श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! आदर्श प्रेम – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 42” !!
फिर कुछ देर बाद ही बोले …….रुक्मणी देवी ! आप तो सबसे बड़ी प्रेमिन हैं श्रीकृष्ण की ……आप ही दे दीजिये !
रुक्मणी कुछ नही बोलीं ………….सत्यभामा से कहा देवर्षि नें …..आप क्यों पीछे हट रही हैं आप दे दीजिये अपनें पैरों की धूल ……..सत्यभामा भी कुछ नही बोलीं ……………रानियों की भरमार है यहाँ पर, पर कोई श्रीकृष्ण के उपचार के लिये आगे नही आरहा !
क्यों ? रुक्मणी देवी ! क्यों ?
रुक्मणी नें स्पष्टीकरण दिया ।
हमें पाप लगेगा देवर्षि !
हमें नर्क थोड़े ही जाना है , सत्यभामा के वचन थे ।
अरे ! अपनें पति को हम अपनें पैरों की धूल देंगे ! ……इससे बड़ा पाप और क्या होगा ? जाम्बवती बोलीं थीं ।
तो फिर नाथ ! आप तो ठीक होंगे नही ……..नारद जी नें श्रीकृष्ण की ओर देखते हुये सहजता में कहा ।
ऐसा न कहिये देवर्षि ! हमारे नाथ को जैसे भी हो ठीक कर दीजिये !
तो अपनें पैरों की धूल दे दो ना ! आपके नाथ अभी ठीक हो रहे हैं ।
हमें नर्क का वास नही चाहिये देवर्षि ! और आप ऐसी बात कह रहे हैं …..पत्नी अपनें पति को अपनें पैरों की धूल दे …….ये महापाप है ।
देवर्षि का हाथ पकड़ा श्रीकृष्ण ने…….हाँ प्रभु ! आप कुछ कह रहे हैं….. ….देवर्षि नें पूछा …।
वृन्दावन ! वहाँ भी मेरे भक्त हैं ………वहाँ जाओ ना नारद !
श्रीकृष्ण नें नारद जी को कहा ।
रुक्मणी आदि नें नाक भौं सिकोड़ा …………वृन्दावन ! एक दूसरे की ओर देखनें लगीं थीं ।
देवर्षि को क्या देरी लगती …….आज्ञा मिलते ही चल पड़े वृन्दावन की ओर, और क्षण में ही पहुँच गए थे द्वारिका से वृन्दावन ।
यमुना का किनारा …..जल भरनें आयी थीं गोपियाँ …
आज इकट्ठी मिल गयीं नारद जी को बृजगोपियाँ ।
सबनें प्रणाम किया नारद जी को और सामनें ही बैठ गयीं ।
बैठीं क्यों हो ? नारद जी नें पूछा ।
कुछ कन्हैया की चर्चा करो ना नारद जी ! वही तो हैं हमारे सर्वस्व !
मैं अभी द्वारिका से ही आरहा हूँ ……….नारद जी नें कहा ।
ओह ! कैसे हैं हमारे प्राण नाथ ! कैसे हैं हमारे प्राणप्रियतम !
बताओ ना देवर्षि ! बताओ ना ! गोपियाँ पूछनें लगीं थीं ।
अप्रिय समाचार है ……………
ऐसा न कहो …….क्या हुआ ? हमारे प्राणप्रियतम को क्या हुआ ?
उनके उदर में पीड़ा है ……….
क्या द्वारिका में राजवैद्य नही है ? गोपियाँ बिलख उठीं थीं ।
हैं …..पर उनसे भी ठीक नही हुआ उनका उदर शूल …………..
बताओ फिर कैसे ठीक होगा ! बोल उठीं सब गोपियाँ ।
एक ही उपाय है ……….पर वो तुम लोगों से होगा नही ……रहनें दो !
क्यों नही होगा ! प्राण दे दें !
बोलो ! नारद जी ! गोपियाँ पूछ रही हैं ।
नही , प्राण नही …..बस अपनें पैरों की धूल दे दो…..नारद जी बोले ।
बस , धूल ! गोपियाँ अपना पैर रगड़नें लगीं धूल में और उस धूल को उठाकर नारद जी को देंने लगीं…..इतनें से हो जायेगा ! इतनें धूल से हो जायेगा……..लगा देना उदर में …..लगा देना उनके देह में …….ये लो नारद जी मेरे पांवों की भी धूल …….सब गोपियों में होड़ मच गयी थी ।
आश्चर्य ! तुम लोग पागल हो ……..देवर्षि नें डाँटा ……..गोपियों! तुम्हे पता है श्रीकृष्ण को अपनें पैरों की धूल दे रही हो….पाप लगेगा ।
गोपियों का उत्तर था – लगनें दो हमें पाप ……कोई बात नही पर हमारे प्राण प्रियतम ठीक तो हो जायेंगे ना !
नर्क में जाना पड़ेगा तुम्हे ……..नारद जी ने कहा ………
गोपियाँ हंसी ……अनन्त जन्मों तक सड़ती रहें नर्क में कोई बात नही ….पर हमारा श्याम सुन्दर तो ठीक हो जायेगा ना !
ये सुनते ही नारद जी के नेत्रों से अश्रु धार बह चले थे ……..तुम को नर्क का डर नही है ….तुम्हे पाप का डर नही है…फिर किस बात का डर है ? नारद जी नें अश्रु बहाते हुए पूछा ……….
देवर्षि ! हमें एक ही बात का डर है …….कि हमारे श्याम सुन्दर को कुछ नही होना चाहिये……हमें भले ही कुछ भी हो जाए …..नर्क में जाएँ या पाप लगे ।
नारद जी गोपियों के चरणों में वन्दन कर धूल लेकर लौट आये थे द्वारिका …………..
गोपियों नें अपनें पांवों की धूल दे दी ? रुक्मणी आदि रानियाँ चौंकी ।
नारद जी नें गोपियों के पद धूल को श्रीकृष्ण के उदर में लगा दिया था वो तो ठीक हो गए …..तुरन्त उठकर बैठ गए ………।
गंवार है ना ! शास्त्रों का ज्ञान नही है इसलिये अपनें पांव की धूल श्रीकृष्ण चन्द्र जु को दे दी ….सत्यभामा नें कहा …नर्क का भी डर नही !
देवर्षि से रहा नही गया …….वो तुरन्त बोले ………..हाँ, हाँ रानियों मैने भी उन गोपियों से कहा …….मत दो अपनें पैरों की धूल ….पाप लगेगा …….नर्क जाओगी , शास्त्र ऐसा कहते हैं ……पता है क्या उत्तर दिया उन गोपियों नें ……….नारद जी ! भाड़ में जाए शास्त्र ……..हमारा प्रियतम जिससे ठीक हो, हमारे प्रियतम की पीड़ा जिससे मिटे हम तो वही करेंगी ….और रही पाप और नर्क की बात तो देवर्षि ! हम नर्क में ही पड़ी रहें पाप के कारण कोई बात नही ……….पर हमारे प्रियतम प्रसन्न होनें चाहीयें ……….बस !
ये बात देवर्षि सजल नेत्रों से बोले थे ……………
श्रीकृष्ण बोले ……ये मेरी गोपियाँ हैं ………हे रुक्मणी ! गोपियों का प्रेम ऐसा अद्भुत है तो फिर राधा क्या होगी ?
रुक्मणी नें तुरन्त अपना सिर झुका लिया था वो कुछ नही बोल पाईँ ।
शेष चरित्र कल –


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877