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October 14, 2025 6:11 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “पौण्ड्रक” एक नकली कृष्ण – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 43” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “पौण्ड्रक” एक नकली कृष्ण – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 43” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! “पौण्ड्रक” एक नकली कृष्ण – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 43” !!

भाग 2

लकड़ी के दो हाथ क्यों नही लगा लेते ? काशीराज बहुत देर चिन्तन करके बोले थे ।

क्या लकड़ी के दो हाथ ? पौण्ड्रक चौंका ।

और क्या ? तुम्हे क्या लगता है ……..कृष्ण के हाथ अपनें हाथ हैं ……वो भी लकड़ी के ही हैं ……काशीराज जो कहता था उसकी बात पौण्ड्रक मानता था और काशीराज इसे प्रसन्न रखनें के लिये कुछ भी कह देता ।

वो जादूगर है तुम्हे पता है ना ! कृष्ण बहुत बड़ा जादूगर है ……..और उसी जादू के कारण उसनें अपनें आपको “भगवान” कहलाना शुरू किया ………..काशीराज की बात गम्भीरता से सुन रहा था पौण्ड्रक ।

मुझे भी कृष्ण की तरह भगवान कहलवाना है जगत में …………….अपनें हृदय की बात बता दी पौण्ड्रक नें काशीराज को ।

तो मेरे मित्र ! ये तो बड़ा सरल है ………इसके लिये मेरे पास अच्छे कारीगर हैं…….वो लकडी के दो हाथ बना देंगे तुम बन जाओगे चतुर्भुज …………पर …कृष्ण के समय समय पर उन चार हाथों में आयुध भी प्रकट होते हैं ………तो तुम भी रख लो आयुध ……काशीराज को आनन्द आरहा था पौण्ड्रक को उकसानें में ।

गदा रख लूँ, कमल भी रख लूँ शंख भी हो जायेगा …….पर चक्र कैसे घूमेगा ? ये प्रश्न भी काशीराज से ही किया पौण्ड्रक नें ।

मेरे पास कारीगरों की कमी नही है ……..ऐसा चक्र तैयार कर देंगे जो तुम्हारी ऊँगली पर घूमता ही रहेगा ….काशीराज नें ये भी समाधान कर दिया था …….गरूण भी यन्त्र का ही बनवा दिया अपनें कारीगरों से ……ये उड़ता भी था ।

हंसे उद्धव ………तात ! कभी कभी असत्य सत्य पर भी भारी पड़ जाता है ……..जगत को देखकर आप मेरी बात समझ ही रहे होंगे ।

लोगों में आकर्षण असत्य का ज्यादा होता है ……किन्तु सत्य तो सत्य ही है ….उद्धव आगे बोले थे – तात ! लोग उमड़ पड़े थे पौण्ड्रक को पूजनें …….असली कृष्ण ये हैं………वासुदेव कृष्ण असली नही…..पौण्ड्रक कृष्ण असली है ….यही लोग कहते ।……..लोगों को गरूण में बैठकर दिखाता पौण्ड्रक …….लोग तालियाँ बजाते …..पुष्प बरसाते ।

पौण्ड्रक ! तुम तो कृष्ण ही हो गए ……..अब एक काम करो ………..द्वारिकाधीश भी बन जाओ …….काशीराज नें पौण्ड्रक को आज ये भी कह दिया ।

और डरो मत तुम्हारे साथ मैं हूँ ……सम्पूर्ण काशी है ……और मगध की सेना भी है ……….वैसे पौण्ड्रक ! सच बात ये है कि कृष्ण भीतर से डरपोक है ……तुम तो जानते हो ना ……..जरासन्ध के भय से उसनें मथुरा छोड़ दी और तुम्हारे भय से हो सकता है द्वारिका छोड दे, ये कहते हुये अट्टहास किया था काशीराज नें ।

उपाय ? पौण्ड्रक नें पूछा । उपाय यही है पहले एक पत्र लिखो द्वारिकाधीश के लिये ……..और मैं जैसे कहता हूँ वैसे लिखो ………क्या पता पत्र पढ़कर ही वो द्वारिका छोड़ दे ………….तात ! काशीराज नें पौण्ड्रक को उकसाया और उसी की बात में आकर पौण्ड्रक नें एक पत्र भी लिख दिया द्वारिकाधीश के लिये ।

शेष चरित्र कल –

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Author: admin

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