श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! श्रीकृष्णचन्द्र जु द्वारा शिव धनुष भंग !!
भाग 2
पर छोड़ता कहाँ है, बाण का लक्ष्य तो होगा ? मनसुख नें ही पूछा ।
नागरिकों के ऊपर …….और जो मर जाए उस बाण से …उसी की बलि चढ़ गई, यज्ञ पूर्ण हुआ ।……..मथुरा का नागरिक ये सब कहकर एकाएक चुप हो गया …….जब श्रीकृष्ण नें देखा कि …सामनें एक सैनिक खड़ा है ……उसी को देखकर ये नागरिक बेचारा डर से चुप हो गया था ।
लाल लाल आँखें दिखाईँ उस नागरिक को सैनिक नें ….कल तेरी बलि चढ़ेगी ….समझे ? धनुष के बारे में क्या बता रहा था तू ?
वो बेचारा नागरिक तो डर गया ………..श्रीकृष्ण नें उसके हाथ को पकड़ा ….और सैनिक की ओर देखते हुये बोले ……….मैं कृष्ण ! राजा कंस का भान्जा ……..ये बात बड़े प्रेम से और मुस्कुराकर बोले थे ।
हृदय में रस घोल दिया था उस सैनिक के, श्रीकृष्ण की वाणी नें ।
अच्छा , अच्छा …….ये कहकर वो आगे जानें लगा ………पर श्रीकृष्ण कैसे उसे छोड़ देते……श्रीकृष्ण उसके पीछे गए …….सुनो ! हमें धनुष को देखना है…….नही ये सम्भव नही है …….सैनिक मना करते हुये भीतर चला गया और द्वार भीतर से बन्द कर दिया …….।
सुनो ! खोल दो द्वार ……….बस धनुष को देखेंगे ……………
श्रीकृष्ण बाहर से बोले जा रहे थे ।
“आध घड़ी …….बस , धनुष को देखना और चले जाना” ……….सैनिक नें अपनी मजबूरी भी बताई …………….
ठीक है , ठीक है ………बस देखेंगे और प्रणाम करेंगे ……..बस !
श्रीकृष्ण बोले ।
आजाओ भीतर ………सैनिक नें सबको भीतर आनें दिया ।
बड़े प्रसन्न हुये श्रीकृष्ण ………भीतर जाते ही चारों ओर दृष्टि दौड़ाई ………….सैनिक लोग खड़े हैं ……धनुष की पूरी सुरक्षा है ………
अब जाओ बाहर …..धनुष देख लिया ना ! दूसरा सैनिक बोला ।
अरे ! हमारे मामा जी को माल है थोडो और देखन्दो ……….मनसुख अपनी मस्ती में बोला था ।
मनसुख ! धनुष उठा दूँ ? श्रीकृष्ण नें कान में कहा ।
गिरिराज गोवर्धन से तो हल्का ही होगा ! बलभद्र भैया भी हँसते हुये बोले थे ।
बस फिर क्या था ……….भागे धनुष की वेदिका की ओर श्रीकृष्ण ……सैनिक श्रीकृष्ण के पीछे भागे ……दो चार और थे वो मनसुख आदि को पकड़नें लगे ……तो ये सब सखा बोले …….”.हमें पकड़ के क्या होगा …उसे पकड़ो.”……….तो वो सैनिक भी श्रीकृष्ण के पीछे ही भागे …..पर श्रीकृष्ण धनुष जहाँ रखी थी उसी वेदिका में खड़े हैं …………कुछ क्षण के लिये रुके थे बस …….फिर तो देखते ही देखते धनुष को उठा लिया ……टिका लिया ……और…….उस धनुष के एक छोर को झुकाया …….. और झुकाया …….झुकाते जब चले गए ……..तब एक तेज ध्वनि के साथ वो धनुष टूट गया ।
कंस का सिंहासन हिल गया था…….उस सिंहासन के ऊपर का ध्वज गिर गया…….मथुरा काँप गयी……..मथुरा के नर नारी पहले समझ नही पाये कि हुआ क्या है……..पर जब उन्हें पता चला कि धनुष उन्हीं भुवनसुन्दर नें तोड़ दिया है ……बस फिर क्या था खुल कर सामनें आनें लगे नागरिक …….राजा का विरोध मुखर होनें लगा .।
सब आनन्दित होते हुये रंगशाला की ओर दौड़े …………..सैनिकों नें रोकनें का प्रयास किया पर आज ये रुक नही रहे थे ।
राजा कंस नें सभा छोड़ दी ………राजा कंस अपनें निज महल में चला गया ……..जब उसनें सुना की कृष्ण नें धनुष को तोड़ दिया है …….वो तो काँप उठा …………अब कृष्ण मुझे मार देगा ………मार देगा ।
तात ! मथुरा के नागरिक इसलिये प्रसन्न हुये और राजा कंस का मुखर विरोध करनें पर उतर आये थे ……कि शिव धनुष देते समय परशुराम भगवान नें कहा था कंस को ……कि जो इस धनुष को तोड़ेगा वही तेरा वध करेगा ……..ये बात मथुरा की प्रजा जानती थी ।
पर मुँह लटकाये दुःखी श्रीकृष्ण धनुष तोड़कर आगे के लिये चल दिए थे ………..ए कन्हैया ! तू दुःखी है ? बलभद्र भैया नें पूछा ।
हाँ भैया ! श्रीकृष्ण नें कारण भी बताया ……..रामावतार में धनुष तोडा था तो सिया जु मिलीं थीं …..पर यहाँ तो !
बलराम भैया इस बात पर खूब हंसे ………….खूब ।
शेष चरित्र कल –
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