श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! जन नायक श्रीकृष्ण !!
भाग 2
“श्रीकृष्ण कन्हैया लाल की”…..सब जोर से बोले ….”जय जय जय !”
नागरिकों नें श्रीकृष्ण को अपनें कन्धे में उठा लिया था………कोई माला पहना रहा है ……कोई मथुरा का नागरिक पुष्प बरसा रहा है …….”यही है हमारा राजा”……युवाओं में जोश आगया था……कोई अबीर उड़ानें लगे थे ……चारों ओर अब श्रीकृष्ण ही श्रीकृष्ण छा गए थे मथुरा में ।
कन्हैया ! नीचे उतर….बलभद्र नें श्रीकृष्ण को उस नागरिक के कन्धे से नीचे उतारा….हाँ क्या बात है दाऊ भैया ! कन्हैया नें पूछा था ।
वो देख ! कुछ दीख रहा है ? दाऊ भैया नें दूर दिखाया ।
धूल उड़ रही है……मारो काटो की आवाज से मथुरा नगरी गूँज रही है ।
ओह ! ये तो “अजेय सेना” है कंस की ……….एक नागरिक नें कहा ।
कन्हैया मुस्कुराये………और दाऊ भैया से बोले ……चलो ! इन लोगों को भी देखा जाए …..ये कहते हुये फुर्ती से एक लाठी ली श्रीकृष्ण नें और एक दाऊ भैया नें ……दोनों नें लाठियाँ घूमायीं और अजेय सेना के पास पहुँच गए…..देखते ही देखते तड़तड़ सैनिकों के कपाल बज उठे ….लाठियों से उनके कपाल फट कर उसमें से रक्त की धार बह चली ।
ये श्रीकृष्ण स्वयं अजित हैं ………इनके सामनें कौन टिक सकता है भला …….तात ! कुछ क्षणों में ही श्रीकृष्ण और बलभद्र नें कंस की अजेय सेना को भी मार गिराया ……और मथुरा के नागरिकों को आश्चर्य ये हुआ कि बिना शस्त्र के ……मात्र लाठियों से ….और अजेय सेना ?
“श्रीकृष्ण कन्हैया लाल की”…….अब तो पूर्ण विश्वास हो गया था मथुरा के नागरिकों को कि श्रीकृष्ण के सामनें कंस कुछ नही है , “जय जय” सब आनन्दित हो कर बोले ।
ए हटो ! ये हमारा है……. माली समाज आगया था उस भीड़ में …..ये श्रीकृष्ण हमारा है …..सुदामा माली के यहाँ ही ये गए हैं मथुरा में ।
तभी दुसरा दल आगया ……….इन्होनें जो कपड़े पहनें हैं वो धोबी नें पहनाया है …………वो तो स्वयं ही काल आगया इसलिये मर गया ……पर हम धोबी समाज आपका अभिनंन्दन करते हैं …………तभी तीसरा दल आगया ……….दर्जी समाज से हैं हम …….आपके वस्त्र जिसनें सिले वो हम लोगों का भाई है ………आपनें उसकी सेवा स्वीकार की …….धन्यवाद ।
तात ! इस तरह श्रीकृष्ण जन नायक बन रहे थे ……मथुरा का हर वर्ग श्रीकृष्ण को अपना माननें लगा था ……..अपनें नायक के रूप में श्रीकृष्ण को देख रहा था ………….तभी –
अरे ! ये अपनी देवकी का बेटा है ……..एक बुढ़िया आगे आई और सबके सामनें चिल्लाकर बोली ।
क्या ? ये देवकी का पुत्र है ? महिलाएं आगे आईँ ……….क्या सच में ये देवकी का पुत्र है ………….ये महिलाएं क्षत्रिय समाज की थीं …….हमारी तो बहन लगती है देवकी …………क्षत्रिय समाज में पुरुष वर्ग आगे आया …………..वसुदेव के पुत्र हैं ये ? आनन्दित हो उठे सब लोग …….हमारे तो वो चाचा लगते हैं ……..तो ये हमारे भाई हुए ना !
रोरी अबीर उड़ाया जा रहा है मथुरा में ……….नाच गान प्रारम्भ हो गया है …….सब नागरिक अपनें अपनें कन्धे में श्रीकृष्ण को लेना चाहते हैं ।
…तभी उसी समय – कन्हैया ! कन्हैया ! घबड़ाये हुए नन्द महाराज वहाँ पहुँच गए थे ….उनके साथ उनके मित्र गण भी थे ………हटो हटो ! मेरे लाला को नीचे उतारो …………कन्धे से नीचे उतरे श्रीकृष्ण …….बाबा ! आप इतनें घबड़ाये क्यों हो ?
ये आवाज कैसी थी ? कितनी भयानक आवाज ……उफ़ !
क्या था वो ? पता है मैं कितना घबडा गया !
नन्दबाबा घबराहट के कारण स्वेद से नहा गए थे ।
अरे ! बाबा कुछ नही है…धनुष तोड़ दिया था मैने ….सरलता से बोले ।
क्या ! चौंक गए नन्दबाबा ………धनुष ? शिव धनुष तोड़ दिया तूनें ?
हाँ …..पुराना हो गया था …..मैने तो केवल हाथ ही लगाया ……बाकी अपनें आप टूट गया ……….श्रीकृष्ण मासूमियत से बोले ।
चल तू ! हाथ पकड़ कर ले जानें लगे नन्दबाबा ……श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुये चल पड़े थे…….”.ये तो वसुदेव का पुत्र है” …….आप कहाँ ले जा रहे हो इसे ? एक नागरिक नें बोल दिया ।
“किसनें कहा ये वसुदेव का है ……..ये मेरा है “………नन्दबाबा जोर से चिल्लाये थे सब नागरिकों के सामनें ….और अपनें लाला, बलभद्र और सब सखाओं को लेकर आगये उसी उद्यान में……..सन्ध्या होनें वाली थी ।
“कल चलना है वृन्दावन…..कंस कुछ कर देगा तुझे तो ? हमारे पास तो अस्त्र शस्त्र भी नही हैं ………क्या करेंगे हम ?” नन्दबाबा कन्हैया को डाँट रहे हैं । ………पर बाबा ! कल कुश्ती है ……हमें कुश्ती देखनी है । …….कुश्ती देखनी है ? माखन रोटी खाओ और सो जाओ ………तू तू बलराम ! तू बड़ा होकर भी अपनें भाई को रोक नही सकता था ..? वो धनुष तोड़नें दिया ! अब राजा कंस क्या करेगा ? नन्द बाबा घबरा रहे हैं ।
कुछ नही करेगा कंस बाबा ! आप अब देखते तो जाओ !
नन्दबाबा को श्रीकृष्ण की आँखों में कंस के लिए काल दिखाई दिया ……….नन्द बाबा बिना कुछ बोले ……”नारायण नारायण नारायण” करते हुये सन्ध्या करनें यमुना किनारे चले गए थे ।
शेष चरित्र कल –
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