श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! रुक्मणी हरण – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 14” !!
भाग 1
वो ग्वाला आगया !……और मुझे लग रहा है कि कहीं रुक्मणी का हरण करके वो ले न जाए ……….उसकी ये बचपन की आदत है …..जो वस्तु उसे प्रिय लगती है चुरा लेता है वो ……….रुक्मी ! अगर ऐसा हुआ तो मैं समाज में जीनें लायक नही रहूँगा ………ओह ! मैं तो सोच रहा था कि मगध नरेश नें उसे मार दिया होगा ……और वो स्वयं कह भी रहे थे …..किन्तु वो तो बच निकला ……….अब यहाँ भी आगया है ।
कितनी घबराहट हो रही थी शिशुपाल को ……वो भयभीत था श्रीकृष्ण से……न चाहनें के बाद भी उसका भय प्रकट हो ही गया था ।
आप चिन्ता क्यों कर रहे हो ………हमनें उसे निमन्त्रण नही दिया है ….इसके बाद भी वो आया है तो अपमान अब उसका होगा ……..मेरे पास सेना की कोई कमी नही है …….फिर तुम्हारी सेना भी तो आगयी है …..और अगर इससे भी न हुआ तो मगध नरेश जरासन्ध अपनी सम्पूर्ण सेना विदर्भ में भेजनें को तैयार है ………रुक्मी समझा रहा था ……….चिन्ता की कोई बात ही नही …….और हमारे लिए अच्छा है कि वो अकेला है ……उसका बड़ा भाई बलराम भी इस बार साथ में नही है ।
कहो तो उसका यहीं वध कर दें ? रुक्मी नें शिशुपाल से पूछा ।
अपनें मस्तक में उभर आये स्वेद को पोंछते शिशुपाल बोला ……..तुम इतना सरल समझ रहे हो …..मगध नरेश को उसनें सत्रह बार पराजित किया है …….और बिना अपनी यादवी सेना के…….और कालयवन जैसे अपराजित योद्धा को उसनें मार गिराया है……कण्ठ सूख गया था शिशुपाल का ये सब कहते हुये ।
अरे ! आप चिन्ता छोडो……..कुछ नही होगा……..मैने पूरी व्यवस्था कर रखी है……रुक्मी नें फिर समझाया शिशुपाल को ।
युवराज रुक्मी की जय हो ! राजकुमारी को भगवती पूजन के लिए मन्दिर भेजा जाए …….ये राजपुरोहित की आज्ञा है !
एक सैनिक नें आकर सूचना दी ।
कोई आवश्यक नही है अभी मन्दिर भेजनें की ……..रुक्मी दो टूक बोला ……….किन्तु तभी …………हे राजकुमार ! ये हमारी परम्परा है ……..कुल की परम्परा का निर्वाह करना ये हमारा धर्म है ……..विवाह से पूर्व कन्या मन्दिर में जाती है और दैवीय शक्ति की कृपा प्राप्त करती है ।
राजपुरोहित वहाँ आ पहुँचे थे ….उन्हीं नें आकर रुक्मी को समझाया था ।
किन्तु वो ग्वाला आगया है ……वो वहीं से हरण करके ले जायेगा !
शिशुपाल फिर भयभीत हो, बोल उठा ।
ये कार्य हमारा है……कि हम कन्या की रक्षा करें …..किन्तु ! कन्या को उसके अधिकार से वंचित करना ये क्षत्रिय धर्म नही होता राजकुमार !
कन्या का ये अधिकार है कि वो अपनी इष्ट भगवती का पूजन करनें मन्दिर अवश्य जायेगी ……..और रही सुरक्षा की बात तो उसके लिये आप लोग हैं ना वीर महावीर …….कीजिये व्यवस्था !
राजपुरोहित की बात पर रुक्मी भी चुप हो गया और शिशुपाल भी ।
ठीक है ……….सेनापति को मेरे पास भेजा जाए …………
सैनिक को आदेश दिया । राजपुरोहित वहाँ से चले गए थे ।
उद्धव विदुर जी से बोले – सेनापति को आदेश दिया रुक्मी नें ……विदर्भ की पूरी सेना रुक्मणी की सुरक्षा में लगा दी जाए……..चार घेरा बनाओ ……..मध्य में रुक्मणी चले पूजन के लिये …….उसके चारों ओर उसकी सखियाँ हों…….उन सखियों को घेरकर हमारे सैनिक चलें ………निःशस्त्र ………फिर शस्त्र धारी सैनिकों का घेरा हो जो उन सैनिकों को घेर कर चलते रहे…….इन घेरे को कोई तोड़ न सके ।
ये आदेश सेनापति को दे दिया था रुक्मी नें ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –


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