!! राधा बाग में – श्रीहित चौरासी !!
( “आजु प्रभात लता मन्दिर में”- प्रीति विलास की दृष्टा )
गतांक से आगे –
वेदान्त कहता है ..दृष्टा बनो …रसोपासना भी कहती है दृष्टा बनो ।
उस प्रीति विलास को निहारो ….प्रेम विलास तो उस ब्रह्म का सनातन से चल रहा है …अपने से ही प्रकट कर अपनी आल्हादिनी से ही वो विहार करता है …इन युगल की इच्छाशक्ति ये सखियाँ हैं ….ये इन युगल में इच्छा प्रकट करवाती है …साधन जुटाती हैं …केलि करने के लिए स्थान सजाती हैं ….जब सब तैयार जो जाता है …तब ये दृष्टा बन कर खड़ी हो जाती हैं ।
है ना अद्भुत उपासना !
जो सखी भाव से भावित है उन्हें ही प्रवेश है इस उपासना में । सखी भाव यानि पूर्ण “तत्तसुख” भाव , “प्रियतम के सुख में अपना सुख खोजना”….हम श्याम सुन्दर को आलिंगन करें ? नही वो प्रिया जू को आलिंगन करें तो उन्हें इस में ज़्यादा सुख मिलेगा …दोनों को सुख मिलेगा ..और युगल के साथ एकात्मता इतनी है इस सखियों की , कि युगल के सुख में ही ये सुखी हो जाती हैं । ये तो मात्र दर्शन करके तृप्त हैं ….दर्शन करके ही इन्हें वही सुख मिलता है जो सुख युगल को विहार करने पर प्राप्त होता है ।
देखना , दर्शन , बस सखियों को यही आता है …सेवा और दर्शन …..और हाँ दर्शन भी वो ऐसे करती हैं …कि युगल के विहार में विघ्न भी ना हो ….लता में छुप जायेंगी ….लता रंध्रों से देखेंगी ….फिर दूर हो जायेंगी ….ये अद्भुत प्रेम की उपासना है ….आइये इसमें डूबिए ।
और एक अद्भुत बात बताऊँ !
ये रस की उपासना है ….रसोपासना ।
ये कृष्णोपासना नही है , रामोपासना नही है …ये शिवोपासना नही है ….इसमें कृष्ण राम शिव ये नही हैं …यहाँ तो एक मात्र “रस” का ही खेल चल रहा है …उसी का अनुभव करना है ….वही लीला करता है कराता है ….यहाँ उपास्य केवल “रस” है …उपासना किसकी की जाती हैं यहाँ …रस की । यहाँ राम कृष्ण शिव नही हैं ….यहाँ रस ही रस है …रस का अर्थ तो पता ही होगा ! चलिये ये भी जान लीजिये कि संस्कृत में ‘रस’ का अर्थ है ! जिसका आस्वादन किया जाये उसे ‘रस’ कहते हैं …कीजिए आस्वादन ….मन है ना , तो उसको चिन्मय श्रीवृन्दावन में लगा दीजिये …..फिर देखिये ….अन्तर चक्षु से देखिये ….वो आरहे हैं …..युगल सरकार आरहे हैं ….झूमते हुए आरहे हैं ……यही धीरे धीरे प्रकट हो जायेंगे ….फिर अंतर चक्षु की भी जरुरत नही रह जायेगी……बाहर भीतर वही रस नचाता थिरकता दिखाई देगा …..देखिये –
इस “रस” में कैसे प्रवेश हो ? पूछा था एक सखी ने शाश्वत से ।
राधा बाग में अब पागल बाबा आने वाले हैं …आज ये बरसाने की गहवर वन की परिक्रमा में चले गये …इसलिये कुछ विलम्ब हो गया । रसिक लोग आये हैं …वो अपने अपने स्थान पर बैठ गये हैं ….उस समय गौरांगी पुष्पों की रंगोली बना रही है । शाश्वत बैठा हुआ है और बाबा के आने की प्रतीक्षा कर रहा है ।
इस ‘रस’ में कैसे प्रवेश हो ? एक सखी जो दिल्ली की हैं उन्होंने पूछा था ।
चिन्तन से …सतत चिन्तन से …शाश्वत का उत्तर था ।
पर सतत चिन्तन सम्भव नही है ….तो फिर “श्रीधाम वास”करो …..ये भी कहना था शाश्वत का ।
उसी समय पागल बाबा आगये ….सबने प्रणाम किया उन्हें …..बाबा बैठ गये ….तो यही प्रश्न फिर उठाया ….बाबा भी यही बोले ….चिन्तन करो …..खूब चिन्तन करो ….पर चिन्तन नही बनता …..बाबा बोले …फिर वाणी जी का पाठ करो ….उससे चिन्तन बन जायेगा । वाणी जी का पाठ ये अद्भुत है ..इससे वो लीला तुम्हारे सामने घूमेगी ….तुम धीरे धीरे रस में प्रवेश करते चले जाओगे । दिल्ली में वातावरण नही है इन सबका ! बाबा बोले ..फिर श्रीधाम आजाओ …कुछ करना ही नही पड़ेगा …यहाँ पड़े भी रहोगे तो सखियाँ तुम्हें उस रस में प्रवेश करा ही देंगीं । प्रश्नों की शृंखला बढ़ती देख ….शाश्वत बोला ….इन के प्रश्न कभी ख़त्म नही होंगे …बाबा ! आप रस राज्य में हम सबको ले जाओ ।
बाबा ने श्रीहित चौरासी वाणी जी खोलने के लिए कहा …आज पाँचवा पद है …वीणा और सारंगी साथ साथ में बजेंगे …और बज उठे …पखावज की ताल में पद का गायन गौरांगी ने प्रारम्भ कर दिया …..
आजु प्रभात लता मन्दिर में ,
सुख बरसत अति हरषि जुगल वर ।
गौर श्याम अभिराम रंग भरि ,
लटकि लटकि पग धरत अवनि पर ।
कुच कुमकुम रंजित मालावलि ,
सुरत नाथ श्रीश्याम धाम धर ।
प्रिया प्रेम के अंक अलंकृत ,
चित्रित चतुर शिरोमणि निजु कर ।
दम्पति अति अनुराग मुदित कल ,
गान करत मन हरत परस्पर ।
श्री हित हरिवंश प्रसंसि परायन,
गायन अलि सुर देत मधुरतर । 5 ।
ये श्रीहित चौरासी जी का पाँचवाँ पद था , पद गायन से ही सब लोग झूम उठे थे …गायन से पूरा राधा बाग प्रेम पूर्ण हो गया था ..अब बाबा इस पद का ध्यान बतायेंगे ….सबने वाणी जी बन्द करके रख दी है ।
!! ध्यान !!
सुन्दर श्रीवृन्दावन है … चारों ओर रस पूर्ण वातावरण है …रसिकनी श्रीप्रिया जी सखियों के साथ हैं ….सब उनको रात्रि की बात पर छेड़ रही हैं ….अकेली पड़ गयीं प्रिया जी …सखियाँ कुछ न कुछ बोल रही हैं ….तब श्रीराधा रानी चारों ओर देखती हैं ….तो उनको अपनी ओर आते हुए दिखाई देते हैं श्याम सुन्दर …..श्याम सुन्दर तेज गति से चलते हुए आरहे हैं ……आने में उनकी उत्सुकता इतनी दिखाई दे रही है कि मानों युगों से ये अपनी प्रिया से मिले ही नहीं हैं ।
सुन्दर सुन्दर सखियाँ ये देख लेती हैं …अब प्रिया का ध्यान भी अपने प्यारे पर ही है ….सामने एक कुँज है …बड़ा सुंदर कुँज है …माधवी पुष्पों से निर्मित ये लता मन्दिर है …इसमें सुगन्ध की वयार चल रही है ….मोर भीतर जा नही रहे उस लता मन्दिर के बाहर घूम रहे हैं …मोर भी अनगिनत हैं …तोता कोयल ये बीच बीच में बोल रहे हैं …तो बड़ा ही मधुर लग रहा है …सखियाँ चली गयीं …..क्यों की दोनों के मध्य में ये बाधक बनना नही चाहतीं ….किन्तु उसी लता कुँज के पीछे जाकर खडी हो गयीं ….सभी सखियाँ खड़ी हैं …और शान्त भाव से वो देख रही हैं ….
श्याम सुन्दर नीली चुनरी कन्धे में डाले हुये हैं और पीताम्बरी श्रीकिशोरी जी ने । दोनों गले मिले ….बहुत देर तक मिलते ही रहे …..ये सखियाँ देख रही हैं और अपने नेत्रों से इस रस का पान कर रही हैं ….फिर धीरे धीरे लता मन्दिर में युगल सरकार पधारे ….पर उस समय उनकी जो शोभा थी वो एक प्रेम मत्तता की थी ।
ये देखकर लता रंध्र से हितसखी अन्य सखियों को बताती हैं ……….
सखी ! देख आज तो प्रभात वेला में ही वर्षा हो रही है ….ये जो लता मन्दिर है ना ….इसमें सुख पूरा का पूरा बरस रहा है …..सुख की वर्षा हो रही है ….इन युगल को जो देख ले …. इस तरह प्रेम में डूबे हुए…..वो तो सुख के महासागर में गोता ही लगाता रहेगा ।
युगल को सब सखियाँ अपलक निहार रही हैं ……
अरे देखो , अभी तक तो प्रिया जू ही सुरत सुख के कारण झूम रही थीं पर ये लाल जू तो और उन्मत्त हो रहे हैं …..अभी तक सुरत सुख का आनन्द इनके हृदय से गया नही है ….रात्रि में पीया वो रस ….रसासव , वही इनकी चाल में दिखाई दे रही है ….देख तो , कैसे झूम झूम के ….लटक लटक के दोनों ही अपने पग इस श्रीवन की अवनि में रख रहे हैं …..आह ! हित सखी वर्णन कर रही है और मुग्ध है …..सब दर्शन कर रही हैं और रसासव अपने नयनों से पी रही हैं ।
माला देखो ….श्याम सुन्दर के कण्ठ में जो माला है …उसे ध्यान से देखो …..हित सजनी कहती हैं …..क्यों सखी ! उस माला में ऐसा क्या है ? अन्य सखियों ने प्रश्न किया । सखी ! उस माला में केसर लगा हुआ है …श्रीजी के वक्ष में जो केसर है ना उसमें ये माला मसली गयी है …. जब दोनों युगल मिले और सुरत संग्राम मचा तब ये माला भी धन्य हो गयी …श्रीजी के वक्षस्थल की केसर प्रसादी इसे मिल गयी……और देखो देखो …श्याम सुन्दर भी कितना प्रेम कर रहे हैं उस माला से ।
सब सखियाँ देखकर रोमांचित होती हैं …..वो सब कुछ भूल गयी हैं ……
तभी हित सजनी कहती हैं ……अब आगे देखो …..प्रिया जू के अंगों में सुन्दर चित्रावली बनाई है हमारे श्याम सुन्दर ने । हाँ ….सब सखियों ने देखे और मुस्कुराने लगीं ….नख से चित्र उकेरे हैं …आहा ! इतना ही बोल सकीं सखियाँ …..तभी उस लता भवन के भँवरों ने गुंजार शुरू कर दिया …उनके गुंजार से संगीतमय वातावरण का निर्माण हो गया था । भँवरों के गुंजार के साथ अब सखियों ने भी गीत गाने शुरू कर दिए …..श्याम सुन्दर सखियों को देखकर मुस्कुराए …और उनके गायन की प्रसंसा करने लगे थे ….किन्तु श्रीजी शरमा रही थीं ।
अद्भुत झाँकी थी ये युगल और सखियों की ……….
पागल बाबा मौन हो गये ….अब बोलने के लिए कुछ था नही ……
गौरांगी ने फिर गायन किया श्रीहित चौरासी जी के पाँचवे इसी पद का ।
“आजु प्रभात लता मन्दिर में , सुख बरसत अति हरषि जुगल वर …….”
आगे की चर्चा अब कल –
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