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November 21, 2024 12:48 pm

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!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी !!-( श्रीवृन्दावन में मल्हार – “झूलत दोऊ नवल किशोर” ): Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी !!-( श्रीवृन्दावन में मल्हार – “झूलत दोऊ नवल किशोर” ): Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी !!

( श्रीवृन्दावन में मल्हार – “झूलत दोऊ नवल किशोर” )

गतांक से आगे –

रस निधि , रसाधिष्ठान है ये श्रीवृन्दावन । अगर श्रीवृन्दावन न हो तो नित्य निकुँज बिहारी की लीला हो ही नही सकती । प्रेम रस का छलकना प्रेम पात्र में ही सम्भव है । श्रीवृन्दावन प्रेम पात्र है …इसी में रस को भरा जाता है और पीया जाता है ….यहाँ की लताएँ , यहाँ के वृक्ष , यहाँ के खग जीव सब प्रेम में रचे पचे हैं । हमारे अंदर जो प्रेम स्फुरित होता है …प्रेम मयी तृष्णा , जो भी है उच्च या निम्न, वो सब इस रस वारिधि श्रीवृन्दावन से ही प्रकट हो रही है …इतना ही नही ..विश्व ब्रह्माण्ड में जहां जहां प्रेम का प्राकट्य है …उसका मूल श्रोत श्रीवृन्दावन ही है ….अनिवर्चनीय प्रेम जो विश्व ब्रह्माण्ड को अपने में समेट कर रखता है …..एक बनाकर रखता है …वो प्रेम – प्रेम निधि श्रीवृन्दावन से ही प्रकट है । ये साधारण नही हैं श्रीवृन्दावन । इसकी सीमा में प्रवेश करते ही जीव सच्चिदानन्द घन हो जाता है …”जीव” कहा है …मनुष्य मात्र नही ….बाहर का एक पक्षी भी इस श्रीवन में आजाए तो उसके अन्दर का जड़भाव नष्ट हो जाता है और वो चिदरूप में धाम और धामी के साथ एकत्व हो आनन्द स्वरूप में जीने लगता है । इस रस निधि श्रीवृन्दावन की कौन महिमा गा सकता है ! यहाँ रस ही रस है ….चारों ओर रस छलक रहा है ….रस आकार लेकर नृत्य कर रहा है ….इस रस सागर में उस समय ज्वार आजाता है जब झूला झुलाती हैं रसीली सखियाँ । रसिक शेखर रस की बूँदों में भींगनें लगते हैं ..जब भीगतीं है नीली चूनरी रसीली की ..और रसिक छैल की पीताम्बर ! तब ज्वार आता है इस रस वारिधि श्रीवृन्दावन में ..तब सखियाँ मल्हार गाती हैं …रस का बरसना तो देखो -श्रीवृन्दावन और मल्हार !


ठीक पाँच बजे जब राधा बाग में श्रीहित चौरासी जी का पाठ आरम्भ हो रहा था तभी वर्षा हो गयी …..बाबा स्थिर बैठे रहे ….उन्हें और आनन्द आने लगा ….बूँदे उनके अंग में पड़ रही थीं ….शाश्वत ने जब छाता उन्हें ओढ़ाया तब उन्होंने मना कर दिया और धीरे से मुझे कहा – मूर्ख है …श्रीजी रस वर्षा कर रही हैं और हम उन्हें काला छाता दिखा रहे हैं । पर आपका स्वास्थ्य ! मैंने कहा …तो बाबा धीरे से बोले ..एक गोली खा लूँगा ….ये गौरांगी दे देगी …ठीक हो जाऊँगा …पर इस रस से तो वंचित मत करो । शाश्वत ने छाता हटा दिया । अब तो सब भींग रहे थे ….क्या आनन्द आरहा था … बाबा ने कहा …आज बिना वाद्य के गायन करो । बस मंजीरा लिया है हम लोगों ने और पैंतीसवें पद का गायन ……गायन भी राग मल्हार में । ये राग वर्षा ऋतु का ही राग है ..बड़ा मीठा राग है …इस राग को ध्यान से सुनो तो लगता है ….रिमझिम रिमझिम वर्षा बरस रही है ।

भींजते मल्हार में श्रीहित चौरासी जी का ये पद गायन ….अनिवर्चनीय आनन्द था । आप सब गाइये । नही , पढ़िए मत गाइये । आपको बड़ा रस मिलेगा ।


             झूलत दोऊ नवल किशोर ।
 रजनी जनित रंग सुख सूचत ,   अंग अंग उठी भोर ।। 

अति अनुराग भरे मिलि गावत , सुर मंदर कल घोर ।
बीच बीच प्रीतम चित चोरत , प्रिया नैंन की कोर ।।

अबला अति सुकुमारी डरत मन , वर हिंडोर झकोर ।
पुलकि पुलकि प्रीतम उर लागत , दै नव उरज अँकोर ।।

अरुझी विमल माल कंकन सौं , कुंडल सौं कच डोर ।
वेपथ जुत क्यों बनैं विवेचित , आनन्द बड्यौ न थोर ।।

निरखि निरखि फूलत ललितादिक , विवि मुख चंद चकोर ।
दै असीस हरिवंश प्रसंशित , करि अंचल की छोर ।35 !

झूलत दोऊ नवल किशोर …………

राधा बाग में वर्षा रुकी नही है ….पर बाबा अब देहातीत हो गये हैं …..उन्हें देह का कोई भान भी नही है …ये दशा समस्त रसिकों की हो गयी है । अब ध्यान होगा । सब आँखें बन्दकर के बैठ गये हैं ….बाबा ध्यान करा रहे हैं ….वर्षा में भीगते हुये ध्यान । आहा ! निकुँज प्रत्यक्ष हो गया था ।


                                    !! ध्यान !! 

सुन्दर श्रीवृन्दावन की अद्भुत शोभा का युगल दर्शन कर रहे हैं …कुँज निकुँज में डोलकर भी आगये । पर ये क्या ! एकाएक आकाश में लाल पीले नीले बादल छाने लगे थे …उससे श्रीवन की शोभा और अद्भुत हो गयी थी …पर वही बादल अब काले बन गये , अन्धकार छा गया …कुछ भी दिखाई नही दे रहा …तब बिजली चमकने लगी …श्रीजी श्याम सुन्दर के हृदय से लग गयीं हैं …और जब बिजली चमकती है तब उस चौंध में जो युगल की झाँकी के दर्शन हो रहे हैं …वो अद्भुत शोभा है ।

बिजली के चौंध में प्रिया जू का रूप चमक रहा है तब ऐसा लगता है मानौं शुद्ध सुवर्ण को अभी अभी तपाया गया हो ….और श्याम सुन्दर तो नीलमणि जैसे चमक रहे हैं …तभी वर्षा होनी आरम्भ हो गयी …..एक दूसरे ने एक दूसरे को अपनी अपने बाहों में छुपा लिया …पर वर्षा रुक नही रही …..शीतल हवा और चल पड़ी उस हवा के कारण दोनों के हृदय में प्रेम का फिर जागरण हो गया …..श्याम सुन्दर अब प्यारी के मुखारविंद को देखने लगे ….बिजली चमकती ही जा रही है …उसी के चौंध में तो प्यारे अपनी प्यारी को देख रहे हैं …..पर ये क्या ! एक सुन्दर सा कदम्ब वृक्ष वहाँ है …ये पहले नही था …श्रीवृन्दावन ने अभी प्रकट कर दिया है ….उस कदम्ब पर अब सारे पक्षी आगये …पक्षी भी बड़े मन मोहक हैं ….शुक सारे रंगों के हैं ….कोयल पंचम स्वर में गान कर रही है …मोर आदि बोल रहे हैं । सामने एक सरोवर है जिसमें हंस के जोड़े विहार कर रहे हैं ।

पर अद्भुत तो अब होने वाला था ….एक कुँज से खिलखिलाती अष्ट सखियाँ निकल कर आयीं ….इनके हाथों में रेशम की डोर थी ….हंसते हुए इन्होंने कदम्ब की डार पे डोर फेंकी ….उसे खिंची …..नीचे एक सुन्दर सा पटरा बिछाया उसमें कोमल आसन ।

और खिलखिलाती हुयी आगे बढ़ीं युगल के हाथों को पकड़ कर उस झूले के पास लेकर आयीं …और बड़े प्रेम से बोलीं ….विराजिये । श्याम सुन्दर बहुत प्रसन्न हुए …उन्होंने प्रिया जू को देखा और पहले प्रिया को ही बैठाया …फिर स्वयं बैठे ।

सखियों ने गायन शुरू किया …
मल्हार ….मधुर अत्यन्त मधुर स्वर में मल्हार का गान चल पड़ा था ।

ललितादि सखियाँ झूले को झौंटा दे रही हैं ….युगल अब झूल रहे हैं ……

इस झाँकी का दर्शन कर हित सखी तो सब कुछ भूल गयी …..वो मुग्ध है …वो मंत्रमुग्ध है …चित्र लिखी सी सब सखियाँ बस दर्शन कर रही हैं …..बड़ी देर बाद ..हित सजनी की सखियाँ बोलीं ….कुछ तो बोलो …अब ये कान भी सुनना चाहते हैं …..तब लम्बी साँस लेकर हित सखी ने बोलना आरम्भ किया ……हे सखियों ! देखो …..


देखो ! देखो सखी ! एक नवीन रस लालसा सम्पन्न युगल किशोर झूला झूल रहे हैं ….और कितने रस मत्त हैं ….अहो ! अभी अभी तो ये उठे ही थे ….प्रभात की वेला में ही वन विहार कर रहे थे ….इनके अंग से रात्रि के सुरत सुख के चिन्ह अभी तक मिटे भी नही हैं ….फिर भी देखो …इनके नयनों में अभी भी प्यास है …रस के प्यासे हैं …रस लोलुप हैं ।

हित सखी शान्त है …उसे इस रस को नयनों से पीना है …बोलना नही है …फिर भी बोल रही है ।

मल्हार कितना सुन्दर लग रहा है ना ! मल्हार का गायन सखियाँ ही नहीं …कोयली और तोता भी कर रहे हैं …..मोर की बोली भी वातावरण को मधुर बना रही है । इतना कहकर हित सखी फिर स्तब्ध सी निहारने लग जाती है इस झूलन की झाँकी को । पर अद्भुत ! अब तो श्याम सुन्दर गाने लगे हैं ….मल्हार गा रहे हैं …आलाप ले रहे हैं ….गाते गाते सप्तम स्वर तक पहुँच रहे हैं …ये देखकर प्रिया जू …वाह , वाह कर उठी हैं …प्रिया जू के प्रशंसा ने इन्हें और उत्साहित कर दिया है …..ये और गायन कर रहे हैं …कितना मीठा गा रहे हैं ना ! प्रिया जू अपने कँटीले नयनों से प्यारे को देखकर मुस्कुराती हैं तो इनका हृदय गदगद हो उठता है । ये इसी तरह तो प्रीतम का मन चुराती रहती हैं ।

अब तो आनन्द से भर गए हैं श्याम सुन्दर ….जोर जोर से झोंटा ले रहे हैं ….अब प्रिया जू डर रही हैं ….और डरती हुयी अपने प्रीतम के गले लग रही हैं ….हित सखी कहती है …श्याम सुन्दर यही तो चाहते हैं …..और हृदय से लगते हुये जब प्रिया के वक्ष का स्पर्श लालन को होता है …तब तो ये और आनंदित होकर झोंटा लेते हैं ….ये झाँकी भी मन को हरने वाली है ।

यहाँ हित सखी मौन हो जाती है …उसकी सखियाँ भी मौन होकर बस देख ही रही हैं …झूला के लम्बे लम्बे झोंटा लेने से अब एक दिक्कत खड़ी हो गयी …न चाहने के बाद भी हित सखी अब बोल ही पड़ती है …लो , अब कौन सुलझाये ….दोनों उलझ गए हैं …श्याम सुन्दर की माला प्रिया जू के कंगन में उलझ गयी …और प्रिया जू के केश की डोर श्याम सुन्दर के कुंडल से उलझ गयी है ….आनन्द अत्यधिक बढ़ गया है ….जिसके कारण इन दोनों के अंग अंग भी उलझ गये हैं ….अब कौन सुलझाये । हित सखी हंसती है । फिर इस झूलन रस से मत्त हित सखी उठ जाती है ….अब दोनों एक दूसरे को बस देख रहे हैं …झोंटा लेना भूल गए हैं ….झूला धीरे धीरे रुक रहा है ….पर दोनों एक दूसरे में खो गए हैं …ऐसे देख रहे हैं …जैसे चन्द्र और चकोर । प्रेम रस से उन्मद हित सखी अपने दोनों हाथों को उठाकर और आँचल का छोर हिलाकर आशीर्वाद देती है युगल वर को ….कि ऐसे ही सदा सनातन प्रेम क्रीड़ा करते रहो । सदा इसी सुख में भींगे रहो …सदा ऐसे ही प्रसन्न रहो …। सखी खूब आशीष देती है । सब आशीष की वर्षा कर देती हैं ।


पागल बाबा भी आशीष देते हैं ….राधा बाग के रस सिक्त रसिक जन भी आशीष देते हैं …हम भी आशीष देते हैं ….समस्त लता वृक्ष पक्षी सब आशीष देते हैं ….कि –

“दै असीस हरिवंश प्रसंशित करि अंचल की छोर”

आहा ! बाबा दोनों हाथों को उठाकर बोलते हैं …ऐसे ही रस में भीगें रहो ।

गौरांगी फिर गा उठती है …….

“झूलत दोऊ नवल किशोर”

ये रस और कहाँ ?

मैं अपने साधकों से कह रहा हूँ …मेरे लिए श्रीजी से माँगो कि अब श्रीवन को वो न छुड़ाएं ।
श्रीवृन्दावन को छोड़कर कहीं जाने की अब इच्छा नही होती ।

आगे की चर्चा अब कल –

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