!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 35 !!
शरद की वह प्रथम पूर्णिमा
भाग 2
विचित्रता ये है इस किशोर की ……कि इसे जितना देखो …..और सुन्दर होता जाता है …..और और ….कामदेव चकित हो रहा है ।
घुँघराली अलकें …….उन सघन अलकों पर ……….मोर पिच्छ …मस्तक पर गोरोचन का तिलक ………उफ़ ! इसकी मुस्कान ।
कामदेव चकित रह गया ……क्यों की उस किशोर के आते ही ……वृन्दावन में कामदेव का प्रभाव समाप्त हो गया था ……अब तो प्रभाव इसी किशोर का ही रह गया ।
कामदेव देखता ही रह गया था ………इस किशोर के आते ही ………प्रकृति प्रेमपूर्ण हो उठी थी……..पक्षियों नें चहकना भी छोड़ दिया था …..और किशोर को ही देख रही थीं …….भौरों नें गुनगुनाना छोड़ दिया था …….ये सब भी इसी की ओर ही मुड़े थे ।
मैं भी कितना मूर्ख हूँ …….इसको रिझानेँ के लिये कुछ तो अप्सरायें लाता…..अकेला आ गया …..कामदेव को अब चिन्ता हुयी ।
पर आश्चर्य भाव से वो उस नन्द किशोर को ही देखता रहा ………..
किशोर नें एक शिला को अपना आसन बनाया ……..गोवर्धन की शिला थी वो ………उसी शिला में बड़े आनंद से वो बैठ गया था …..कामदेव नें देखा ।
उस किशोर की एक एक अदा …..स्वयं कामदेव को मुग्ध कर रही थी ।
वो जिस तरह बैठ रहा था ……..वो जिस तरह झुक रहा था …..उसकी वो आँखें ……….जो मत्त थीं ………..वो कभी कभी मोर या तोते की ध्वनि सुनकर मुस्कुरा देता था …….उफ़ ! उसकी वो मुस्कान !
पर ये क्या ? अपनी फेंट से कुछ निकाल रहा है !
ओह ! बाँसुरी !
कामदेव चकित रह गया…….ये बाँसुरी बजाता है ……चलो ! फिर तो मैं इसे चुटकियों में हरा दूँगा ………..डर मुझे ये था कि कहीं ये माला, या सुमिरनी ……या किसी यौगिक क्रिया को न अपनाले ……..पर ये तो बाँसुरी बजायेगा …………बस मेरा काम हो गया अब तो ।
हँसा कामदेव ! और अपना प्रभाव चलानें लगा ।
पर अपना प्रभाव चलाये ……उससे पहले कृष्ण का प्रभाव चल गया ।
कामदेव नें देखा………..
उस किशोर नें बड़े मुग्ध भाव से पहले तो चन्द्रमा को निहारा …….
और ऐसे निहारा जैसे अपनी प्रेयसि को याद कर रहा हो ………
जैसे – अपनी प्रेयसि के मुख का स्मरण कर रहा हो,
उस पूर्ण चन्द्रमा को देखकर ।
पर मेरा प्रभाव उस पर पड़ क्यों नही रहा…….कामदेव चिंतित ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल ……
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