!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( रसात्मकता – “नागरी निकुंज ऐंन” )
गतांक से आगे –
बड़ा प्यारा ध्यान है हम रसोपासकों का ।
यही ध्यान करना है ।
सर्वप्रथम बैठ जाना है पवित्र आसन पर । साँस को खींचना है, “रा” कहते हुए खींचना है , फिर साँस को रोकना है , रोकने तक “राधा राधा राधा राधा” मन में ग्यारह बार इस नाम को लेना है …फिर साँस छोड़ना है ….”धा” कहते हुए छोड़ना है । पूरी साँस छोड़कर फिर रोक देना है …और पूर्व की भाँति , “राधा राधा राधा राधा” मन ही मन ग्यारह बार लेना है …फिर साँस को खींचना है ….इस तरह आपको ग्यारह बार इसी क्रिया को दोहराना है ।
अब सहज हो जाइये …और ध्यान कीजिये ….श्रीवृन्दावन है , यमुना हैं , कल कल यमुना बह रही हैं …पक्षी हैं जिनके कलरव से पूरा श्रीवृन्दावन गूंजता रहता है । आज लीला है वन विहार की …युगल सरकार वन विहार कर रहे हैं ….आज लीला है …जल केलि …आज लीला है मान लीला । ना तर्क मत कीजिये – प्रेम मार्ग में तर्क कहाँ ? इन्हीं “भावना रस” की आपको सिद्धि करनी है । भावना सिद्धि हो गयी तो जिसकी भावना हो रही है वो प्रत्यक्ष हो जाता है ।
ये अनुभव की बात है ।
साधकों ! आपको इसी “भावना रस” को सिद्ध करना है । ये श्रीहित चौरासी जी का गायन और सत्संग जो किया जा रहा है उसका उद्देश्य सिर्फ ध्यान और उसकी सिद्धि ही है । इसी से ही आप रसमय हो जायेंगे । रसात्मक ।
नागरी निकुंज ऐंन किसलय दल रचित सैंन, कोक कला कुशल कुँवरि अति उदार री ।
सुरत रंग अंग अंग हाव भाव भृकुटी भंग , माधुरी तरंग मथत कोटि मार री ।।
मुखर नूपुर सुभाव किंकिणी विचित्र राव , विरमि विरमि नाथ वदत वर बिहार री ।
लाड़ली किशोर राज हंस हंसिनी समाज , सींचत हरिवंश नैंन सरस सार री । 76 !
नागरी निकुंज ऐंन……….
इसका आध्यात्मिक अर्थ क्या है ?
पद गायन गौरांगी कर चुकी थी …..अर्थ सब इस पद का पढ़ चुके थे अब बाबा ध्यान बतायेंगे …किन्तु उससे पहले एक साधक पुरुष ने ये प्रश्न कर दिया ।
इस लीला का कि “श्रीराधा कृष्ण का विहार हो रहा है” अर्थ क्या है ?
यानि आध्यात्मिक अर्थ क्या है ?
बाबा हंसे ….बोले ….भैया ! हमारा उद्देश्य तुम्हें इन रसमयी लीलाओं का आध्यात्मिक अर्थ समझाना नही है ….
नही ये तो आवश्यक है ना , तभी तो बात समझ में आएगी । बाबा फिर हंसे , भले आदमी ! हमारा उद्देश्य तुम्हारी समझ बढ़ाना भी नही है …हमारा उद्देश्य तो बस ध्यान करना है । इन लीलाओं का चिन्तन करना है …इसी रसमयी भावना की सिद्धि करनी है । बुद्धि में ज्ञान भरना ,ये हमारा काम नही है …हमारा काम तो बुद्धि को ख़ाली करना है और उसमें रस घोल देना है । हृदय में रस आये …वो “रस ब्रह्म” हमारे हृदय में प्रकट हो जाये । सर्वत्र उसी “रस ब्रह्म” का रास दिखाई देने लगे …पूरी सृष्टि में उसी “रस ब्रह्म” की उपस्थिति का अनुभव हो । भैया ! हमारा उद्देश्य ये है । बड़ी विनम्रता से बाबा बोले । फिर बाबा ने कहा …चलो अब ध्यान करो । धीरे धीरे सब समझ जाओगे । इतना कहकर इसी 76 वें पद का ध्यान बाबा करवाने लगे थे ।
!! ध्यान !!
वो दिव्य निकुँज है , लताओं से आच्छादित निकुँज । लताओं में पुष्पों के गुच्छ झूल रहे हैं ।
आज पक्षी बड़े ही चित्र विचित्र से हैं । झुण्ड के झुण्ड पक्षी । उनके द्वारा दिशायें मुखरित हो रही हैं । सखियों की मण्डली आगयी है …अनन्त सखियाँ हैं …सब सुन्दर हैं …सबकी साड़ी भी पीली है और एक सी है ….वो सब जब आईं तब उनकी पायल की रुनझुन से श्रीवन झंकृत हो उठा था …आहा ! कितनी मधुर ध्वनि थी ।
पर श्याम सुन्दर का ध्यान बस अपनी प्रिया की ओर ही था …वो अब अति प्रसन्न थे । उनका मुख कमल खिला हुआ था …वो मन्द मन्द मुस्कुराकर अपनी प्रिया को ही देख रहे थे …प्रिया जी भी अपने प्रीतम को इस तरह आनन्दमग्न देखकर उन्हें हृदय से लगा रही थीं ।
किन्तु प्रीतम रस लोलुप हैं ….मात्र हृदय से लगाना इनके लिए पर्याप्त नही है । ये तो एक होना चाहते हैं । एक । आलिंगन , कपोल में चुम्बन , प्रिया जी का इक टक मुख अरविन्द का दर्शन , फिर अधर रस पान । फिर फिर फिर ……….
अरी हित सखी ! क्या फिर फिर फिर कर रही है ? बताना उस कुँज में क्या हो रहा है ?
अन्य सखियों ने हित से ही पूछा । क्यों की वो अनन्त सखियाँ भी कुँज के बाहर ही आकर खड़ी हो गयीं थीं …भीतर तो अब हित सखी भी नही थी …वो भी कुंज रंध्र से ही निहार रही थी ।
हित से जब अन्य सखियों ने पूछा तो हित सखी अब बताने लगी ।
अरी सखियों ! देखो , ये निकुँज कितना सुन्दर सजा है …और इस सुन्दर निकुँज में जो कोमल पुष्प दलों की शैया सजी है वो तो और अद्भुत है ।
देखो तो ! हित सखी आनंदित होकर बोल रही है । उस सुन्दर शैया में प्रिया जी विराजमान हैं ….प्रिया जी का अंग अंग सुरत रंग से रंग गया है । वो अपने प्रीतम को देखकर मुस्कुरा रही हैं ….फिर नयन की भंगिमा दिखाकर उनका मन चुरा रही हैं । देखो सखियों ! किशोरी जी के श्रीअंग से जो रूप माधुरी इस समय प्रकट हो रही है ना ….उसने कामदेव को मथ डाला है ।
कुछ देर मौन रहकर हित सखी फिर कहती है ….सुनो ! सुनो ! ये नूपुर बोल रहे हैं …प्रेम में डूबे श्याम सुन्दर जब श्रीजी के चरण पकड़ते हैं तब वो हटा रही हैं ….उस समय उनके नूपुर बज रहे हैं …..नही नही , ये किंकिणी की ध्वनि है …जो प्रिया जी की कमर में बंधी हुई है । अब उन गोरे जहनु को जब श्याम सुन्दर ने छूआ तो कमर की किंकिणी बज उठी । आहा ! क्या रस बरसा रही हैं हमारी स्वामिनी । हित सखी आनंदित होकर कहती है ।
अब तो दोनों मिल गये हैं ….दोनों एक हो रहे हैं …दोनों की साँसें एक हो गयीं हैं …कौन श्याम कौन श्यामा , कुछ पता नही चल रहा । हित सखी हंसती है …सखियाँ पूछती हैं -आप हंस क्यों रही हो ? हित कहती है – श्याम सुन्दर श्रमित हो गये और अपनी प्यारी को कहने लगे ….कुछ देर के लिए रुक जाओ । पर प्रिया जी अब रुक नही रहीं ।
सखी ! मेरे नयनों को इन सुन्दर रस सार से सींच रहे हैं ये युगल । अरी ! सौभाग्य है हमारे कि हम इन दोनों किशोर किशोरी की रसमई लीलाओं का दर्शन कर रहे हैं ।
इतना बोलकर हित मौन हो गयी थी ।
इसी रस ब्रह्म का ध्यान करो , इसी ध्यान को सिद्ध करो ….फिर देखो ।
पागलबाबा अन्तिम में इतना ही बोले ।
गौरांगी ने फिर इसी पद का गायन किया ।
“नागरी निकुंज ऐंन, किसलय दल रचित सैंन”
शेष चर्चा कल –


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