!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 9 !!
नामकरण संस्कार
भाग 3
“हो गयीं सारी तैयारीयाँ…….महाराज और रानी को बालिका के साथ बुलाया जाए” …….आचार्य नें महल के सेवकों से कहा ।
तभी सबनें देखा……….रेशमी पीले वस्त्र पहनें ……..सूर्य के समान दिव्य तेज़ वाले बृषभान जी सुन्दर सी पगड़ी बाँधे ……आये ।
उनके साथ उनकी अर्धांगिनी “कीर्तिरानी” वो तो ऐसी लग रही थीं जैसे स्वर्ग की अप्सरा भी लज्जित हो जाए ।
पर सबकी दृष्टि थी कीर्तिरानी की गोद में ……………
दाहिनें भाग में कीर्तिरानी बैठीं ………….कीर्तिरानी के बाएं भाग में बृषभान जी बिराजे हैं ।
पर ये क्या ? आचार्य गर्ग स्तब्ध हो गए ……मानों मूर्तिवत…….आचार्य ही क्यों महर्षि दुर्वासा और नवयोगेश्वर भी ।
वो दिव्य तेज़ ……….प्रकाश का पुञ्ज कीर्तिरानी की गोद में हिल रहा था …………चरण जब थोड़े हिलाये आल्हादिनी नें …………ओह ! समाधि सी ही लग गयी थी आचार्य गर्ग की तो ।
चक्र शंख गदा पदम् सारे चिन्ह हैं जो जो चिन्ह श्रीकृष्ण के चरणों में हैं वही चिन्ह आल्हादिनी के भी चरण में हैं ।
समाधि लग गयी …..चरण के नख से प्रकाश प्रकट हो रहा है ……….वो प्रकाश ही समस्त विश्व् को प्रकाशित कर रहा है ……….
आचार्य ! आचार्य ! आचार्य !
निकट जाकर बृषभान जी को झकझोरना पड़ा ……आचार्य गर्ग को ।
तब जाकर वो उस दशा से बाहर आये ।
नाम करण संस्कार शुरू की जाए ? हाथ जोड़कर प्रार्थना की ।
हाँ …हाँ ………सब कुछ विचार किया आचार्य नें…………
मेरी गोद में एक बार लाली को ? पता नही क्यों आचार्य होनें के बाद भी कीर्तिरानी से प्रार्थना की मुद्रा में ही हर बात कह रहे थे गर्ग ।
आप आज्ञा करें आचार्य ! आप हाथ न जोड़ें ………बृषभान जी नें मुस्कुराते हुए कहा …….और कीर्तिरानी को इशारा किया ……।
कीर्तिरानी नें आचार्य गर्ग की गोद में दे दिया लाली को ।
आहा ! दर्शन करते ही …..और अपनी गोद में पाते ही देह सुध पूरी तरह से भूल गए आचार्य ।
“राधा …….राधा ….राधा”……….यही नाम होगा इन बालिका का ।
आचार्य गर्ग के मुख से ये नाम सुनकर बृषभान जी नें दोहराया ………कीर्तिरानी भी आनन्दित हो उठीं बहुत सुन्दर नाम है ……
राधा ……राधा ….राधा …………….
पर इसका अर्थ क्या होता है ? कीर्तिरानी नें पूछा ।
आँखें चढ़ी हुयी हैं आचार्य की ………उनको देखकर ऐसा लगता है ….जैसे वो इस लोक में हैं ही नहीं ।
“स्वयं आस्तित्व जिसकी आराधना करे ……वो राधा” …………स्वयं “ब्रह्म जिनकी आराधना करे वो राधा”…………आहा ! राधा ।
ऋषि दुर्वासा आनन्दित हो उठे ………राधा राधा राधा ….कहते हुये वो भी मग्न हो गए ……नव योगेश्वरों की भी यही स्थिति है ।
इस कन्या शील कैसा होगा ?
आर्यमाता हैं कीर्तिरानी ……उनको तो ये चिन्ता पहले रहेगी …….
अत्यधिक सुन्दरी है मेरी कन्या आचार्य ! कहीं ये शील संकोच को गुमाकर ………………..
हँसे आचार्य ………श्रीराधा को कीर्तिरानी की गोद में देते हुए बोले ……विश्व् की जितनी सती हैं ………..महासती हैं ……..वो सब आपकी श्रीराधा के पद रेनू की कामना करती रहेंगीं ।
और विवाह ?
पिता बृषभान की चिन्ता एक समस्त जगत के पुत्रियों के पिता से अलग नही है ।
राधा और नन्दसुत ये दोनों अभिन्न दम्पति हैं….ये दोनों अनादि हैं ।
आचार्य की बातें सुनकर बृषभान जी नें कहा ……..”तो समय आनें पर आपके द्वारा ही ये विवाह सम्पन्न हो”……हाथ जोड़े ….. ये कहते हुए बृषभान जी नें ।
नही नही ….आपको हाथ जोड़नें की जरूरत नही है …………पर इस सौभाग्य से स्वयं विधाता ब्रह्मा नें ही मुझे वंचित कर दिया है ।
क्या मतलब ? बृषभान जी नें पूछा ।
इस सौभाग्य को विधाता ब्रह्मा स्वयं लेना चाहते हैं ………इसलिये वही इन दोनों का विवाह करायेंगें !
इतना कहकर आचार्य मौन हो गए…….पर ये बात भोले भाले बृषभान जी की समझ में नही आयी………..
पर इतना समझ लिया कि मैने जो वचन दिया है बृजपति नन्द को …….कि नन्दनन्दन और राधा इन दोनों का परिणय होगा ही ।
हे वज्रनाभ ! ये “राधा नाम” है…..इस नामका जो नित्य जाप करता है …..उसे पराभक्ति प्राप्त होती ही है ……वो सहज धीरे धीरे प्रेम स्वरूप बनता जाता है…..उसके हृदय में आल्हाद नित्य ही वास करनें लगता है ।
इतना कहकर महर्षि शाण्डिल्य आल्हाद और आल्हादिनी के विलास का रस लेनें लगे थे….क्यों की सर्वत्र उन्हीं का तो विलास चल रहा है ।
!! पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणा निधि प्रिये !!
शेष चरित्र कल ….


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