श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! सूर्यभक्त सत्राजित – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 17” !!
भाग 1
हाँ , ये द्वारिका में ही रहता था …….सत्राजित नाम था इसका ……सनक थी इसे भास्कर की उपासना करके उन्हें प्रसन्न करनें की ।
भास्कर के उपासक कम हैं …………शिव , शक्ति गणेश विष्णु इनके उपासक तो हैं ….किन्तु सूर्य के ना के बराबर हैं ……..कईयों को सनक होती हैं …….नया करनें की ………तो इसे भी थी ।
उपासना ऐसी की इसनें कि सूर्य प्रसन्न तो हुये ही ………इसके सखा तक बन गए ………..ये द्वारिका के वन में जाकर तप करता था ……..खूब तप किया इसनें …….सूर्य इसके पास आते इससे वर माँगनें के लिये कहते …………उपासक की निष्ठा हो तो क्या असम्भव है ।
तुम कुछ तो मांगों सत्राजित ! भास्कर आज जिद्द ही करनें लगे थे ।
हे भगवन् ! मेरी कोई इच्छा नही है …….हाँ अगर आप प्रसन्नता से जो देदेंगे मैं प्रसाद समझ कर स्वीकार कर लूँगा ………हाथ जोड़कर सत्राजित बोला था ।
ठीक है फिर ……….ऐसा कहकर भास्कर नें एक मणि अपनी शक्ति से प्रकट की …………और सत्राजित के हाथों में देते हुये बोले……..ये स्यमन्तक मणि है ……….इसकी पूजा नित्य करना ……….तब ये मणि तुम्हे एक दिन में आठ भार ( दो कुन्टल ) सोना प्रदान करेगी ।
अब तुम जाओ द्वारिका …………..सूर्य नें सत्राजित के कन्धे में हाथ रखा और अंतर्ध्यान हो गए थे ।
हे द्वारकेश ! लगता है भगवान भास्कर हमारी सभा में पधार रहे हैं !
अक्रूर नें उठकर श्रीद्वारिकाधीश से कहा ।
कुछ नही बोले बस मन्द मुस्कुराये थे श्रीकृष्ण !
हाँ, उग्रसेन नें अवश्य पूछा था ……इतना प्रकाश ? सच कह रहे हो अक्रूर भगवान भास्कर ही पधारे हैं ।
तात ! सत्राजित अपनी ये तपस्या का फल श्रीकृष्ण को दिखाना चाहता था……..अपनी जयजयकार सुननें की किसकी इच्छा नही होती …..फिर ये तो सामान्य ही था………इसलिये अपनें घर न जाकर ये श्रीकृष्ण की सभा में आगया था …….ताकि वो स्यमन्तक मणि जो सूर्य नें इसे दी थी उसे ये दिखा सके ….. और अपनें अहंकार को पुष्ट करे ।
सत्राजित ? श्रीकृष्ण नें देखा सभा में प्रवेश कर रहा था वो ।
उसके गले में वो मणि लटक रही थी ……जिसमें से अद्भुत प्रकाश छिटक रहा था……..सामान्य व्यक्ति उस ओर देख भी न सके …..इतना प्रकाश था उस मणि में ।
अरे ! ये तो सत्राजित है ……..श्रीकृष्ण तो सबको मान देना जानते हैं …….उठकर खड़े हो गए सत्राजित के स्वागत के लिये ।
सत्राजित का अहंकार और बढ़ गया ।
ये मणि कहाँ से पाईँ आपनें ? आसन में बैठानें के बाद श्रीकृष्ण पूछ रहे थे……..भगवान सूर्य नें प्रदान की है ।
अरे वाह ! सत्राजित ! तुम तो बड़े भक्त निकले सूर्य के …….और बताओ ! पूरी सभा तुम्हे सुनना चाह रही है , बताओ इस मणि की विशेषता ? श्रीकृष्ण आनन्द लेना खूब जानते हैं …….सहज होकर बोले ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –


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