श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! वृन्दावन में दाऊ भैया – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 39” !!
भाग 2
वहाँ तो माखन मिलता नही होगा ?
हाँ, छप्पन भोग………..पर मेरे लाला को तो माखन ही प्रिय है ना !
मुझे भी माखन प्रिय है मैया ! पर वहाँ कहाँ माखन ? दाऊ बोले थे ।
गैया नही हैं द्वारिका में ? मैया मासूमियत से पूछती है ।
है ……..पर यहाँ की बात ही और है मैया ! ये कहते हुये गदगद् हो उठते हैं दाऊ भी ।
कुछ देर तक कोई कुछ नही बोलता …..नन्दबाबा भी बस दाऊ को देखते रहते हैं …………कभी मुस्कुरा जाते हैं कभी गम्भीर हो जाते हैं ।
तुझे हमारी याद आती है ?
बहुत याद आती है मैया ! बहुत याद आती है ……..
लाला को भी आती है हमारी याद ? मैया के प्रश्न खतम होंगें !
वो तो माखन ही नही खाता …………….
क्यों ?
क्यों की माखन देखते ही उसे तेरी याद आती है …………दाऊ के मुख से ये सुनते ही मैया यशोदा रो पडीं ……..तो उसे कह ना ! एक बार तो यहाँ आजाये……..उसे कह ना ! कि उसकी मैया अब बूढी हो गयी है …….बस एक बार अपनी सूरत दिखा दे ………फिर मैं मर जाऊँगी ! उसे एक बार देखनें के लिये ही मैं जीवित हूँ दाऊ !
हिलकियाँ फूट पड़ी थीं मैया यशोदा की ।
दाऊ भैया ये सब देखते रहे ………क्या बोलें ……कैसे समझायें इस विरह में डूबे अपनें लोगों को ………दाऊ के कुछ समझ में नही आता ।
रात ऐसे ही बीत जाती है ।
अरे तू इतनी जल्दी जाग गया ?
मैया दधि मन्थन करनें बैठी है ।
वर्षो के बाद बैठी है …………अब पहले की तरह नही है मैया ……..इससे अच्छे से उठा नही जाता न बैठा जाता है ……….
पर आज ठीक है……दाऊ को मैं स्वयं माखन निकाल के खिलाऊँगी !
ये कहकर दधि मन्थन कर रही है ।
रात भर मैया के सामनें दाऊ नें उसके लाला की चर्चा की थी ……सोये कहाँ हैं कोई ………
ब्रह्म मुहूर्त हुआ तो नन्द बाबा यमुना स्नान को चले गए …….मैया सोती क्या ! वो भी स्नान करके बैठ गयी दधि मन्थन करनें ………
पर दाऊ कुछ देर ही सोये होंगे उठ गए …….और बाहर आये तो –
अरे ! तू इतनी जल्दी जाग गया ?
सो जाता थोडा और !
दाऊ नें चरण छूए मैया के…….फिर वहीँ बैठ गए ।
दाऊ ! तेरी बहु कैसी है ? मैया कुछ भी पूछ सकती है ।
संकोची हैं दाऊ भैया बस मुस्कुरा दिए ।
अच्छा अच्छा ! लाला की बहुएँ कैसी हैं ?
अच्छी हैं मैया ! दाऊ हंस पड़े ये कहते हुए ।
सोलह हजार एक सौ आठ ! मैया के कन्धे में अपना सिर रखकर बोल रहे हैं दाऊ भैया !
अच्छा ! इतनी हैं तो सेवा करती होंगीं मेरे लाला की ………पैर दवाती हैं कि नही ? करती हैं ….खूब सेवा करती हैं ………मैया ! तू आयेगी ना द्वारिका तो तेरी भी सेवा करेंगीं सब ……….दाऊ नें कहा ।
अब मैं कहाँ जाऊँगी द्वारिका ! सबको यहीं बुला ले ना ! अपनें लाला से कह कि वृन्दावन सब बहुओं को ले आ !
ठीक है मैया बोल दूँगा ! ये कहते हुये दाऊ उठ गए थे वहाँ से ….
अरे ! कहाँ जा रहा है ! कुछ कलेवा तो कर ले ।
…..नहाओ नहीं हूँ मैया !
पहले कौन सो नहातो ! मैया बोलती रहीं पर दाऊ भैया स्नान के लिये यमुना जी चले गए थे …………।
तात ! दो मास के लिये ही सही बृजवासियों को नव जीवन मिला था …..दाऊ भैया के वृन्दावन आनें से ….ये दो महिनें वृन्दावन रहे थे ।
उद्धव नें विदुर जी को कहा ।
शेष चरित्र कल –


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877