भगवान श्री कृष्ण का रूपd
By Kusum Singhania
भगवान का रूप ऐसा है कि उसे देखते ही जीव को ऐसा विलक्षण आनंद अनुभव होता है जिसको शब्दों में बताया नहीं जा सकता। एक बार उस रूप के दर्शन होने पर स्वयम् के शरीर का भी भान नहीं रह जाता। ऐसा वर्णन आता है कि उनको देखने वाले आँखों से उन्हें देखते हैं, कान से उनकी बंसी ध्वनि सुनते हैं, नाक से उनके देह की दिव्य गंध लेते हैं, जिह्वा से मानो उन्हें चाटते ही हैं, और शरीर से उनका आलिंगन करते हैं। कोई भी इन्द्रिय फिर भगवान को छोड़ कर कहीं और जाना ही नहीं चाहती।
भगवान का रूप सदा 15 वर्ष के किशोर जैसा ही रहता है। अवतार काल में भी भले ही भगवान 100 वर्ष के हो जाएँ तब भी उनका रूप सदा 15 वर्ष के किशोर जैसा ही रहता है। अर्थात वे शिशु रूप से प्रकट होकर बढ़ने की लीला करते हैं और बढ़ने के अनुसार रूप बदलते जाते हैं, और 15 वर्ष में जाकर उनका रूप वैसा ही रह जाता है।
उनके प्रत्येक अंग बहुत सुगठित है, सुंदर साँचे में ढले हुए, एक एक अंग की सुंदरता ऐसी है कि किसी एक अंग पर दृष्टि पड़ जाये तो वहां से हटती ही नहीं।
यद्यपि उनका शरीर अत्यंत सुगठित, बलिष्ठ, और सुंदर है, पर इसके साथ ही वह अत्यंत अत्यंय कोमल है।
उन्हें देखने वाले उनकी कोमलता पर बलिहारी जाते हैं। एक नवजात शिशु के अंगों में जैसी कोमलता होती है, उसकी अनंत गुना कोमलता है भगवान के प्रत्येक अंग में।
गोपियाँ कहती है – श्यामसुन्दर, तुम जब गायें चराने चलते हो, तब तुम्हारे कोमल चरणों में रास्ते के कंकड़, तिनके, आदि चुभते होंगे, यह सोच कर हमारा मन अत्यंत व्यथित हो उठता है।
भगवान का रंग कैसा है?
जल से भरा हुआ नवीन मेघ जैसा नीला होता है, वैसा ही रंग है उनका।
उसपर उनका पीताम्बर शुशोभित है। बादल में चमकती बिजली का जैसा रंग और चमक है, वैसा ही रंग और चमक उनके पीताम्बर में है। जब वे खड़े होकर बंसी बजाते हैं, तब वह पीताम्बर हवा में कुछ कुछ उड़ता रहता है, मानो नीले जल भरे बादल में बिजली खेल रही हो।
त्रिभंग ललित मुद्रा से खड़े बंसी वादन करते हैं प्रभु। त्रिभंग अर्थात तीन जगह से टेढ़े हैं। पहले चरणों को एक के सामने एक रखे हुए, दुसरे कमर को एक तरफ टेढ़ा किये हुए, तीसरे गर्दन को एक तरफ झुकाये हुए।
भगवान के सम्पूर्ण श्री अंगों से एक ऐसी अद्भुत कांति छिटकती है, जिससे चारों ओर प्रकाश होता रहता है।
कदम्ब के वृक्ष की छायाँ में वृक्ष के तने के सहारे निश्चिन्त से खड़े हैं। दाहिना चरण बाएं चरण के आगे से दूसरी तरफ ले जाकर पंजो के सहारे टिकाया हुआ है। लाल लाल तलवे दीखते हैं, जिसपर कमल, वज्र, अंकुश, चक्र, गदा, तथा ध्वजा आदि के चिह्न अंकित हैं। अत्यंत कोमल चरण हैं। लाल लाल सुंदर नख हैं, और नखों से दिव्य आभा बिखर रही है, मानो लाल मणि हो।
बायां चरण धरती पर सीधा रखा हुआ है। दोनों चरणों में बड़े सुंदर नुपुर हैं। चरणों पर भक्तों द्वारा अर्पित तुलसी जी विराजमान हैं।
चरणों से ऊपर की तरफ चलें।
ऊपर पीला पीतम्बर है। उसकी चमक बिजली की सी है।
भगवान की पहनी हुई वनमाला घुटनों तक लटक रही, पीताम्बर के ऊपर शुशोभीत है।
कमर में वनमाल के पीछे चटक लाल रंग की काछनी कसी हुई है। उसके ऊपर छोटी छोटी लटकती हुई घंटियों वाली रत्नों से जड़ी हुई करधनी बंधी है।
इन सभी की शोभा, सुंदरता, आभा, अति दिव्य है।
ऊपर नीला सुंदर वक्ष स्थल है। भगवान का वक्षस्थल अत्यंत विशाल, सुगठित, सुंदर है। उसपर बीच में श्रीवत्स का सुनहरा चिन्ह है, अर्थात सुनहरे रोमों से एक रेखा बनी हुई है जिसमें लक्ष्मी जी विराजमान हैं।
वनमाला के साथ ही भक्तों द्वारा पहनाई गयी चंदन चर्चित तुलसी की माला है। अन्य दिव्य रत्नों से जड़ित सुंदर कंठहार आदि आभूषण हैं। कंठ में कौस्तुभ मणि पहने हुए हैं।
सुंदर सुगठित कंधे पर पीताम्बर डाला हुआ है। दोनों भुजाएं लंबी, बलिष्ट और सुंदर हैं। उनपर चंदन, गेरू, और विभिन्न धातुओं से सुंदर सुंदर चित्रकारी की हुई है।
बाजुओं में कभी रत्न जड़ित बाजूबंद होते हैं, तो कभी भक्तों द्वारा पहनाये गए पुष्पों द्वारा निर्मित बाजूबंद।
दोनों हाथों से वंशी थामे उसे होठों से लगाये बजा रहे हैं। कलाइयों में रत्न जड़ित कंकण हैं। कभी तुलसी और पुष्पों से निर्मित कंकण होते हैं।
हाथों की हथेलियाँ भी लाल हैं। सुन्दर लंबी उँगलियों से वंशी को थामे हैं। दोनों हाथों के अंगूठे बंसी को सहारा दे रहे हैं, और आठों उँगलियाँ बंसी के छिद्रों पर नृत्य कर रही हैं। उँगलियों में सुंदर सुंदर अंगूठियां हैं, जिनमें राधा रानी का नाम और छवि दिखाई देती है।
बंसी महारानी भगवान के अधरों (निचला होंठ) पर विराजमान हैं। अनार के फल के समान लाल लाल होंठ हैं। होंठ कुछ संकुचित से होकर बंसी में स्वर फूंक रहे हैं। अधरों से दिव्य अमृत झर रहा है।
होंठो के ऊपर नाक से लटकता हुआ एक मोती है। होंठ और नाक के बीच में जो कुछ धंसा हुआ सा भाग होता है, उसी पर वह मोती लटक रहा है।
नाक का नीला रंग, होंठो की लालिमा, और बीच में सफ़ेद मोती की आभा, यह सब मिलकर एक अलग ही राज्य की सृष्टि कर रहे हैं।
भगवान के कपोल (गाल) उभरे हुए, नीले रंग के, कुछ लालिमा लिये हुए, और कांतिमय हैं। उन कपोलों की ऐसी विलक्षणता है कि कानों के चमकदार कुण्डलों का प्रतिबिम्ब कपोलों पर दिखाई देता है। साथ ही घुंघराली काली अलकों (केश) की कुछ लटें कपोलों पर खेलती रहती हैं।
भगवान की अलकें बहुत काली, चिकनी, बहुत घुंघराली, कोमल, और चमकदार हैं। कन्धों पर झूलती केशों की लटों के बीच भगवान का मुखचन्द्र ऐसा प्रतीत होता है मानों पूर्णिमा की रात में काले मेघों के बीच में चँद्रमा।
सिर पर दिव्य रत्नों से जड़ित मुकुट है, जिसमें चटकीले रंग वाले मोर पंखों का गुच्छा है खोंसा हुआ है। एक तरफ मोतियों की लड़ियों की लटकन लटक रही है। जब बंसी वादन करते हुए सर को कुछ हिलाते हैं, तब वह लटकन इधर उधर हिलती हुई अत्यंत सुंदर जान पड़ती है।
कभी कभी बहुत से सुंदर सुंदर रंग बिरंगे पुष्पों से बनाया हुआ मुकुट भी धारण किये होते हैं।


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