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July 20, 2025 12:52 pm

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श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 13-( विरह-व्यथा – श्रीराधा और चन्द्रावली ) : Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 13-( विरह-व्यथा – श्रीराधा और चन्द्रावली ) : Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 13

( विरह-व्यथा – श्रीराधा और चन्द्रावली )

गतांक से आगे –

भूल है आपकी कि “मिलन” के रस को ही आप रस समझते हैं …और विरह को ?

क्या आपको ये पता नही है …अवतार काल में “मिलन” की लीला तो मात्र ग्यारह वर्ष तक की ही रही है …..और “विरह” की लीला ? पूरे सौ वर्ष । सौ वर्षों तक विरह-व्यथा में तड़फ़ता रहा बृज मण्डल । विरह की दावाग्नि धीरे धीरे सबको अन्दर ही अन्दर जला रही थी । पर त्याग-वैराग्य इनमें इतना भरा था कि सौ वर्षों तक ये लोग तड़फते रहे ….पर उफ़ तक किसी ने नही की ।

क्या उन विरह के सौ वर्षों में कोई लीलाएँ नही हुई होंगीं ?

हुईं । खूब हुईं । श्याम सुन्दर कभी उद्धव को भेजते रहे , तो कभी अर्जुन को । क्यों ? क्यों भेजते रहे ? बृजमण्डल का त्याग दिखाने …कि देखो प्रेम में त्याग होना आवश्यक है ….”अपने सुख का त्याग” इस बृज मण्डल ने किया है । और महाभाव स्वरूपा श्रीराधा रानी का दर्शन , उनके पूर्ण निस्वार्थ प्रेम का दर्शन ।

बृज प्रेम में बस त्याग ही त्याग है । हमारी स्वामिनी का यही सन्देश है कि-

“अपनी अभिलाषा पूर्ति की तनिक भी कामना नही रखनी है …यहाँ तो रज में मिल जाना है …मिट जाना है । यहाँ तो अश्रु की माला पहननी है ..और आह भरना है । हंसते हंसते दर्द को सहना है….तभी प्रीतम मिलेंगे” ।

यही हमारी श्रीराधारानी का सन्देश है ।

साधकों ! चलिये उस देश में …जहाँ आँसुओं की बाढ़ है …दर्द है …आह है …पुकार है …..

पर ये सब दिव्य है ….दिव्यतिदिव्य है ।

इन आँसुओं में सांसारिक आँसु उपेक्षित हो जायेंगे …..जो साधकों के लिये होने ही चाहिए ।

दर्द है ….पर इस दर्द के उठने से तुम्हारे सांसारिक दर्द ग़ायब हो जायेंगे …..आह है ….किन्तु इस आह के उठते ही सांसारिक दुःखों की आह कहाँ चली जायेगी पता भी नही चलेगा ।

अब चलिये …….


ये क्या है ? ये क्या ? गौर वदनी राधा की ये दशा ?

सब सखियों ने दृष्टि उठाकर देखा था ऊपर की ओर …कि ये कौन सखी है जिसे हमारे विषय में पता नही है । और ये स्वयं इस विरह-व्यथा से अछूती है ? कैसे ?

ओह , ये चन्द्रावली है ! सखियों ने देखा उसे …बैठने के लिए संकेत किया ।

“कृष्ण तो राधा का ही था…वो तो मैं राधा को छेड़ती थी बस”….चन्द्रावली ने बैठते हुए सर्वप्रथम अपनी सफाई दी……

“कृष्ण और राधा ये दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे, पर वो छोड़कर चले गये”…….ललिता के कन्धे में हाथ रखते हुए ये सान्त्वना भी दे रही है चन्द्रावली …..किसी ने नही सोचा था कि वो चले जायेंगे …..मैंने तो बिल्कुल नही , मैं कई प्रसंगों में देख चुकी थी कि कृष्ण इस राधा को ही अपना सब कुछ मानते थे । अच्छा , पूरे बृज को ये लगता था कि मैं राधा से चिढ़ती हूँ या कृष्ण को अपना बनाना चाहती हूँ ….किन्तु ये सब मिथ्यापवाद है । मैं तो आनन्द लेती थी ….चढ़ाती थी दोनों को …..कृष्ण के पीछे पड़ने का स्वाँग करती थी …ताकि राधा चिढ़े । पर राधा राधा है ….राधा कभी चन्द्रावली से नही चिढ़ी ।

ये कहते हुए चन्द्रावली मूर्छित श्रीराधा को देखती है ….ये सुवर्ण की पुतली कैसी हो गयी है । कैसी थी ? ओह ! चन्द्रावली का हृदय पिघल गया श्रीराधा की ये दशा देखकर । उससे अब आगे कुछ बोला नही गया ….वो अपलक देखती रही श्रीराधारानी को । फिर कुछ देर बाद चन्द्रावली के नेत्रों से अश्रु धार बह चले थे……….

ये वही राधा है जिसके रूप की कामना देवि पार्वती करती हैं ….हाय ! वो ऐसे अवनी पर ।

अरुंधती अनुसूया जैसी पतिव्रता नारी भी इनके चरण धूलि की अभिलाषा करती हैं ….उन राधा की ये दशा ! चन्द्रावली अब बिलख उठी थी ।

ललिते !
तुम तो कुछ कहो ! श्याम सुन्दर गये इस बात का सबको दुःख है …किन्तु इस तरह से व्यथित हो उठना ! बोलो ! तुम तो किशोरी की प्रमुख सखी हो ।

क्या होता है …जब स्वयं सम्भालने वाले हों ….तब व्यक्ति मज़बूत रहता है …उसे रहना पड़ता है …किन्तु जब अपने से बड़ा कोई आजाता है तो लगता है अब हम थक गये ….

ललिता ने भी जब देखा चन्द्रावली आगयी है ….ये हम सबसे बड़ी भी है ….ये हमारे दुःख में दुखी भी है ….तो अब ललिता हिलकियों से रो पड़ी । वो कुछ नही बोल रही , बस रो रही है । इस तरह रोते हुए ललिता को किसी ने नही देखा था ….”आप हमारी लाड़ली को सम्भाल दो” , ललिता हाथ जोड़ रही है …”आप जो कहोगी हम करेंगीं” ….चन्द्रावली ललिता की बातों को ध्यान से सुन रही है ….उसका हृदय भी अब फटा जा रहा है ….ऐसी दशा ! जिन श्रीराधा की मुख छवि करोड़ों चन्द्रमा की छवि को परास्त करती थी ….आज वो मुखचन्द्र !

ललिता ने अब चन्द्रावली के पाँव पकड़ लिए थे …ये क्या कर रही हो ! ललिता ने आज तक अपनी लाड़ली को छोड़ किसी के पाँव नही पकड़े थे ….किन्तु आज अपनी लाड़ली के लिए ।

मेरी लाड़ली को बचा लो ! रोते हुए ललिता बोली थी ।

क्या ? चौंक कर श्रीराधा को देखा चन्द्रावली ने ।

ये क्या कह रही हो तुम ललिते ! हाँ , हमारी लाड़ली कहीं मृत्यु का वरण न कर लें ।

ये सुनते ही चन्द्रावली ने श्रीराधा के हृदय को छूहा ….कोई स्पन्दन नही हैं । नाड़ी देखी …चल नही रही । चन्द्रावली घबरा गयी ….उसके समझ में नही आरहा कि ये क्या हो रहा है ?

आगे विशाखा आयी साथ में रंगदेवि भी थी …….अब आपका ही आसरा है …हमारी लाड़ली को बचा लीजिए । आप सब जानती हैं ….लाड़ली की दशा क्यों हुयी है …आप ये भी जानती हैं ….इसलिये आप ……ये कहते हुए सब रोने लगीं थीं । उस साँकरी खोर के अणु-परमाणु में विरह व्यथा अच्छे से घुल चुकी थी ।

अपने नेत्रों को बन्द किया चन्द्रावली ने …..अपने को शान्त किया …..सब सखियों का ध्यान चन्द्रावली पर टिका हुआ है …..ललिता बस रोये जा रही है ….ललिता ही क्यों सब सखियाँ ही रो रही हैं ……

चन्द्रावली ने दो घड़ी की लम्बी अवधि के पश्चात् अपने नेत्र खोले …….

चित्रा सखी कहाँ है ? चन्द्रावली ने पूछा ।

चित्रा सखी पीछे बैठी थी …..वो भी तो रो रही थी …चन्द्रावली ने उसका नाम लिया पर उसे कहाँ भान ! ललिता ने चित्रा को संकेत किया आने को । चित्रा आगे आयी ।

चन्द्रावली ने गम्भीर होकर कहा ….पहले तुम सुबुकना बन्द करो ….अपने को शान्त करो । चित्रा हिलकियों से रोती हुयी बोली ….मुझ से नही होगा । तुम से ही होगा …चन्द्रावली ने गम्भीरता में कहा । चित्रा कुछ और कहने जा रही थी …पर चन्द्रावली ने अपनी बात रख दी ….तुम चित्र बनाती हो …है ना ? चित्रा ने सिर झुकाकर “हाँ” कहा ।

अच्छा सखियों ! यहाँ , इस साँकरी खोर में तुम लोग आयीं क्यों थीं ? और इन सुकुमारी को क्यों लायीं इस पर्वत में । उत्तर चित्रा सखी ने ही दिया । “श्रीकृष्ण को खोजने की बात कह कर हम लाड़ली को यहाँ लायी थीं” । चन्द्रावली ने गम्भीरता में कहा ….तो मैं ठीक सोच रही हूँ ….अच्छा ! अब तुम को एक मूर्ति बनानी होगी ….चन्द्रावली ने चित्रा को आदेश वाक्य कहे ।

किसकी मूर्ति ?

श्रीकृष्ण की ।

पर मुझ से नही होगा । चित्रा सखी ये कहते हुए बिलख उठी ।

क्यों नही होगा ….क्यों तुम ये नही चाहतीं कि तुम्हारी स्वामिनी जागृत हों ….जाग जायें ?

हाँ , हाँ , फिर रोते हुए हाथ जोड़ने लगी चित्रा ……

चित्रा ! तुमको मूर्ति बनानी होगी ……ललिता ने भी उत्साह दिखाया ।

चित्रा ! तुम को ये कार्य करना ही होगा …..विशाखा ने भी कहा ।

पर उससे क्या होगा ? मूर्ति बनाने से क्या होगा ?

चित्रा की मूर्ति हमने देखी है ….जीवन्त सी मूर्ति बनाती है ये …..सामने कदम्ब वृक्ष देख रही हो …बस उसी वृक्ष के नीचे हम चित्रा द्वारा निर्मित श्याम सुन्दर की मूर्ति रख देंगीं ….और कहेंगी ….सब कहेंगी …..आइये ! आइये ! श्याम सुन्दर ! आप पधारिये ! फिर लाड़ली को कहेंगी …चिल्ला कर कहेंगी ….देखो श्याम सुन्दर आगये । आगये श्याम सुन्दर ।

इससे क्या होगा ? लाड़ली जाग जायेंगी ….किन्तु बाद में फिर …..सुदेवी सखी ने ये बात कही ।

सुदेवी ! अभी तो जागे राधा, आँखें खोले तो , बाद में क्या होगा क्या नही …उसको छोड़ो ।
चन्द्रावली ने सुदेवी को समझाया ।

फिर चित्रा सखी की ओर देखकर चन्द्रावली बोली

  • चित्रा ! तुम शीघ्रातिशीघ्र मूर्ति बनाना आरम्भ करो….मिट्टी इस कुण्ड से ले लो ।

चित्रा सखी श्रीराधारानी को देखती है…..फिर अश्रु पोंछते हुये कुण्ड की ओर बढ़ जाती है …..वहाँ से उसने मिट्टी लेनी आरम्भ कर दी थी……..

क्रमशः….

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