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July 21, 2025 5:05 am

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श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 24-( जब कृष्ण को ललिता ने खरी खोटी सुनाई..) : Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 24-( जब कृष्ण को ललिता ने खरी खोटी सुनाई..) : Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 24

( जब कृष्ण को ललिता ने खरी खोटी सुनाई..)

गतांक से आगे –

वाह रे श्याम सुन्दर ! वाह ! आज मैं आयी बृज से तब मेरे सामने ये रोना धोना ….क्यों ? तुम तो भूल चुके थे वृन्दावन को , हम सबको , फिर अचानक ये क्या हो गया ?

ललिता को क्रोध आगया था । जो स्वाभाविक भी था ।

ये पराया राज्य पाकर श्याम सुन्दर खूब राजा बने बैठे हो ….और मैं आगयी तो मेरे सामने ये सब धूर्तता , क्यों ? ललिता बहुत तेज बोल रही है ।

श्याम सुन्दर उसे बस देख रहे हैं …उसकी बातें सुन रहे हैं …..

इन बातों से क्या प्रयोजन श्याम ? कि मेरी मैया कैसी है ? या मेरे बाबा कैसे हैं ? ग्वाल कैसे हैं गोपियाँ कैसी हैं ….और मेरी राधा कैसी है ? वाह ! अरे तुम्हें इतनी ही चिन्ता होती तो आजाते , मिल लेते ….पर नही …तुम तो राजा बन कर बैठ गए ….सब कुछ भूल गये …..

नही ललिते ! कृष्ण ने कहना चाहा ।

चुप रहो ……डाँट देती है ललिता । मैं तुम्हें जानती नही हूँ क्या ? ये मथुरा वाले तुम्हें नही जानते होंगे …किन्तु ये ललिता तुम्हारे रग रग को जानती है । मेरे सामने मत बनना । ओह ! ललिता का क्रोध उसकी आँखों में आगया था । क्या जानते चाहते हो तुम ? बोलो ? क्या ?

यही कि तुम्हारी मैया और बाबा मर गए या जीवित हैं ? वो तुम्हारे सखा ? वो गोपियाँ ? और तुम्हारी वो राधा ! क्या जानना है ? बोलो ? ललिता का मुखमण्डल तमतमा गया है ।

बड़े चतुर हो ! हूं …सब जानती हूँ मैं ….मेरे सामने रो धो कर अच्छे बन रहे हो ….ये सब अपना रूप मथुरा में दिखाना श्याम ! हमें नही ….हम तुम्हें तब से जानती हैं …जब तुम पैदा हुए थे ….इसलिए हमारे सामने चतुराई मत दिखाना ।

ललिता ! तू ऐसे क्यों बोल रही है ? कृष्ण अश्रु पोंछते हुये बोले ।

तो क्या बोलूँ ? धन्य हो जाऊँ …कि मुझे मथुराधीश के दर्शन हो गये ?

मैं कुब्जा नही हूँ , न हम बृज की गोपी कोई कुब्जा हैं , इस बात को मन से निकाल देना श्याम !

ललिता बोलते बोलते बैठ गयी ….और हिलकियों से रोने लगी ….बहुत रोने लगी ।

कृष्ण उसके पास गये …उसको सम्भाला ।

क्यों किया तुमने ये सब श्याम ! क्यों किया ? वो अपना माथा पीटने लगी ।

क्या सुनना चाहते हो ? बोलो ?

वृन्दावन की दशा सुननी है ? सुन सकोगे मथुराधीश ? ललिता सखी चीख उठी ।

प्यासी चातकी जब मरती है ना …तो उसका मुख भी मेघ की ओर ही होता है ….किन्तु मेघ को उससे क्या ! मरे मरे । ललिता बोली …ऐसे ही तुम हो । कृष्ण ललिता का हाथ पकड़ते हैं …वो झटक देती है …मुझे मत छुओ । फिर कुछ देर तक वहाँ मौन छा जाता है ।


श्याम ! सम्भव नही है वहाँ की दशा का वर्णन करना । ललिता कुछ देर बाद बोली ।

अब कुछ शान्त है ललिता ।

श्याम !
वैसे कहते हैं …सुखी व्यक्ति के आगे दुःख का वर्णन नही करना चाहिये …..इसलिये रहने दो ।

कुछ देर बाद ललिता फिर बोली ……जिस बात को तुम भूल चुके हो ….जिन लोगों को तुम भूल चुके हो …क्यों सुनना चाहते हो उनके विषय में ? बोलो ?

मैं नही भूला ललिता ! मैं नही भूला ! मैं भूल सकता हूँ भला ! उस वृन्दावन को मैं कैसे भूल सकता हूँ …..आगे भी बोलने जा रहे थे किन्तु ललिता बीच में ही बोल पड़ी ……रहने दो , मुझे देखकर तुम्हें सब याद आरहे हैं ….नही तो कुब्जा के सामने कोई नही याद आरहा था । ललिता फिर बोलने लगी । यहाँ का वैभव ! यहाँ का ऐश्वर्य ! हमारा क्या है श्याम सुन्दर ! हम गँवार ..हम वनवासिनी , न बोलना आता है न पहनना …..ये कहते हुए अब ललिता दीनता से भर गयी थी । श्याम ! तुम्हारे जाने के बाद हमारा तो सब कुछ चला गया …वो फिर रोने लगी ।

“सब कुछ चला गया”…..इस वाक्य को ललिता ने शून्य में देखते हुए चार बार दोहराया था ।

हमारा कुल गया , मान गया , रूप गया , लावण्य गया ….बस प्राण जाने बाकी हैं ….हे श्याम ! ये भी चले जाते …किन्तु हमने ही रोक रखा है । इसलिये कि तुम्हारे नाम पर कलंक लगेगा …लोग कहेंगे – कृष्ण ने पहले इनसे प्रेम किया फिर मरने के लिए छोड़ दिया …और सब मर गयीं ।

ललिता रो रही है ।

किन्तु इन सबसे तुम्हारा क्या प्रयोजन ? हम मर भी जायें तो इससे तुम्हें क्या ?

सहस्र मुद्रा के लाभ लेने वाले को …एक मुद्रा की हानि भी हो जाये तो उससे क्या ? बस इतना ही ना ! कि “कोई था चला गया” । ललिता बोले जा रही है ।

हे रसराज ! वहाँ की बातें सुनकर करोगे क्या ? क्या लाभ होगा तुम्हें ?

छोड़ो …वहाँ कुछेक गैयाँ थीं किन्तु यहाँ तो हाथी और घोड़े हैं इनकी संख्या भी कोटि है । ये लाभ हुआ है तुम्हें …ठीक है सुख लूटो । ललिता को अवसर मिला है वो बोल रही है ।

वहाँ वस्त्र पहनते ही नही थे तुम ….यहाँ वस्त्रों को कमी नही है …लाभ है ….लाभ देखो , हमें देखकर तुम्हें क्या मिलेगा ।

वहाँ स्वामिनी श्रीराधिका जू के चरणों में मस्तक रखते हुए लोट पोट होते थे …..यहाँ तो बढ़िया पगड़ी बाधें बैठे हो ….लाभ है …वहाँ क्या है ? ललिता बोले जा रही है ।

तुम ग्वाले थे वहाँ ….तुम हमारी श्रीराधारानी के कोतवाल थे वहाँ …किन्तु यहाँ भूपाल बने बैठे हो ….अजी लाभ यहाँ है …..वहाँ क्या था !

हे ललिता सुनो ! मुझ से इस तरह मत बोलो …..मैं पहले से ही दुखी हूँ …और दुखी मत करो मुझे । बताओ मेरे लोग कैसे हैं ? कृष्ण ने फिर पूछा ।

क्रमशः….

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