श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! मणि की खोज में – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 19” !!
भाग 2
हूँ ………कुछ विचार करके श्रीकृष्ण नें कहा ……….पाँच लोग जो सेना के हैं वो इस प्रसेन के शरीर को ले जाएँ और उसके भाई सत्राजित को देदें ….ताकि वो अंतिम संस्कारादी कर सके ।
जो आज्ञा वासुदेव !
पाँच लोग प्रसेन के मृत देह को लेकर लौट गए थे ।
भगवान वासुदेव आगे बढ़नें लगे थे अब……..वो सिंह के चिन्ह जिधर दीख रहे थे उधर ही सब लोग बढ़ते जा रहे थे ……….आगे एक मैदानी भाग दिखाई दिया ………..वहाँ पर गए तो ……ओह ! यहाँ तो ये सिंह भी मरा पड़ा है ……….श्रीकृष्ण दौड़ते हुये सिंह के निकट पहुँचे ………बड़े ध्यान से देखते रहे उस सिंह को …………
फिर बोले ……….इसको किसी रीछ नें मारा है …………
रीछ नें ? सब लोग मृत सिंह को देखनें लगे थे ।
इधर देखो ! रीछ के पैरों के चिन्ह………श्रीकृष्ण नें सबको दिखाया ।
किन्तु ! ये रीछ इस युग का लगता नही है ! श्रीकृष्ण नें ही स्वयं कहा …………..क्या आप लोग ऐसे रीछ को जानते हैं जिसके पैर इतनें बड़े हों ? चिन्ह देख कर सब लोग बोले – आप ही सत्य कह रहे हैं ये किसी ओर युग का है !
त्रेता ? श्रीकृष्ण मुस्कुराये और चारों ओर अपनी दृष्टि घुमानें लगे थे ।
नही नही , सतयुग …………….सतयुग में जन्मा ये रीछ है ! श्रीकृष्ण अब इधर उधर अकेले ही खोजेंनें लगे थे ।
फिर बोले …………प्रसेन से सिंह नें मणि छीनी ………और सिंह को मारकर रीछ मणि ले गया ………पर वो रीछ गया कहाँ ?
तभी श्रीकृष्ण को एक गुफा दिखाई दी…………गुफा को देखकर वो फिर मुस्कुराये ………और बोले ………..मैं जा रहा हूँ इस गुफा में इसी गुफा में रहता है वो रीछ …………..क्या चलोगे मेरे साथ ? श्रीकृष्ण नें साथ वालों से पूछा ।
तात ! अन्धकारमय गुफा थी वो………सब डर गए …..और सबनें एक स्वर से मना कर दिया ……हममें से कोई नही जायेगा ।
सजल नयन हो गए थे श्रीकृष्ण………..उद्धव बोले ।
क्यों ? विदुर जी नें पूछा ।
उद्धव बोले ………..तात ! ऐसा प्रसंग एक बार वृन्दावन में भी आया था ………एक राक्षस अघासुर गुफा के आकार की मुखाकृति बनाकर बैठा था ………..नन्दनन्दन उसके मुख में चले गए ……..तो अपनें कन्हैया के पीछे सब ग्वाल बाल चल दिए थे ……….उस समय एक सखा नें कहा था ये तो अजगर है ……..इसमें विष है ….हम मर जायेंगे !
तब सब ग्वाल सखा एक स्वर में बोले थे……..कि जब हमारा श्रीकृष्ण साथ में है तो चिन्ता क्यों ? मरेंगें तो सब साथ ही ………क्या हुआ ? पर अपनें कन्हैया को हम अकेले नही छोड़ सकते ।
पर ये वृन्दावन नही था ये द्वारिका के लोग थे ………….अकेले ही जानें दिया उस गुफा में श्रीकृष्ण को ……और दो दिन तक ही बाहर रुके प्रतीक्षा में, फिर वापस लौट आये थे अपनें अपनें घरों में ।
तात ! निःस्वार्थ प्रेम सर्वत्र नही मिलता ….उद्धव बोले थे ।
गुफा का ये रीछ कौन था ? विदुर जी नें प्रश्न किया ।
ये जामवन्त था …..उद्धव मुस्कुराये ……….
जामवन्त ? भगवान राघवेन्द्र के साथ जिसनें युद्ध किया था ……..
सुग्रीव की सेना में………..विदुर जी की बात सुनकर उद्धव बोले…….आप सब जानते हैं तात ! फिर भी भगवान की मंगलमयी कथा सुननें के लिये आप यहाँ बैठे हैं……….उद्धव बोले और उस प्रसंग को भी सुनानें लगे थे …..जो रामावतार का था ।
शेष चरित्र कल –


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