!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 10 !!
देवर्षि नारद नें जब श्रीराधा के दर्शन किये…
भाग 2
हे महर्षियों में श्रेष्ठ शाण्डिल्य ! मुझे भगवान शंकर नें एक बार ये रहस्य बताया था ……..उन्होंने मुझे कहा था ………ब्रह्म तभी कुछ कर सकता है जब उसके साथ शक्ति होती है …….बिना शक्ति के शक्तिमान कैसा ? इसलिये मात्र श्रीकृष्ण की आराधना तुम्हे कुछ नही देगी ……कृष्ण के साथ उनकी आल्हादिनी राधा का होना आवश्यक है ।
हे वज्रनाभ ! मुझे उस समय भगवान शंकर से ही ये युगल मन्त्र प्राप्त हुआ था ………उस समय माँ पार्वती भी वहीँ थीं …….तो उन्होंनें भी इस मन्त्र को ग्रहण किया ……………….
!! राधे कृष्ण राधे कृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे !
राधे श्याम राधे श्याम श्याम श्याम राधे राधे !!
सोलह अक्षरों वाला ये युगल मन्त्र बड़ा ही गुप्त है ……और प्रेमाभक्ति को पानें वालों के लिये यही एक मार्ग है ……….जो इस मन्त्र का नित्य चलते फिरते सोते ……..जाप करता है वह निकुञ्ज का अधिकारी बनता ही है ……….निकुञ्ज में उसका सहज प्रवेश हो जाता है ।
हे वज्रनाभ ! देवर्षि नें वह युगल मन्त्र मुझे भी प्रदान किया था ।
मैने प्रणाम करते हुये देवर्षि को कहा ………….बरसानें में उनका प्राकट्य हुआ है ……..पास में ही है …………बाकी , आप जाएँ और दर्शन करें ……..क्यों की हे देवर्षि ! मैने सुना है अब …..कि उनके साथ साथ उनकी जो निज सहचरी थीं …..उनका भी प्राकट्य हो रहा है ।
देवर्षि आनन्दित होते हुये ………मुझे बारम्बार अपनें हृदय से लगाते हुये ….गोकुल से बरसानें की ओर चल पड़े थे ।
दिव्य महल है बरसानें में …………….बधाई चल रही हैं …….ग्वाल बाल नाच रहे हैं गा रहे हैं …..धूम मची है चारों ओर ।
देवर्षि भाव में मग्न चल दिय उसी महल की ओर …….यही महल होगा …..अवश्य इसी महल में प्रकटी होंगी ……….पर जैसे ही गए देवर्षि ।
गौर वर्णी एक बालिका का आज ही नाम करण संस्कार हुआ है …….
“ललिता” नाम है इनका ……………
देवर्षि नें हाथ जोड़कर नवजात “ललिता सखी” को नमन किया …..ये अष्ट सखियों में प्रमुख सखी हैं श्रीराधा जी की ……………
जैसे महादेव की कृपा , बिना नन्दी को प्रणाम किये नही पाई जा सकती ………..जैसे भगवान श्रीराम की कृपा बिना हनुमान के नही पाई जा सकती ……ऐसे ही श्रीराधा रानी की कृपा भी इन सखियों की कृपा बिना नही पाइ जा सकती ……..और समस्त सखियों में ये ललिता सखी बड़ी हैं ……..देवर्षि नें हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया ।
पर श्रीराधा के दर्शन कब होंगें ? और वो कहाँ हैं ?
बरसानें के हर भवन में देवर्षि देखते जा रहे हैं ……….हे वज्रनाभ ! जब से श्रीराधा रानी का प्राकट्य हुआ है इस बरसानें में ………..सब के भवन महल सदृश ही लगते हैं ………..
और बरसानें के अधिपति बृषभान जी नें ………सबके भवनों में हीरे और पन्नें जड़वा दिए हैं ……..हँसे महर्षि शाण्डिल्य …..वज्रनाभ ! पर उनकी लाली श्रीराधा को ये हीरे और मणियाँ प्रिय नही हैं …..उन्हें तो मोर , तोता, हिरण ……घनें वृक्ष …….पुष्प ……..हरियाली ये सब प्रिय है …..इसलिये स्वयं के महल में ……..प्राकृतिक वस्तुओं का ही संग्रह किया था बृषभान जी नें ।
ये महल है बृषभान जी का …..जो इस बरसानें के अधिपति हैं ……..एक सखी नें देवर्षि नारद जी को चलते हुए बता दिया था ।
देवर्षि नारद उस महल में गए …………सामनें से आरहे थे बृषभान जी ……देवर्षि को देखा तो तुरन्त दौड़ पड़े ………..देवर्षि के चरणों में गिर गए ……….और बड़े आग्रह से भीतर ले गए ।
ये है मेरा पुत्र “श्रीदामा”…………..एक सुन्दर बालक नें देवर्षि को प्रणाम किया …………देवर्षि नें देखा……और बोले – ये तो कृष्ण सखा है ……कृष्ण का अभिन्न सखा ………इतना कहकर उठ गए ।
क्यों की देवर्षि को लगा …….इनके पुत्र मात्र हैं……जो इन्होनें मुझे बता दिया है …..पर जिनका मैं दर्शन करनें आया हूँ ………वो यहाँ भी नही हैं ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल ……..
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