श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! हस्तिनापुर में शकुनि – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 54 !!
भाग 1
मामा ! आप मुझे समझा रहे हैं ! मैंने कैसे अपमान के घूँट पीये उस इन्द्रप्रस्थ में ये मैं ही जानता हूँ , पहले तो मेरे भाई समान मित्र शिशुपाल का वध किया उस कृष्ण ने , फिर द्रोपदी कि वो हंसी , आज भी मेरे कानों में गूंज रही है , ओह ! मामा ! पाँच पति वाली उस द्रौपदी ने मुझे कहा , “ अन्धे का पुत्र अन्धा “, गान्धार नरेश शकुनि मामा से हस्तिनापुर में दुर्योधन अपना दुःख बता रहा था ।
तो इसमें दुखी क्यों होते हो युवराज ! कोई बात नही समय की प्रतीक्षा करो ये पाण्डव एक दिन बर्बाद हो जाएँगे अपने इन्द्रप्रस्थ के साथ साथ अपनी महारानी द्रौपदी को भी खो देंगे , शकुनि ने अपने भांजे दुर्योधन को समझाया था ।
कैसे , क्या हम युद्ध करेंगे उन पाण्डवों से ?
हाँ भांजे , युद्ध ही समझो , शकुनि ने कहा ।
पहेली न बुझाओ मामा ! मुझे स्पष्ट बताओ ।
स्पष्ट समझना चाहते हो तो समझो , ये मेरे हाथों में जो देख रहे हो ना ।
ये पासे ? दुर्योधन ने मामा की बातों को गम्भीरता से नही लिया ।
मेरे सैनिक यही हैं, मैं इन्हीं सैनिकों से युद्ध जीतता हूँ , शकुनि ने आँखें मटकाते हुये कहा ।
पर इस द्यूत क्रीड़ा से हम कैसे हरायेंगे पाण्डवों को ?
दुर्योधन समझ नही पा रहा शकुनि की बातें ।
मेरे प्रिय भांजे ! मेरी बात सुनो , तुम्हारे नाना जी थे ना जो गान्धार के सम्राट थे सुबल जिनका नाम था उनके जैसा चौसर खेलने वाला आज तक इतिहास में नही हुआ है , ये बात शकुनि बड़े गर्व से अपने दुर्योधन को सुना रहा था ।
राजा महाराजाओं में जुआ खेलना एक प्रतिष्ठा है , मेरे पिता जी बड़े बड़े राजाओं से जुआ खेलते थे और अपने जीवनकाल में कभी हारे नही , हे हस्तिनापुर के युवराज ! उनके पासे सिद्ध थे , पासे उनका कहा मानते थे । और वो जब मृत्यु के सन्निकट पहुँचे तब मुझे अपने पास बुलाकर कहा था , हे शकुनि ! मुझे मृत्यु अपना ग्रास बनाने जा रही है इसलिए वत्स ! मेरी एक बात मानना , मैंने कहा था आज्ञा दीजिए पिता जी !
पुत्र ! जुआरी बनना , श्रेष्ठ जुआरी बनना ।
मैं उनकी बातें सुनता रहा कुछ देर के बाद सोचकर वो बोले थे – पुत्र ! मेरी अस्थियों को जल में प्रवाहित मत करना उनके पासे बनाना जैसे मेरी बात मानते हैं पासे ऐसे ही वो पासे भी तेरी बात मानेंगे , जो अंक बोलोगे वही आएगा । दुर्योधन ! मैंने वही किया मेरे हाथो में जो पासे हैं वो मेरे पिता जी की अस्थियों से मैंने बनाये हैं …..ये कहते हुए वो पासे दुर्योधन को शकुनि दिखाने लगा था । मामा ! ये पासे तुम्हारी बात मानते हैं ? हाँ भांजे ! बोलो तुम , कितना अंक चाहिए तुम्हें ? शकुनि ने अपने हाथों में पासे लिए और पीस कर बोला था ।
मामा ! नौ ,
और नौ ही आया ।
मामा ! छ ,
और छ ही आया ।
पर इन सबमें मेरी कोई रुचि नही है , दुर्योधन को उचाट सी होने लगी थी अपने मामा की इन बातों से।
पाण्डवों को हराने में तो रुचि है ना ? शकुनि ने पूछा ।
हाँ मामा ! उनको हराने , उनको बर्बाद करने में ही अब मेरी रुचि है और वो द्रौपदी तों , दाँते भींच ली थीं दुर्योधन ने ।
तो जुआ खेलने के लिए आमंत्रित करो उन्हें ! शकुनि बोला ।
इस बात पर कुछ बोला नही दुर्योधन , बस वो आगे और सुनना चाह रहा था कि उसका मामा क्या कहता है ।
पाण्डव और द्रौपदी आरहे हैं हस्तिनापुर , महाराज धृतराष्ट्र से मिलने , भेंट करने ।
बस , अवसर अच्छा है तुम उन्हें जुआ खेलने के लिए आमंत्रित कर लेना , और हाँ जुआ जिताएगा तुझे भांजे ये मैं कह रहा हूँ , फिर तो भांजे ! हंसा शकुनि ये कहते हुए ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877