श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! नन्दबाबा के अश्रु – “उद्धव प्रसंग 11” !!
भाग 1
कौन ?
मैं सम्भालता मैया यशोदा को .....जो अपनें कन्हैया के विरह में मूर्छित हो गयीं थीं .......पर उसी समय .......महामना नन्द बाबा पधारे थे .......श्वेत केश थे उनके ........सिर में पगड़ी बाँधे हुये थे .......उन्हें भी ज्यादा दिखाई नही दे रहा था ।..........बृज में मैने देखा तात ! रो रोकर सबके नेत्र अस्वस्थ हो गए हैं.......अब नेत्र अस्वस्थ हुए तो कान भी रुग्ण होनें ही थे .........।
मैने आगे बढ़कर चरण वन्दन करनें चाहे …….पर मुझे झुकनें ही नही दिया उन्होंने ……….कन्हैया ?
मैं उनका सखा उद्धव, सन्देश वाहक बनकर आया हूँ ।
मैने उन्हें अपना परिचय दिया ………।
किसके पुत्र हो तुम उद्धव ! कहीं देवभाग के तो नही ?
मैने अपना सिर झुकाकर कहा ………जी ! ।
अरे ! तुम तो अपनें ही हो ……………उन महामना नें मुझे अपनें आलिंगन में भर लिया था ।
तब तक कुछ सेविकाएँ वहाँ आगयीं थीं …….जिन्होनें मैया यशोदा को उठाया …………जल पिलाया ………..तब जाकर वो मैया कराहती हुयी जैसे तैसे बैठी थीं ।
अरे ! यशोदा ………देखो अपनें कन्हैया का सखा आया है …….ये अपनें लाला का सखा है ……..उद्धव नाम है इसका ।
मैया को कैसे मेरा परिचय दे रहे थे बाबा ।
मैया अब बैठ गयी थी………उसनें अब मुझे अच्छे से देखा था …..पर उसकी दृष्टि मेरी पीताम्बरी पर ही स्थिर हो गयी थी ……वो पहचान रही थी कि ये पीताम्बरी उसके लाला कि ही है …………।
उद्धव ! तुम भी मेरे कन्हैया जैसे ही हो ………..मेरे कपोल को वात्सल्य से थपकी देते हुये बाबा कह रहे थे ………..।
मैया मेरी ओर अपलक देखे जा रही थी ………….
मैं तुम्हारे पिता देवभाग को भी पहचानता हूँ ……वसुदेव के भाई लगते हैं तुम्हारे पिता भी , मुझे पता है ………..मैने उनसे “हाँ” कहा ।
और बताओ ………वसुदेव कैसे हैं ? नन्दबाबा पूछ रहे हैं ।
ठीक हैं ………..मैने कहा ।
महाराज उग्रसेन कुशल से तो हैं ना ? अब तो उन्हें राजगादी भी मिल गयी ……..मथुरा की प्रजा बहुत प्रसन्न है ! हाँ प्रसन्न क्यों नही होगी ………कंस का अत्याचार बहुत सहा है ना उन लोगों नें ……….अब तो अच्छा हो गया ……..यदुवंशी लोग भी अब आनन्द में होंगे ?
नन्द बाबा मुझ से बस यही सब पूछते रहे ……….मैं कभी मैया को देख रहा था कभी बाबा को ……..बाबा पूछते हुये मुझ से नजरें चुरा रहे थे ……वो मेरी ओर देखते तो थे पर फिर मेरे वस्त्र कि ओर ही उनकी दृष्टि टिक जाती थी ।
उग्रसेन सुखी होंगे अब ……………जैसे ही नन्द बाबा नें फिर ये बात पूछी ………..बेचारी मैया का धैर्य जबाब दे गया था ………….आप को क्या मतलब है उग्रसेन से या वसुदेव से …………आप कन्हैया के बारे में क्यों नही पूछते ? अरे ! मथुरा सुखी रहे या दुःखी पर पूछो ना कि हमारा कन्हैया क्या कहता है ! वो सुखी है ? वो खाता है ? उसे मथुरा में नींद आती है ? उसे पेट भरकर कोई खिलाता है ? देवकी उसका ध्यान रखती है ? मैया यशोदा नें जैसे ही ये सब पूछा ………….नन्द बाबा का कण्ठ भर आया ……….वो कुछ बोल नही पा रहे थे ………उनका रोम रोम उत्थित हो रहा था ।
अश्रु धारा बह चली थी …………..मानों ऐसा लग रहा था कि अपनें भीतर इन्होनें अश्रुओं को रोक लिया था ………..जब उन्हें अवसर मिला तो वो बह चले थे ………।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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