श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! सुदामा माली कृतार्थ हुआ !!
भाग 2
राजमार्ग में भीड़ लगी है ……..पूतना खा गयी थी इसके बालकों को ….ओह ! कुछ हड्डियाँ बची थी ………वस्त्र पड़े थे उसी से पहचाना सुदामा माली नें……….वो रोया …….वो चीखा ………..पर लोग डरते थे कंस से………..वो सब वहाँ से चले गए ।
सुदामा माली रोता रोता कंस के पास आया …………कंस रंगेश्वर महादेव में बैठा हुआ था ………वो भी सुदामा के माला की प्रतीक्षा ही कर रहा था ……..कि – “महाराज ! महाराज ! मेरे बालकों को पूतना खा गयी ………मैं तो आपका अपना हूँ फिर मेरे साथ ऐसा क्यों ? वो चिल्लाया …….तो कंस नें बिना कुछ सुनें …….उससे कहा … पूजा के माला पुष्प कहाँ हैं ? “मेरे बालक मर गए हैं ….न्याय करो महाराज ! माली का हृदय चीत्कार कर रहा था ।
हट्ट ! दुष्ट कंस नें बिना कुछ सोचे समझे एक लात का प्रहार किया बेचारे सुदामा माली के वक्ष में …………..वो गिरा ………….फिर उठा ……अपनें आँसू पोंछे ………घर कि ओर चला गया ।
इसनें कंस के पास जाना छोड़ दिया था ……..राजा कंस नें इसे बुलवाया भी …..पर ये नही गया …………..जो इसे कंस कि और से बुलानें आता ये उससे कह देता ………कह दो राजा से मुझे मार दे ………मेरे दो बालकों को तो मार दिया है …..हम दोनों दम्पति को भी मार दे ………कंस के लोग कहते ……ये पागल हो गया है ।
कुछ वर्ष बीते ही थे कि ………….सुदामा माली उस दिन बहुत प्रसन्न हुआ बहुत प्रसन्न ……….वो नाचा था उस दिन ……….
क्या हुआ ? उसके लोगों नें पूछा तो इसनें कहा ……..गोकुल के कृष्ण नें पूतना को मार दिया……..कृष्ण ! कृष्ण ! आहा ! कितना प्यारा नाम है इसका………वो इसी नाम का स्मरण करता …….दिन रात इसी नाम को गाता रहता ………..प्रार्थना करता ……हे कृष्ण ! दुष्ट कंस का भी वध करो …….अत्याचार चरम पर है इसका ।
” दाऊ भैया ! ये मेरा निरन्तर नाम जप रहा है ग्यारह वर्षों से ……ये भोजन भूल सकता है पर मेरा नाम नही……प्रारम्भ में तो मेरा नाम ये कंस से प्रतिशोध के चलते लेता था ……पर कब से मैं इसका प्रिय बन गया इसके हृदय में मेरे प्रति प्रेम जाग गया ……इसे भी नही पता ।
द्वार खुला है …………भीतर सुदामा बैठा है …….नित्य घर के ही उद्यान से पुष्प का चयन करता है ….और नित्य माला बनाता है ……….मेरे श्रीकृष्ण आएंगे ……….मेरे श्री कृष्ण आएंगे ! …………
आये श्रीकृष्ण – “सुदामा ! ओ सुदामा !” उसके सिर पर अपनें कोमल कर रखे श्रीकृष्ण नें . ……सुदामा नें देखा …….वो गदगद् हो गया …..उसे रोमांच होने लगा……….मेरे श्रीकृष्ण ! उसनें भुवन सुन्दर को अपनें सामनें देखा था ……उसके भाग्य कि सराहना कौन कर सकता है ……स्वयं श्रीकृष्ण कृपा करके उसके घर में पधारे थे ।
वो उन युगल चरणों में गिर गया …. अश्रुओं से उनके चरण धो दिए ।
हे नाथ ! आपके दर्शन हो गए अब मुझे कुछ नही चाहिये ………हाँ , दुष्ट कंस का अत्याचार चरम पर है ……….इसलिये हम मथुरा वासीयों के दुःख को दूर करें नाथ ! सुदामा रोता रहा ।
माला नही पहनाओगे सुदामा ! बड़े प्रेम से बोले थे दीनबन्धु ।
हाँ हाँ ……….वो तो प्रेम में बाबरा हो गया था ……..उसनें कहा – राजा कंस को बहुत माला पहनाई मैने, पर दुष्ट की संगति सदैव अमंगल ही करती है …..मेरे तो सन्तान ही छीन लिए उस दुष्ट नें.. ……पर आज मैं अपनें जीवनधन को माला पहनाउंगा…….मेरे सब कुछ आप हो .नाथ !, ये कहते हुये माला पहनाई सुदामा नें श्रीकृष्ण को ……..दाऊ जी को …..समस्त सखाओं को ………..श्रीकृष्ण के ऊपर पुष्प छोड़े ……..और चरणों में तुलसी दल चढ़ाकर वो सुदामा माली साष्टांग लेट गया ।
मेरे दो बालक थे नाथ ! पर दुष्ट कंस के कारण…………सुदामा रोनें लगा …………माली के सिर में अपनें हाथ रखते हुये श्रीकृष्ण बोले ……हमें सब पता है …….चिन्ता मत करो …..कंस का अत्याचार समाप्त करनें के लिये ही मैं यहाँ आया हूँ ………गम्भीर थे श्रीकृष्ण …….”और सुदामा ! कंस के पाप का घड़ा भर चुका है …..फूटनें ही वाला है ” ।
इतना ही कहकर वो पीताम्बर धारी बाहर निकल गए थे ……..जयजयकार कर उठा माली , धन्य हो गया था ये सुदामा माली ।
शेष चरित्र कल –
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