ्वी में ……पर थक गए थे ………इसलिये वो यमुना किनारे कदम्ब की डाल पर बैठ गए ……….वैसे गरूण का भार वो कदम्ब सह नही पाता किन्तु अमृत के दो तीन बुँदे उस वृक्ष पर गिर गयीं थीं इसलिये गरूण का भार उसनें थाम लिया ।
गरूण को भूख लगी थी ………..क्यों की देवों से युद्ध करके अमृत छीना था उन्होंने …..श्रम तो हुआ था……क्षुधा से व्याकुल हो उठे थे गरूण ……….तभी यमुना में एक विशाल मत्स्य को देखा ………..बस ………झुक कर जैसे ही उस मछली को मुँह में लेना चाहा गरूण नें ……
वो छटपटाई……….पर गरूण को भी क्या पता था उसी यमुना में एक सौभरि नामक ऋषि तपस्या कर रहे हैं…….उनके तप में विघ्न हुआ …….मत्स्य को आहार बना रहे हो गरूण ! सौभरि लाल लाल नेत्रों से गरूण को देख रहे थे ……ये श्रीधाम वृन्दावन है …….यहाँ आकर तो कमसे कम जीव हिंसा मत करो ।
दाऊ नें अपनें कन्हैया से कहा……कन्हैया ! गरूण को अहंकार था कि …..मैं भगवान नारायण का वाहन….और इन ऋषि को क्या ये पता नही है कि मेरा आहार ही यही है …..मत्स्य या सर्प, मैं शाकाहारी कहाँ हूँ मेरे लिये यही आहार निश्चित किया है मेरे नारायण भगवान नें ।
पर गरूण कुछ भी सोचते रहें ………..उन तपश्वी नें तो श्राप दे दिया था गरूण को कि ……तुम अब वृन्दावन में आकर किसी जीव को अपना आहार नही बनाओगे …..अगर बनाया तो तुम स्वयं शक्तिहीन हो जाओगे ………..तपश्वी का श्राप पाकर गरूण सर्पों के पास भागे …….अमृत सर्पों को प्रदान किया ………..दासत्व से मुक्त होते ही सर्वप्रथम गरूण नें सर्पों को अपना आहार बनाना शुरू कर दिया था ……..सृष्टि में हाहाकार मच गया ………नाग सर्प अब बचेंगे नही ………ब्रह्मा चिंतित हो उठे ………तब हे कन्हैया ! मुझे फिर मध्यस्थता निभानी पड़ी ……….दाऊ नें कहा ……मैं फिर गया मैने समझाया गरूण को ………..कि इस तरह हिंसा मत करो …….तुम को आहार चाहिये तो नित्य चार पाँच सर्प यहाँ रख दिए जायेंगे तुम खा कर चले जाना ।
सर्पों को ये स्वीकार था…..वो बेचारे करते भी क्या गरूण के सामनें ।
और गरूण को मेरी बात माननी ही पड़ी ।
ये क्रम ठीक चलता रहा ………….पर एक नाग बड़ा दुष्ट था ……….कन्हैया अब मुस्कुराये ……कालिय ! हाँ कालिय नाग ।
उसके सौ फन थे ………..इसका ही उसे अहंकार था ।
वो कालिय नाग तो गरूण के लिये रखे हुए अपनें सर्पों को ही खानें लगा ……
ये देखकर गरूण को बहुत क्रोध आया …………
क्यों की एक दो दिन की बात नही थी ………….कई दिनों से ये क्रम उस कालिय नाग का चल रहा था ।
गरूण नें पीछा किया कालियनाग का ……….वो भागा …………समुद्र में चला गया ……….पर गरूण नें समुद्र को भी खंगाल डाला ।
कालीय नाग समुद्र से होता हुआ गंगा में आया ……और गंगा से होता हुआ यमुना में ……फिर यमुना से ही वृन्दावन आगया था ……..क्यों की उसको पता था – गरूण वृन्दावन में नही आसकते ….और आ भी जाएँ तो हिंसा नही कर सकते ।
ओह ! लम्बी साँस ली कन्हैया नें ……………..फिर इसनें अपनें परिवार को भी बुला लिया …..कन्हैया नें ही कहा ।
हाँ ……………दाऊ भैया बोले ।
तुम दोनों अभी तक जगे हुए हो…..अर्धरात्रि हो गयी है ….सो जाओ ……
यशोदा मैया उठ गयीं थीं और दोनों भाइयों को बातें करते हुए सुना तो डाँटनें लगीं ।
कन्हैया दाऊ भैया के कान में फुसफुसाए ……….दादा ! कल मैं कालीदह में जाऊँगा …………और कालीय नाग को नथ कर लाऊँगा ………
मैं भी चलूँगा तेरे साथ ……….दाऊ बोले ।
नहीं दादा ! तुम नही …………कन्हैया सहज रहे ।
क्यों ? दाऊ नें पूछा ।
क्यों की तुम भी तो शेषनाग हो ………….और वहाँ अपनें जाति का पक्ष तुमनें लिया तो ? ये कहते हुए कन्हैया हँसे ।
“तुम सोते हो या मैं पिटाई करूँ तुम्हारी ” ……..मैया नें इस बार अच्छे से डाँटा था ।
चुपचाप सो गए अब दोनों भाई – बलराम कृष्ण ।
*क्रमशः ….


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877