Explore

Search

October 14, 2025 2:44 pm

लेटेस्ट न्यूज़
Advertisements

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “पौण्ड्रक” एक नकली कृष्ण – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 43” !! -भाग 1: Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “पौण्ड्रक” एक नकली कृष्ण – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 43” !! -भाग 1: Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! “पौण्ड्रक” एक नकली कृष्ण – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 43” !!

भाग 1

तात ! पौण्ड्रक, ये काशीराज का मित्र था और काशीराज जरासन्ध शिशुपाल के निकट का था……उद्धव विदुर जी को “श्रीकृष्णचरितामृतम्” सुनाते हुये आज एक विचित्र राजा पौण्ड्रक का इतिहास सुनानें लगे थे …….इस पौण्ड्रक का सम्बन्ध श्रीकृष्ण से था तात ! इसलिये मैं इसकी कथा सुना रहा हूँ…..उद्धव बोले ।

बाल्यावस्था में अधिकतर बालकों में अपनें से ज्येष्ठ की नकल करनें की प्रवृत्ति पाईँ जाती है ……… पौण्ड्रक नें बालपनें से ही श्रीकृष्ण को अपनाना चाहा ………कृष्ण …….वो नटखट है ……तो पौण्ड्रक स्वयं नटखट बन गया …….वो सुनता था कि श्रीकृष्ण सांवला है …..तो ये गौर होनें के बाद भी श्याम रंग इसनें अपना बना लिया ………….तात ! पर ये पौण्ड्रक का स्वभाव बन गया था ……….ये बड़ा हो गया राजा का पुत्र था ही ………जरासन्ध आदियों के साथ इसकी उठक बैठक होनें लगी …….हाँ, काशीराज इसके प्रिय मित्रों में से एक था ।

पर नकल करनें का इसका स्वभाव वो भी श्रीकृष्ण के नकल का, वह गया नहीं ……वो जब स्वभाव ही बन गया था तो जाता कहाँ से ।

ओह ! ये मोर मुकुट ! और पीताम्बरी भी ……….क्या बात है तुम तो अपना नाम ही पौण्ड्रक कृष्ण वासुदेव ही रख लो………जरासन्ध आदियों के मध्य में एक दिन पौण्ड्रक से काशीराज नें कह दिया था ।

पौण्ड्रक तो खुश हो गया ………..हाँ, क्या मैं अपनें नाम के साथ ये “कृष्ण वासुदेव” भी लगा लूँ ?

लो ! है किसी में हिम्मत जो तुम्हे रोक दे ……..नाम के आगे पीछे कुछ भी लगाओ ……..जरासन्ध भी हंसा था ।

पर उस ग्वाला कृष्ण से ज्यादा सुन्दर तुम लगते हो …………शिशुपाल बोल उठा ।

पौण्ड्रक प्रसन्न होता गया …………..असली तुम हो वो तो नकली है ………….काशीराज ने इस विषय का उपसंहार करते हुये बात को हंसी में उड़ा दी थी ………..किन्तु ! पौण्ड्रक के लिये ये हंसी का विषय कहाँ था …….वो तो इसे गम्भीरता से लेनें लगा ।

उद्धव कहते हैं……पौण्ड्रक घण्टों दर्पण के सामन खड़ा रहता ………..कृष्ण ऐसे हँसता है …….वो ऐसे गम्भीर होता है ….उसकी चाल ऐसी है …….वो ऐसे बोलता है ……….वो बोलते हुये ऐसे हाथ हिलाता है …………..पर भौमासुर के समय में उसके दो हाथों की जगह में चार हाथ प्रकट हो गए थे …………पौण्ड्रक को इसी बात की चिन्ता हुयी ………..वो उसी समय रथ लेकर अपनें प्रिय मित्र काशीराज के पास चला गया था ………..काशीराज को उसनें अपनी इस नई समस्या से अवगत भी करा दिया ।

लकड़ी के दो हाथ क्यों नही लगा लेते ? काशीराज बहुत देर चिन्तन करके बोले थे ।

क्या लकड़ी के दो हाथ ? पौण्ड्रक चौंका ।

और क्या ? तुम्हे क्या लगता है ……..कृष्ण के हाथ अपनें हाथ हैं ……वो भी लकड़ी के ही हैं ……काशीराज जो कहता था उसकी बात पौण्ड्रक मानता था और काशीराज इसे प्रसन्न रखनें के लिये कुछ भी कह देता ।

वो जादूगर है तुम्हे पता है ना ! कृष्ण बहुत बड़ा जादूगर है ……..और उसी जादू के कारण उसनें अपनें आपको “भगवान” कहलाना शुरू किया ………..काशीराज की बात गम्भीरता से सुन रहा था पौण्ड्रक ।

क्रमशः …
शेष चरित्र कल –

admin
Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

Leave a Comment

Advertisement
Advertisements
लाइव क्रिकेट स्कोर
कोरोना अपडेट
पंचांग
Advertisements