श्रीकृष्णचरितामृतम्
!!”दामोदर” – यानि बंधा हुआ ब्रह्म !!
भाग 2
दाऊ के नेत्रों से अश्रु गिरनें लगे थे ……………
तुझे माखन प्यारा हो गया है मैया !…….ये बृज का प्यारा कन्हैया, तुझे प्यारा नही लग रहा ? देख मैया ! कितना कोमल है ये …..और ये रस्सी ? गौ को बाँधनें वाली रस्सी से तू इसे बाँधेंगी ?
मत बांध , मैया ! मत बाँध इसे ! दाऊ प्रार्थना करनें लगे थे……..पर –
तू मुझे समझायेगा ! भाग यहाँ से नही तो मैं तुझे भी बाँध दूंगी ………
दाऊ को भगा दिया था मैया यशोदा नें ।
अब वहाँ पड़ी रस्सी को उठाया ……………दो रस्सी से बांध चुकी हैं ….ये तीसरी रस्सी है ……………इसे लेकर जोडा दूसरी रस्सी से ……..फिर बाँधनें लगीं …………पर नही ……….
उद्धव बोले – तात ! ऐसे कैसे बंध जाएगा ब्रह्म ।
पर ब्रह्म भले हों ……..जब पुत्र बनकर आये हैं तो बंधना पड़ेगा ही ।
विदुर जी बोले ………..फिर पूछ बैठे उद्धव से………..
ये दो अंगुल का रहस्य क्या है ? रस्सी कम क्यों पड़ रही है ?
उद्धव बोले – तात ! “मैं बाँधूंगी”…….यहाँ जो ये “मैं” है ना ……यही बाधक बन रहा है ………….
किसनें कहा वो साधना से मिलता है ……..तात ! वो तो कृपा से मिलता है …………हमारे करनें से मात्र हमारे अहंकार की पूर्ति ही तो होगी …. हमारा अहंकार ही तो पुष्ट होगा ! और इस मार्ग में तो अहंकार ही सबसे बड़ा बाधक है ।
तो कुछ न करें ? साधना बगैर कुछ नही ? विदुर जी नें पूछा ।
कृपा बरस रही है …….निरन्तर बरस रही है तात ! और ये कृपा शक्ति सभी के ऊपर , समान रूप से बरसती है ……….हाँ …….पात्र होना आवश्यक है……बिना पात्र के उस कृपा को कहाँ रखोगे ।
साधना से मात्र पात्रता का निर्माण होता है ।
उद्धव नें समाधान किया था ।
थक गयीं , हार गयीं अब बृजरानी……….रस्सियों पे रस्सियाँ जोड़ती जा रही हैं ………पर बारबार रस्सी कम ही पड़ती है ।
अब बैठ गयीं मैया……..पसीनें आगये………देह शिथिल पड़नें लगा ।
“ये मुझ से बंधेगा नही” ………….ये विचार मन में आया …………
क्या करे मैया अब ? कन्हैया भी अब चुप हो गए …….मैया थक गयी है ये बात जान रहे हैं …….अब कन्हैया को अपनी मैया के ऊपर दया आगयी थी …………..
अब देखा मैया के मुख मण्डल को ध्यान से कन्हैया नें ।
तू बंधेगा नही ? बड़ा दुष्ट है रे तू ? बंधता भी नही है ।
मैया अब दयनीय सी हो गयी थी……..पर अब……….
बृजरानी की चोटी आगे आगयी …….उस चोटी की डोर ढीली पड़ गयी थी भागते भागते ………..तुरन्त मैया उठीं ………और चोटी की डोर को निकालकर रस्सी से जोड़ दिया ……………
आकाश से महामाया नें वन्दन किया यशोदा मैया को …….मैया के वात्सल्य को………महालक्ष्मी नें सुमन बरसाए ऊपर से ……..
देवताओं नें जयजयकार किया ……………
और – तभी ….कमर से रस्सी को लेकर…..ऊखल से बाँध दिया मैया यशोदा नें ।
आकाश से पुष्प गिरे ………बोलो – दामोदर भगवान की – जय ।
बंध गए ब्रह्म ……..दुनिया को बन्धन मुक्त करनें वाला ब्रह्म ……आज स्वयं वात्सल्य के बन्धन में बंध गए थे………और दामोदर बन गए ।
दामोदर का मतलब होता है ……बंधा हुआ ब्रह्म ……….
तात ! अद्भुत नाम है ना ये ! दामोदर…………
मैया बृजरानी लाला को ऊखल से बांध कर चली गयीं रसोई में………क्यों की भूख लगी होगी ना इसे …….दिन भर से कुछ खाया भी तो नही है ……..रसोई में जाकर कुछ बनानें लगीं थीं 🙏
सामनें वृक्ष हैं….कन्हैया नें उन वृक्षों को देखा……अर्जुन नामके दो वृक्ष खड़े हैं नन्दालय के आँगन में…….कन्हैया नें देखा – और मुस्कुराये ।🙏
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877