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November 21, 2024 9:37 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “भयाद् कंसो” – कंस का भयोन्माद !!-भाग 1 : Niru Ashra

!! “भयाद् कंसो” – कंस का भयोन्माद !!

भाग 1

हा हा हा हा…….भगवान परशुराम ! एक हाथ में उठा दिया मैने पर्वत के सहित भगवान परशुराम को ! देखो ! ए लोक पालों देखो ! हे दिग्पालों देखो ……..मैने भगवान परशुराम को ………हा हा हा हा ।

माँगों वत्स ! तुम्हारी वीरता से मैं प्रसन्न हूँ ………..सोच के विपरीत भगवान परशुराम नें नेत्रों को खोलकर कंस से कहा था ।

कंस को तो लगा था कि परशुराम क्रोधित होंगें ………पर …..

चरणों में किंचित् झुका था कंस ………वो कुछ वर माँगता उससे पहले ही परशुराम जी अपनें नेत्रों को बन्दकर कुछ पढ़नें लगे थे ……उसी समय उनके हाथों में वो विशाल शिव धनुष आगया ।

“जो इसे तोड़ेगा वही तुम्हारा वध करेगा”……….भगवान परशुराम की वाणी…….और कंस उसे लेकर आगया था ।

हा हा हा हा हा ……..मैं हूँ तेरा काल ! देवकी नन्दन ……..तेरी भगिनी का पुत्र कृष्ण …….तोड़ दिया ना तेरा धनुष……और उसके साथ ही तेरा अहंकार भी……अब तेरी बारी है कंस !

वो देवकी पुत्र क्रोध से भरा हुआ था……..और कंस की छाती पर ही चढ़ गया था ।

न हीं………चिल्ला उठा कंस ………पसीनें से भींगा हुआ था ………वो डरा हुआ था ………उफ़ ! कितना भयानक सपना ! जल पीने के लिये उठा कंस……पर अन्धेरा था …….दीया हवा के झौंके नें बुझा दिया था…….या स्वयं ही बुझ गया था ……..जल लेनें के लिये उठा तो गिरा कंस………फिर उसनें दीपक जलाया……..जल पीनें लगा …….लम्बी लम्बी साँसे ले रहा था ……हाँफ रहा था वो कंस ।

उसनें धनुष को तोड़ दिया ………भगवान परशुराम मिथ्या कैसे हो सकते हैं ……..धनुष को कृष्ण नें तोड़ा है तो वही मेरा वध करेगा …….

पर मेरे सेवक कह रहे थे कि धनुष पुराना हो गया था ………..

विचार करते हुये उसे अपनी परछांई दिखाई दी ……….वो चौंका ……मेरी परछांई में इतनें छिद्र कैसे ? और .घबड़ाया वो कंस …….उसनें अपना सिर छूआ……..क्यों की परछांई में सिर नही दिखाई दे रहा था …….वो और घबड़ाया ।

ये क्या हो रहा है मेरे साथ…….कैसे कैसे सपनें आरहे हैं मुझे ……..मेरा मुण्डन हुआ है ………गधे में बैठकर मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूँ ……..नग्न ……..ओह ! ये सब क्या है !

सूर्य पृथ्वी में गिर गया है ….उसके दो टुकड़े ……चन्द्रमा भी गिरा है उसके चार टुकड़े ………ये सब हो क्या रहा है ।

कंस कलश से फिर जल पीता है…..
…और मुँह में जल के छींटे भी मारता है ।

तभी श्वान के समूह नें रुदन प्रारम्भ कर दिया था ……कंस का सिर, दर्द से फटा जा रहा है……..वो अपनें महल की हर वस्तुओं को तोड़ फोड़ देता है ……विचित्र स्थिति हो गयी है कंस की अब ।

शियार बोल रहे हैं………कंस झरोखे बन्द कर देता है……पर उसे गर्मी लग रही है……वो कुछ देर तक तो गर्मी सह लेता है ……फिर वो बाहर निकल जाता है ……क्यों की उसे अब नींद आनें वाली तो है नही ।

क्रमशः …

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! “भयाद् कंसो” – कंस का भयोन्माद !!

भाग 1

हा हा हा हा…….भगवान परशुराम ! एक हाथ में उठा दिया मैने पर्वत के सहित भगवान परशुराम को ! देखो ! ए लोक पालों देखो ! हे दिग्पालों देखो ……..मैने भगवान परशुराम को ………हा हा हा हा ।

माँगों वत्स ! तुम्हारी वीरता से मैं प्रसन्न हूँ ………..सोच के विपरीत भगवान परशुराम नें नेत्रों को खोलकर कंस से कहा था ।

कंस को तो लगा था कि परशुराम क्रोधित होंगें ………पर …..

चरणों में किंचित् झुका था कंस ………वो कुछ वर माँगता उससे पहले ही परशुराम जी अपनें नेत्रों को बन्दकर कुछ पढ़नें लगे थे ……उसी समय उनके हाथों में वो विशाल शिव धनुष आगया ।

“जो इसे तोड़ेगा वही तुम्हारा वध करेगा”……….भगवान परशुराम की वाणी…….और कंस उसे लेकर आगया था ।

हा हा हा हा हा ……..मैं हूँ तेरा काल ! देवकी नन्दन ……..तेरी भगिनी का पुत्र कृष्ण …….तोड़ दिया ना तेरा धनुष……और उसके साथ ही तेरा अहंकार भी……अब तेरी बारी है कंस !

वो देवकी पुत्र क्रोध से भरा हुआ था……..और कंस की छाती पर ही चढ़ गया था ।

न हीं………चिल्ला उठा कंस ………पसीनें से भींगा हुआ था ………वो डरा हुआ था ………उफ़ ! कितना भयानक सपना ! जल पीने के लिये उठा कंस……पर अन्धेरा था …….दीया हवा के झौंके नें बुझा दिया था…….या स्वयं ही बुझ गया था ……..जल लेनें के लिये उठा तो गिरा कंस………फिर उसनें दीपक जलाया……..जल पीनें लगा …….लम्बी लम्बी साँसे ले रहा था ……हाँफ रहा था वो कंस ।

उसनें धनुष को तोड़ दिया ………भगवान परशुराम मिथ्या कैसे हो सकते हैं ……..धनुष को कृष्ण नें तोड़ा है तो वही मेरा वध करेगा …….

पर मेरे सेवक कह रहे थे कि धनुष पुराना हो गया था ………..

विचार करते हुये उसे अपनी परछांई दिखाई दी ……….वो चौंका ……मेरी परछांई में इतनें छिद्र कैसे ? और .घबड़ाया वो कंस …….उसनें अपना सिर छूआ……..क्यों की परछांई में सिर नही दिखाई दे रहा था …….वो और घबड़ाया ।

ये क्या हो रहा है मेरे साथ…….कैसे कैसे सपनें आरहे हैं मुझे ……..मेरा मुण्डन हुआ है ………गधे में बैठकर मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूँ ……..नग्न ……..ओह ! ये सब क्या है !

सूर्य पृथ्वी में गिर गया है ….उसके दो टुकड़े ……चन्द्रमा भी गिरा है उसके चार टुकड़े ………ये सब हो क्या रहा है ।

कंस कलश से फिर जल पीता है…..
…और मुँह में जल के छींटे भी मारता है ।

तभी श्वान के समूह नें रुदन प्रारम्भ कर दिया था ……कंस का सिर, दर्द से फटा जा रहा है……..वो अपनें महल की हर वस्तुओं को तोड़ फोड़ देता है ……विचित्र स्थिति हो गयी है कंस की अब ।

शियार बोल रहे हैं………कंस झरोखे बन्द कर देता है……पर उसे गर्मी लग रही है……वो कुछ देर तक तो गर्मी सह लेता है ……फिर वो बाहर निकल जाता है ……क्यों की उसे अब नींद आनें वाली तो है नही ।

क्रमशः …

Niru Ashra
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Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

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